यह गुरू के आशीर्वाद का था चमत्कारिक प्रभाव कि निरक्षर और जुआरी मूलचंद बने प्रसिद्ध संत आचार्य विजयधर्म सूरि
शिवपुरी। गुरू का आशीर्वाद कितना चमत्कारी और प्रभावी होता है यह आचार्य विजयधर्म सूरि जी के जीवन प्रसंग से आसानी से समझा जा सकता है। जुए के शौक ने उन्हें इतना जकड़ लिया था कि माँ-बाप से घर से निकाल दिया, पढ़ाई से भी ज्यादा नाता नहीं रहा, लेकिन उनके जीवन की दिशा गुरू वृद्धिचंद ने बदल दी। अपने समर्पण से वह गुरू के दिल में बस गए और गुरू ने आशीर्वाद दिया कि जा बैठा तू होगा ज्ञानी और दुनिया में जैन धर्म का झण्डा फहराएगा और गुरू के आशीर्वाद से आचार्य विजयधर्म सूरि जी की ख्याति देश और विदेशों में फैली। उक्त उद्गार आचार्य विजयधर्म सूरि जी महाराज के शताब्दी महोत्सव में पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजयजी ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए व्यक्त किए। शताब्दी महोत्सव में आज देशभर से पधारे एक सैकड़ा विद्वान पंडितों का भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जैन धर्म में पंडित परम्परा की शुरूआत करने का गौरव आचार्य विजयधर्म सूरि जी को प्राप्त है। पंडित परम्परा की शुरूआत करने के कारण ही जैन पाठशाला से निकले विद्वान पंडित देशभर के नवोदित साधु, साध्वी और श्रावक श्राविकाओं को जैनदर्शन के आचार, विचार और रीति रिवाज का पाठ पढ़ा रहे हैं।
पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजयजी ने बताया कि आचार्य विजयधर्म सूरि जी जिन शासन के कोहिनूर थे। उन्होंने महज 54 वर्ष के जीवन काल में अनेक स्मरणीय धार्मिक कार्यों को संपादित किया। उनके ज्ञान का लोहा देश के अलावा विदेशों के विद्वान भी मानते थे। काशी नरेश ने उन्हें शास्त्र विसारद की उपाधि से अलंकृत किया। काशी में उन्होंने श्रीमद यशोविजय पाठशाला का शुभारंभ कराया। उन्होंने और उनके शिष्यों ने जैनदर्शन पर 100 से अधिक किताबें लिखीं और अब उन किताबों का विमोचन शताब्दी महोत्सव के अंतिम दिन 19 सितम्बर को होगा। कार्यक्रम में बाहर से पधारे विद्वान पंडित कांतिभाई डोसी, चंद्रकांत भाई, अरविन्द भाईसा, विमलेश भाईसा सहित अनेक विद्वान पंडितों ने अपने उद्बोधन दिए। इसके पश्चात जैन समाज के एक-एक परिवार ने पृथक-पृथक रूप से एक-एक विद्वान पंडित का सम्मान किया और उनसे आशीर्वाद लिया।
शिवपुरी में हुआ था आचार्य विजयधर्म सूरि जी का अंतिम चातुर्मास
पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजयजी ने बताया कि संयोगिक रूप से आचार्य विजयधर्म सूरि जी का शिवपुरी में अंतिम चातुर्मास हुआ था। शिवपुरी में वह कभी पधारे नहीं थे। उन्हें चातुर्मास हेतु इंदौर से आगरा जाना था, लेकिन शिवपुरी में अचानक उनका स्वास्थ्य इस हद तक बिगड़ा कि डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। तब शिवपुरी श्री संघ ने उनसे शिवपुरी में चातुर्मास करने की विनती की, लेकिन महज तीन दिन में ही संथारा और समाधि लेकर उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। महाराजश्री ने कहा कि शिवपुरी का अर्थ मोक्षपुरि भी होता है शायद इसीलिए आचार्यश्री ने शिवपुरी को अपनी समाधि के लिए चुना।
गुजरात के रत्न थे आचार्य विजयधर्म सूरि जी
बाल मुनि ने आचार्य विजयधर्म सूरि जी के व्यक्तित्व को अनेक महापुरुषों के उदधरणों से स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि सरदार बल्लभभाई पटेल उन्हें गुजरात के रत्न कहते थे। नोबल पुरुस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टेगौर का उनके बारे में कथन था कि मैंने ऐसा विद्वान पहले कभी नहीं देखा। जर्मन विद्वान हरमन ने उनसे मिलकर प्रतिक्रिया व्यक्त की कि आचार्यश्री प्रेरणा के पुंज थे मुझे उनसे अद्भुत प्रेरणा मिली। इटली के विद्वान एलपी टेसीटोरी का उल्लेख करते हुए पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि उनका शताब्दी महोत्सव जब इटली में मना तो उस अवसर पर आचार्य विजयधर्म सूरि जी के व्यक्तित्व पर केन्द्रित एक पुस्तक का भी विमोचन हुआ था। वह अनेक भाषा में पारंगत थे। कराची के एक मौलवी ने 102 वर्ष पूर्व उनके व्यक्तित्व पर ऊर्दू भाषा में एक पुस्तक लिखी थी जो उन्हें हाल ही में प्राप्त हुई है इससे पता चलता है कि आचार्यश्री की विद्धुतता का लोहा देश के साथ-साथ विदेश के विद्वान भी मानते थे।

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