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धमाका ग्रेट: उत्कृष्ट विद्यालय के प्राचार्य विवेक श्रीवास्तव, शिक्षक दिवस पर शॉल श्रीफल के साथ पौधा देकर किये गए सम्मानित

सोमवार, 5 सितंबर 2022

/ by Vipin Shukla Mama
एक शिक्षक ही है जो मनुष्य को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाता है: रवि गोयल सामाजिक कार्यकर्ता
 शिवपुरी। शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है।इस दिन भारत देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राषट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।वह एक प्रसिद्ध शिक्षक, बहुप्रसिद्ध लेखक और प्रसाशक रहे। उन्ही की याद में आज पूरे देश में ये दिन मनाया जाता है शक्ती शाली महिला संगठन के रवि गोयल ने इस अवसर पर कहा की जिस तरह एक पक्की नींव ही ठोस और मजबूत भवन का निर्माण करती है, ठीक उसी प्रकार शिक्षक विद्यार्थी रूपी नींव को सुदृढ़ करके उस पर भविष्य में सफलता रूपी भवन खड़ा करने में सहायता करता है। एक शिक्षक ही है जो मनुष्य को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाता है और जीवन में सही और गलत को परखने का तरीका बताता है। कहा जाता है कि एक बच्चे के जीवन में उसकी मां पहली गुरू होती है, जो हमें इस संसार से अवगत कराती हैं। वहीं दूसरे स्थान पर शिक्षक होते है, जो हमें सांसारिक बोध कराते हैं। जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी को बर्तन का आकार देता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षक छात्र के जीवन को मूल्यवान बनाता है। शिक्षक से हमारा संबंध बौद्धिक और आंशिक होता है।  इसीलिए कहा भी गया है की गुरु बिन भव निधि तरही न कोई  चाहे विरंच शंकर सम होई। आज संस्था द्वारा उत्कृष्ट विद्यालय के प्राचार्य विवेक श्रीवास्तव द्वारा उनके द्वारा विद्यालय में किए गए उत्कृष्ट कार्य के लिए जिसमे 1700 छात्र एवम छात्राओं के लिए आधुनिक टायलेट के निर्माण में भरपूर सहयोग,  विधालय में छात्राओं के लिए महावारी स्वच्छता प्रबंधन केंद्र की स्थापना , एवम बच्चो के बीएमआई के लिए नवाचार करने के लिये उनको आज शॉल श्रीफल, पौधा एवम उपहार देकर उनका सम्मान किया इस अवसर पर पूरा विद्यालय परिवार एवम बच्चे उपस्थित थे। इस दिन आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। यहीं कारण है कि हम एक माह पहले शिक्षक दिवस मनाते हैं। तमिलनाडु के तिरुतनी में जन्में सर्वपल्ली राधाकृष्णन का परिवार सर्वपल्ली नामक गांव से ताल्लुक रखता था। उनके परिवार ने गांव छोड़ने के बाद भी गांव के नाम को नहीं छोड़ा।सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही एक मेधावी छात्र थे और छात्रवृत्ति के माध्यम से ही उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की।  महज 18 साल की उम्र में उन्होंने एथिक्स ऑफ वेदांत पर अपनी एक किताब लिखी और 20 साल की उम्र में वह मद्रास प्रेजिडेंसी कॉलेज में फिलॉसफी विभाग में प्रोफेसर बन गए। उन्होंने दर्शन शास्त्र में ना केवल डिग्री ली बल्कि लैक्चरर भी बने।



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