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धमाका: कै अम्मा महाराज की जयंती पर जानिए उनके बारे में, 13 को ग्वालियर में राष्ट्रीय मैराथन सुबह 7 बजे तो शिवपुरी में होंगे अनेक आयोजन

बुधवार, 12 अक्टूबर 2022

/ by Vipin Shukla Mama
सेवा—समर्पण भाव के साथ मनाई जाएगी राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती
ग्वालियर/शिवपुरी। भाजपा की अग्रणी नेता कैलाशवासी राजमाता श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया की जयंती पर ग्वालियर शिवपुरी सहित संभाग में अनेक आयोजन होंगे। 13 नवंबर करवा चौथ पर ग्वालियर में राष्ट्रीय मैराथन प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी। जिसमें लाखों के इनाम रखे गए हैं।
प्रतियोगिता सुबह सात बजे से होगी। 
इधर दूसरी तरफ शिवपुरी में भाजपा उनकी जयंती सेवा—समर्पण भाव के साथ गुरूवार को मनाएगी। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे जिसमें भाजपा नगर मंडल शिवपुरी एवं पुरानी शिवपुरी मंडल द्धारा सुबह 9 बजे माधवचौक पर भोजन वितरण किया जाएगा। संजय गौतम द्धारा सुबह 9 बजे माधवचौक पर सुंदरकांड पाठ का आयोजन करवाया जाएगा। कै. राजमाता विजयाराजे सिंधिया समिति के तेजमल सांखला  11:30 बजे अस्पताल चौराहे पर पूड़ी सब्जी वितरण, अजय भार्गव विष्ण मंदिर पर सुबह 11 बजे खिचड़ी का वितरण, आनंद जैन  9:30 बजे हनुमान मंदिर पर वृद्ध लोगों को भोजन कराया जाएगा, हरिओम राठौर अपनाघर आश्रम पर सुबह 11:30 बजे भोजन वितरण, बलवीर यादव वार्ड 24 में महल सराय आदिवासी बस्ती में शाम 6 बजे कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। विनोद शास्त्री अपना घर आश्रम, नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा द्वारा झांसी तिराहा  पर पूड़ी सब्जी का वितरण किया जाएगा। अमरदीप शर्मा  कठमई बस्ती में भोजन वितरण, जुगनू मित्त द्वारा वृद्ध आश्रम, गौरव सिंघल शाम 4 बजे माधव चौक पूड़ी सब्जी का वितरण किया जाएगा, डॉ रश्मि गुप्ता द्वारा कठमई आदिवासी बस्ती में शाम 4:00 बजे फल वितरण किया जाएगा, आशूतोष शर्मा द्धारा विष्णु मंदिर, प्रशांत राठौर द्धारा वार्ड 15 में अंबेडकर पार्क, ताराचंद राठौर द्धारा ग्वालियर वायपास पर भोजन वितरण सुबह 11 बजे, राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त प्रहलाद भारतीय हॉस्पिटल में फल वितरण, नरेंद्र बिरथरे मेडीकल कॉलेज में फल वितरण सुबह 10 बजे, अजीत ठाकुर द्वारा न्यू ब्लॉक महल सराय में फल एवं मिष्ठान वितरण किया जाएगा। मनीष अग्रवाल द्धारा ग्राम दुलई खोड़ में फल वितरण किया जाएगा।
जानिए उनके बारे में, तन्मय जैन
भारत और भारतीयता में रची बसी थीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया
 12 अक्टूबर जयंती पर विशेष
उनका आत्मविश्वास,  साहस और  कौशल विलक्षण था। वह  ममतामयी थीं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ग्वालियर, मध्यप्रदेश की प्रगति और विकास के लिए  समर्पित कर दिया था । वह पूरी तरह से जन सेवा के लिए समर्पित थीं। वह निडर थी। हमेशा लोगों के बीच रहकर  काम  करने में उन्हें आनंद आता था ।  एक तरफ उनमें  सादगी , सरलता , संवेदनशीलता  की  त्रिवेणी  बसती  थी,  वहीं जन -जन के लिए वो हमेशा सुलभ रहने वाली थी।  देश के मानस पटल पर  कभी यदि कुशल  नेतृत्व कला दिखाने  वाली भारत की सशक्त महिलाओं की सूची बनेगी तो उसके केंद्र में सबसे पहले  राजमाता श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। जब-जब भी भाजपा और जनसंघ  के स्वर्णिम  इतिहास का जिक्र होगा उसमें राजमाता विजयाराजे सिंधिया का नाम बढ़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा। राजमाता के नाम से जानी जाने वाली विजयराजे सिंधिया भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थी।
