चीतों को भारत में लाना जितना रोमांचक है उतना चुनौती भरा भी है। चीता शब्द ' चित्राकु ' या ' चित्रक ' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ' चित्तीदार ' या ' धब्बेदार '
एक समय था जब भारत के जंगलों में चीते के गुर्राने की आवाज जगह-जगह सुनाई देती थी। वह आवाज धीरे-धीरे थमती चली गई।
भारत में चीते की विलुप्ति का प्रमुख कारण उसका ज्यादा मांसाहारी होना एवं जानवरों के शिकार के लिए उसे पालतू बनाया जाना था। चीतों को पालतू जानवर बनाए जाने के कारण उनकी प्रजनन दर गिरती चली गई।
मध्यकालीन भारत में चीते का शिकार के लिए पाला जाना पूरे प्रायद्वीप में चर्चित था। चीते का उपयोग काले हिरण के शिकार के लिए किया जाता था इसके लिए इन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता था।
मुगल शासक जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक ए जहांगीरी मैं लिखा है की सन 1556 से 1605 तक मुगल शासक अकबर के पास 1000 से ज्यादा जीते थे इसका इस्तेमाल वह शिकार के लिए करता था। जहांगीर खुद भी शिकार के लिए चीजों का इस्तेमाल करता था ।
मुगल अपने सूबेदारों को इनाम के तौर पर चीते भेंट करते थे ।
ऐसा माना जाता है की अधिकारिक रूप से वर्ष 1947 में तब के मध्य प्रदेश की एक छोटी रियासत कोरिया जो कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ में है के राजा रामानुज प्रताप सिंह ने अंतिम बचे तीन चीतों का शिकार किया था।
1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की थी।
वर्ष 1970 में चीतों को भारत में लाने के लिए प्रयास किए गए इसके लिए ईरान से बात शुरू हुई। चीतों के बदले में भारत ने ईरान को बाघ तथा एशियाई शेर देने का प्रस्ताव दिया था लेकिन यह समझौता नहीं हो सका कारण था कि उस समय ईरान में चीतों की संख्या बहुत कम थी ।
17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के जन्म दिवस के अवसर पर नामीबिया से लाए जा रहे आठ चीतों को मध्य प्रदेश में श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा । यह राष्ट्रीय उद्यान लगभग 1.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जो कि चीतों के लिए अनुकूल माना जाता है। चीतों को भारत में वापस लाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की बड़ी कामयाबी मानी जा रही है ।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें