जबलपुर। हाईकोर्ट के अधिवक्ता अनुराग साहू द्वारा प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। इस बात को गंभीरता से लेते हुये स्टेट बार कौंसिल ने शनिवार 1 अक्टूबर को सम्पूर्ण प्रदेश के न्यायालयों में अधिवक्ताओं का एक दिवसीय प्रतिवाद दिवस बुलाया है।
स्टेट बार कौंसिल के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने हाई कोर्ट सहित प्रदेश के समस्त जिला एवं तहसील अधिवक्ता संघो से अपील की है की वे प्रतिवाद दिवस मनाते हुए सभी अधिवक्ता न्यायलयों से विरक्त रहे।
स्टेट बार कौंसिल के उपाध्यक्ष आर के. सिंह सैनी ने बताया की जबलपुर के अधिवक्ता अनुराग साहू कुछ अधिकारिओं व अधिवक्ता की प्रताड़ना से तंग आकर शुक्रवार को आत्महत्या कर ली थी जिसे उन्होंने अधिवक्ताओं के साथ अन्याय बताते हुए अधिवक्ता हित में सभी अधिवक्ताओं से एकजुट होकर प्रतिवाद दिवस को सफल बनाने की अपील की। राज्य अधिवक्ता परिषद के उपाध्यक्ष आर के सिंह सैनी ने बताया कि कुछ अधिवक्ताओं व अधिकारियों की प्रताड़ना से तंग आकर अधिवक्ता अनुराग साहू ने आत्महत्या की है। उन्होंने हाईकोर्ट परिसर में अधिवक्ताओं पर लाठीचार्ज की घटना का निंदा की है। उन्होंने कहा कि लाठीचार्ज में कई अधिवक्ताओं को चोट आई है। पुलिस बर्बरता पर उनके खिलाफ कार्रवाई के संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र लिखा जाएगा। शिवपुरी में भी की रहेंगे विरत
जिला अभिभाषक संघ की ओर से एडवोकेट पंकज आहूजा ने आवश्यक सूचना जारी करते हुए कहा की जबलपुर की घटना को लेकर सभी सम्मानीय अधिवक्तागण से निवेदन है कि कल सभी अधिवक्ता अपने कार्य से समय 11 बजे से विरत रहेंगे एवं 12 बजे जिला प्रधान एवं सत्र न्यायाधीश को ज्ञापन देंगे।ये है पूरा मामला
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय परिसर में शुक्रवार को एक अधिवक्ता की कथित आत्महत्या की घटना के बाद वकीलों ने जोरदार प्रदर्शन किया। साथी वकील की आत्महत्या से नाराज वकीलों चीफ जस्टिस की कोर्ट में तोड़फोड़ कर दी। सुरक्षा अधिकारी से हाथापाई भी की। वकील धरने पर बैठ गए। अधिवक्ता द्वारा आत्महत्या किए जाने से आक्रोशित अधिवक्ता साथियों ने हाईकोर्ट परिसर में शव रखकर प्रदर्शन किया। इस दौरान अधिवक्ताओं ने स्टेट बार काउंसिल की बिल्डिंग स्थित एक वरिष्ठ अधिवक्ता के ऑफिस में आग लगा दी। आक्रोशित अधिवक्ताओं का आरोप है कि जमानत के प्रकरण में जस्टिस व वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा विपरीत टिप्णपी किए जाने के कारण साथी अधिवक्ता ने आत्महत्या की है। देश का संभवतया यह पहला मामला है कि विपरीत टिप्पणी के किसी अधिवक्ता ने आत्महत्या की है।
इस मामले को लेकर हुई घटना
बता दें कि कटनी में पदस्थ टीआई संदीप अयाची के खिलाफ एक महिला आरक्षक की शिकायत पर महिला थाना जबलपुर ने दुष्कर्म का प्रकरण दर्ज किया था। हाईकोर्ट ने थाना प्रभारी के अग्रिम जमानत याचिका निरस्त कर दी थी। गिरफ्तारी के बाद थाना प्रभारी ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दायर किया था। हाईकोर्ट जस्टिस ने आवेदन पर गुरुवार को सुनवाई की थी। एकलपीठ ने आवेदन पर शुक्रवार को पुन: सुनवाई निर्धारित की थी। आवेदक की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त तथा अधिवक्ता अनुराग साहू उपस्थित हुए थे। लंच के बाद अधिवक्ता अनुराग साहू ने अपने आधारताल स्थित घर पहुंचने के बाद फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। घटना की जानकारी मिलने पर साथी अधिवक्ता उसके घर पहुंचे और शव लेकर हाईकोर्ट परिसर आ गए। आक्रोशित अधिवक्ता शव लेकर चीफ जस्टिस के कोर्ट तक पहुंच गए और मिलने के लिए हंगामा करने लगे। इस दौरान एक अधिवक्ता ने अपनी हाथ की नस काट ली थी। आक्रोशित अधिवक्ताओं का आरोप था कि सुनवाई के दौरान जज तथा वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त द्वारा विपरित टिप्पणी किए जाने के कारण अधिवक्ता अनुराग साहू ने आत्महत्या की है। घटना की जानकारी मिलने पर बड़ी संख्या में पुलिस बल हाईकोर्ट परिसर में पहुंच गया था। पुलिस बल ने आक्रोशित अधिवक्ताओं को चीफ जस्टिस कोर्ट से हटाया तो वह परिसर में स्थित हनुमान मंदिर के सामने शव रखकर प्रदर्शन करने लगे। इसके बाद उन्होंने राज्य अधिवक्ता परिषद के बिल्डिंग में स्थित वरिष्ठ अधिवकता मनीष दत्त के ऑफिस में आग लगा दी। इस दौरान उनकी पुलिस कर्मियों से झड़प भी हुई। पुलिस को स्थिति नियंत्रित करने हल्का बल भी प्रयोग करना पड़ा। इधर पुलिस अधीक्षक सिध्दार्थ बहुगुणा ने बताया कि आक्रोशित अधिवक्ताओं ने आगजनी तथा पुलिस के साथ झूमाझटकी की। स्थिति को नियंत्रित करने पुलिस को हल्का बल प्रयोग करना पड़ा और स्थिति पूरी तरह से नियंत्रित है।
सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार नहीं बल्कि कई बार हाईकोर्ट और निचली अदालतों के जजों को अनावश्यक टिप्पणियों से बचने की नसीहत दी है। पिछले साल कोरोना से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव, एस. रवींद्र भट की बेंच ने कहा था कि उच्च न्यायालयों के जजों को सुनवाई के दौरान अनावश्यक और बिना सोचे-समझे टिप्पणी करने से बचना चाहिए। क्योंकि वे जो कहते हैं, उनके काफी गंभीर प्रभाव हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जजों को अपनी बात सोच-विचार करके ही कहनी चाहिए। जब हम उच्च न्यायालय के किसी फैसले की आलोचना कर रहे होते हैं, तब भी हम हमारे दिल में क्या है, यह नहीं कहते। संयम बरतते हैं। हम उम्मीद करेंगे कि इन मुद्दों से निपटने के लिए उच्च न्यायालयों को स्वतंत्रता दी गई है। दरअसल, कोरोना मामले में सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग सबसे अधिक जिम्मेदार है। उसके अधिकारियों पर हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए। इसी तरह से दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों पर सख्त टिप्पणियां की थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार नहीं बल्कि कई बार हाईकोर्ट और निचली अदालतों के जजों को अनावश्यक टिप्पणियों से बचने की नसीहत दी है। पिछले साल कोरोना से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव, एस. रवींद्र भट की बेंच ने कहा था कि उच्च न्यायालयों के जजों को सुनवाई के दौरान अनावश्यक और बिना सोचे-समझे टिप्पणी करने से बचना चाहिए। क्योंकि वे जो कहते हैं, उनके काफी गंभीर प्रभाव हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जजों को अपनी बात सोच-विचार करके ही कहनी चाहिए। जब हम उच्च न्यायालय के किसी फैसले की आलोचना कर रहे होते हैं, तब भी हम हमारे दिल में क्या है, यह नहीं कहते। संयम बरतते हैं। हम उम्मीद करेंगे कि इन मुद्दों से निपटने के लिए उच्च न्यायालयों को स्वतंत्रता दी गई है। दरअसल, कोरोना मामले में सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग सबसे अधिक जिम्मेदार है। उसके अधिकारियों पर हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए। इसी तरह से दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों पर सख्त टिप्पणियां की थीं।
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