राजमाता  अपने  विचारों, सिद्धांतों के प्रति हमेशा अडिग रहने वाली थीं। भारतीयता में रची बसी वो ऐसी विदुषी जननायिका थीं जिन्होंने महलों की विलासिता और वैभव को छोड़कर हमेशा जनता से जुड़कर न केवल  उनकी समस्याओं को उठाया बल्कि संघर्ष करने से कभी नहीं घबराई।  उन्होंने सड़क पर उतरकर सबको राजमाता होने के मायने समय -समय पर बताये और राजमाता से  लोकमाता बन गईं। उन्होंने जीवन पर्यन्त आम इंसान की जिंदगी को  शिद्दत के साथ जिया और अपनी जनसेवा की ललक, तीव्र उत्कंठा से आम जनता के दिलों में  विशेष  छाप  छोड़ी ।   राजमाता जन -जन  से जुड़ी रही और  उनके बीच  रहकर महिलाओं को  हमेशा आगे बढ़ने के लिए  प्रेरित करती रहीं।  राजमाता के  व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण था जो  हर किसी को हमेशा राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करता था।  पद और सत्ता की लालसा हर किसी को आज आकर्षित करती है लेकिन राजमाता  इन सबसे हमेशा दूर रहीं।  उन्होंने  खुद को  हमेशा जनसेवा के लिए पूरी तरह  झोंक दिया था ।
राजमाता विजय  राजे   सिंधिया  का जन्म   मध्य   प्रदेश   के   सागर   जिले   में   राणा   परिवार   में   ठाकुर   महेंद्र   सिंह   और   चूड़ा   देवेश्वरी   देवी   के   घर   हुआ   था।   विजया   राजे   सिंधिया   के   पिता   श्री   महेंद्र   सिंह   ठाकुर   और  विंदेश्वरी   देवी उनकी  माँ   थी।   विजयाराजे   सिंधिया   का   पहला   नाम  रेखा   दिव्येश्वरी  था।   विजयाराजे   सिंधिया   का   विवाह   21   फरवरी   1941  को   ग्वालियर   के   महाराजा   जीवाजी   राव   सिंधिया   से   हुआ   था।  विजया  राजे   सिंधिया   ने   अपना   जीवन   ग्वालियर   और   मध्य   प्रदेश   की   प्रगति   और   विकास   के   लिए   समर्पित   कर   दिया  था । अपनी  प्रखर क्षमता से उन्होंने  भारतीय राजनीति को वैचारिक और नैतिक आधार देने में  सफलता पाई । सही मायने में वे ऐसी उदारमना महिला थी जिन्होंने भारतबोध को निकटता के साथ  समझा और उसकी समस्याओं के हल तलाशने के लिए कारगर  प्रयास हमेशा  किए।  वे सही मायने में एक राजमाता  से ज्यादा  समाजसेवा में रची बसी महिला थी जिनमें अपनी माटी और उसके लोगों के प्रति संवेदना कूट-कूट कर भरी हुई थी । ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ का मंत्र उनके जीवन का आदर्श था और भारत के आमजन में आज भी  उनका नाम  आदर और सम्मान से लिया जाता है ।
राजमाता   का   लालन - पालन   उनकी   दादी   ने   किया और  अपना   बचपन   एक   आम   महिला   की   तरह   बिताया।  युवावस्था  में उन्होंने   बनारस  के  वसंत   कॉलेज   और   लखनऊ   के   थोबर्न   कॉलेज   में   अध्ययन   करते   हुए   स्वतंत्रता   संग्राम   में   भाग   लिया, जहां उन्होंने आज़ादी की नई अलख जगाई ।  आत्मविश्वास से लबरेज होकर उन्होंने समाज के सामने  एक अलग छाप छोड़ी।  इसी अलहदा पहचान  ने   ग्वालियर   के   महाराजा   जीवाजी   राव   सिंधिया   का   ध्यान   आकर्षित   किया।   जीवाजी   राव   ने   पहली   मुलाकात   में   ही   राजमाता    से  विवाह का फैसला किया जिसे उन्होने  सहर्ष स्वीकार किया।  
