दिल्ली। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 12 से 18 सितंबर 2022 तक डीडीए ग्राउंड, ब्लॉक A, बंसल भवन के सामने, पेट्रोल पंप के पीछे, सेक्टर 16, रोहिणी, दिल्ली में 'श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ' का भव्य आयोजन किया जा रहा है। दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की असीम अनुकम्पा से कथा के षष्ठम दिवस में भगवान की अनन्त लीलाओं में छिपे गूढ़ व आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए भागवत भास्कर महामनस्विनी विदुषी सुश्री आस्था भारती जी ने कहा- आज विज्ञान अपनी चरम सीमा पर है| परंतु सुख-सुविधा के साधनों का ढेर लगाने वाले विज्ञान के होने पर भी हमारे जीवन में अशांति बनी हुई है| समाज में आत्महत्या की दर बढ़ रही है| मंगल ग्रह की खोज तो विज्ञान ने की लेकिन जीवन में मंगल कैसे आए, इसका उत्तर उसके पास भी नहीं है| इन प्रश्नों का उत्तर केवल अध्यात्म ही दे सकता है| तभी तो अध्यात्म को विज्ञानों का विज्ञान कहा गया है|
Science of lord is the science of sciences. श्रीमदभगवद्गीता के अनुसार “अध्यात्म ज्ञान नित्यत्वं तत्व ज्ञानार्थ दर्शनं” व श्रीमदभागवतमहापुराण में “ज्ञानम निःश्रेयसार्थाय पुरुषस्य आत्म दर्शनं” कहा गया| शास्त्र-ग्रंथों ने तो सदा इस शरीर में ईश्वर के दर्शन को ही अध्यात्म, धर्म या ज्ञान कहा| देह रूपी मन्दिर में परमात्मा के प्रकट होने पर ही मानव सच्ची शान्ति को प्राप्त कर पाता है| आज समाज में प्रचलित अनेक ध्यान की पद्धतियों को अपनाकर भी मानव और समाज अशांत है| गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का कथन है- Merely closing of physical eyes is not Dhyan (Meditation). It is upon opening of the Divine (Third) Eye that the process of meditation begins. अर्थात् सिर्फ नेत्रों को मूँदकर बैठ जाना ही ध्यान नहीं है| इसके लिए सच्चिदानंद परमात्मा रूपी ध्येय का अंतर में प्रकट होना आवश्यक है| ध्याता रूपी धनुर्धर के सामने परमात्मा रूपी लक्ष्य के होने पर ही ध्यान सधता है| ध्येय + ध्याता = ध्यान . Meditation is direct conference with God. मान लीजिए, आप श्रीकृष्ण के दर्शन करने द्वारका जाना चाहते हैं| द्वारका पहुँचने के लिए सबसे पहले आपको यहाँ से रवाना होना होगा... फिर कुछ journey करनी होगी... तभी आप अपनी destination तक पहुँच पाएंगे| ठीक ऐसे ही केवल विचारों को सुनने मात्र से कुछ नहीं होगा| अमल, मनन की डगर पर चले बिना परिवर्तन की मंज़िल नहीं मिल सकती| Transformation का यही formula हमारे ऋषियों ने भी दिया- आत्मा वा अरे श्रोतव्यो मन्तव्यो द्रष्टव्यः निदिध्यासितव्यो यानि पहले परमात्मा के बारे में सुनो फिर ग्रहण किए गए विचारों पर मनन-मंथन करो कि हम सबको भी तो उसकी आवश्यकता है| यह human body हमें मिली ही उस ईश्वर की भक्ति के लिए है| जब यह समझ आ जाए तो फिर पूर्ण सतगुरु की शरण में बैठकर ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करो और उस ईश्वर का दर्शन करो| फिर निरंतर ब्रह्म-तत्त्व की ध्यान-साधना करो| देवी रुक्मिणी जी भी ब्राह्मण की सहायता से ही श्रीकृष्ण से मिल पाई| आज श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के विवाह उत्सव में जैसे खुश होकर श्रद्धालु झूमे-नाचे, ऐसे ही गुरु द्वारा ईश्वर दर्शन होने पर आत्मा भी आनन्दमग्न हो नाच उठती है फिर जीवन का हर दिन आनंद उत्सव बन जाता है!
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