राजमाता  ने भाजपा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ ही उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष से बनाया गया। जब पार्टी ने राम जन्मभूमि आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई तब राजमाता  ने भी इसको बखूबी आगे बढ़ाते रही । केंद्र   में   जनता   पार्टी   की   सरकार   बनी। उस   समय   तत्कालीन   नेताओं   को   कई   सरकारी   पद   दिए   गए   थे   लेकिन   राजमाता   ने   उसे   स्वीकार   नहीं   किया। बाद में  राजमाता    राष्ट्रीय   स्वयंसेवक   संघ   और   विश्व   हिंदू   परिषद   में   शामिल   हो   गईं।   राजमाता   ने   भारतीय   राजनीति   में   एक ऐसी   सशक्त महिला के तौर पर पहचान बनाई  जिसमें जनता के लिए हमेशा कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी।  उसकी दूसरी मिसाल आज तक भारतीय राजनीती में देखने को नहीं मिलती।  हमेशा  जनता से सीधा जुड़ाव, संवाद  और राष्ट्रहित  के  प्रति  सेवा करने की उनकी भावना  ने   उन्हें   राजमाता   से   लोकमाता   बना   दिया।  अपनी   सरलता, सहजता और संवेदनशीलता  से उन्होनें  सबका दिल जीत लिया  । राजघराने से ताल्लुक रखने के बाद भी जनता के हर दर्द में सहभागी बनने  की उनकी सेवा भावना का हर कोई मुरीद हो  गया।  राजमाता   1957 में पहली बार राजनीति में आई और उन्होंने गुना से चुनाव लड़ा था और 1989 से गुना से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर संसद भी पहुंची  जिसके बाद  1991, 1996 और 1998 में भी वह इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचती रही। उन्होंने 1999 में चुनाव नहीं लड़ा। जनवरी 2001 में उनका निधन हो गया।
जनसंघ   में   एक   प्रभावशाली   और   सबसे   लोकप्रिय   नेताओं   में   से  राजमाता  एक   थी।   उनके   नेतृत्व   में   जनसंघ   ने   1971   के   लोकसभा   चुनावों   में   इंदिरा   गांधी   की   लहर   का   सामना   किया   और   ग्वालियर   क्षेत्र   में   तीन   सीटें   जीती।  भारतीय   जनसंघ   से   भाजपा   तक   उनकी   यात्रा   में   उनेक   उतार - चढ़ाव   आए लेकिन    उन्होंने   अपने   सिद्धांत   और   विचारधारा   के   प्रति   जो   समर्पण   रहा   उसे   कभी   नहीं   छोड़ा ।  अटल   जी   और   आडवाणी   1972   में   उनके   सामने   आए।  साथ बैठकर  उन्हें   एक   बार   जनसंघ   का   राष्ट्रीय   अध्यक्ष   बनाने   के   लिए   दोनों    ने   मंत्रणा  भी की।   राजमाता   ने   कहा   कि   मुझे   एक   दिन   का   समय   चाहिए।   राजमाता   जब   दतिया  के प्रमुख    पीतांबरा माता के शक्तिपीठ गई ,  तो    गुरुजी   के   साथ   चर्चा   की   और  अटल   और   आडवाणी  जी  से   कहा   कि   वह   एक   कार्यकर्ता   के   रूप   में   भारतीय   जनसंघ   की   सेवा   करना   जारी   रखेंगी।   पदों   के   प्रति   उनमें   कभी   कोई   आकर्षण   नहीं   था।  वह इसे ठुकारने में भी देरी नहीं लगाती थीं और खुलकर सबके सामने अपनी बात मजबूती एक साथ रखती थीं। 
अटल,  आडवाणी और कुशाभाऊ ठाकरे  जी जैसे राजनीति के पुरोधाओं के सानिध्य को पाकर वह अभिभूत हुई और  भारतीय  जनसंघ को पल्लवित करने में अपनी जी-जान लगाई।  वह कई दशकों तक जनसंघ की सदस्य रहीं। जनसंघ के नेता के कारण राजमाता सिंधिया ने पूरे देश का दौरा किया और पार्टी के लिए खुलकर  प्रचार किया।  भाजपा के लिए वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करने में राजमाता सिंधिया ने बड़ा महत्वपूर्ण  योगदान दिया। जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कराया  तो उन्होंने  राजमाता को अपने पास बुलाया और उनसे 20 सूत्रीय कार्यक्रम का समर्थन करने को कहा था। उस समय  राजमाता ने अपनी दृढ़ता का परिचय देते हुए इंदिरा के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि मैं जनसंघ की विचारधारा को नहीं छोड़ सकती। उन्होंने यह तक कह दिया कि मैं जेल जाना पसंद करूंगी लेकिन आपातकाल जैसे काले कानून का कभी समर्थन नहीं करूंगी। विचारधारा के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता शायद ही आज के दौर में किसी नेता में देखने को मिले।  राजमाता ने इंदिरा के सामने झुकने के बजाए जेल जाना पसंद किया और अपनी विचारधारा  से नहीं डिगने दी।
एक बार सन 1980   में   जनता   पार्टी   के   तत्कालीन   अध्यक्ष   चंद्रशेखर   ने   राजमाता   से   आग्रह   किया   कि   वे    रायबरेली   से   जनता   पार्टी   की   ओर   से   इंदिरा   गांधी   के खिलाफ   लोकसभा   चुनाव   लड़ें।   राजमाता   ने   कहा   कि   पार्टी   जो फैसला करे वह शिरोधार्य है।   राजमाता  खुद  रायबरेली   गईं  और   इंदिरा   गांधी   के   खिलाफ   चुनाव   लड़ा।   वे   पीछे   नहीं  हटी ।   बेशक  उस दौर में वह   चुनाव   हार   गई  लेकिन   उन्होंने  संगठन   के   निर्णय  का पालन कर राजनीति में अपना आदर्श स्थापित किया ।
भारतीय राजनीति में सिंधिया राजघराने की बात जब भी होती है तो इस राजघराने के बेटा - बेटियों की चर्चा खूब होती है। विजया राजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया पहले जनसंघ में रहे। बाद में वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बने। उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में भी देश की सेवा की । माधवराव सिंधिया के बेटे और विजयराजे सिंधिया के पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्तमान में भाजपा में हैं और मोदी सरकार में  कैबिनेट मंत्री  हैं। विजयराजे सिंधिया की बेटीया वसुंधरा राजे और  उनकी राजनीतिक विरासत को संभाले यशोधरा राजे भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं जबकि यशोधरा राजे सिंधिया लोकसभा में भाजपा की ग्वालियर से 2 बार सांसद रही और  वर्तमान में वह मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। 
लेकिन सही मायनों में विजयाराजे सिंधिया की विरासत को आगे बढ़ाने का काम मध्यप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिँधिया कर रही हैं।  कम समय में अपनी जनसेवा से  यशोधरा राजे ने  मध्य प्रदेश की राजनीती में बड़ा मुकाम हासिल किया है।  राजमाता सिंधिया की बेटी  यशोधरा राजे सिंधिया मध्य प्रदेश में आज किसी के परिचय की मोहताज नहीं हैं।  यशोधरा राजे  ऐसी सियासतदां हैं  जिनमें  जनता की परेशानियों को समझने और तुरंत फैसले लेने की राजमाता जैसी गजब की क्षमता है  और कार्यकर्ता भाव जीवित रहने के कारण वे आज जन -जन  में काफी लोकप्रिय हैं ।  जनता के हर दर्द में वो  सहभागी बनती हैं।  जनमर्म को  बखूबी समझती  हैं और दिन- रात लोगों की सेवा में तल्लीन रहती हैं।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया महिला सशसक्तिकरण की मजबूत पक्षधर थीं। महिलाओं का सम्मान, बेटियों की शिक्षा के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्य किये।
मां की दिखाई राह पर चल रही बेटी 
अब उन्हीं के कार्यों को उनकी दिखाई राह पर मध्यप्रदेश की कैबिनेट मंत्री श्रीमंत यशोधरा राजे सिंधिया पूरी सूझबूझ औऱ दृढ़ता के साथ आगे बढ़ा रही हैं। मध्यप्रदेश की खेल अकादमियों में बेटियां बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश और देश का नाम रोशन कर रही हैं। विगत वर्षों से बेटी है तो कल है और बेटी पढ़ेगी आगे बढ़ेगी की थीम पर प्रदेश में प्रतिवर्ष विजयाराजे सिंधिया राष्ट्रीय महिला मैराथन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता रहा है। इस वर्ष भी 13 अक्टूबर को ग्वालियर में मैराथन आयोजित की गई है। जिसमें देश भर की महिलाएं और बेटियां इस मैराथन में भाग लेकर महिला सशक्तिकरण का संदेश देंगी।

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