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धमाका धर्म: नास्तिक को भी शांति चाहिए और शांति पाने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है धर्म : संत कुलदर्शन जी

सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

/ by Vipin Shukla Mama
युवा जाग्रति शिविर में जैन संत ने बताया मंदिर में भगवान के दर्शन और पूजा करने की विधि
शिवपुरी। मेरे पास एक सज्जन आए और उन्होंने कहा कि महाराज मैं नास्तिक हूं, भगवान को नहीं मानता इसलिए मैं मंदिर क्यों जाऊं। मैंने उनसे कहा कि ठीक है तुम भगवान को नहीं मानते, मंदिर में भी तुम्हारी आस्था नहीं है, लेकिन एक सवाल का जवाब दो, क्या तुम शांति चाहते हो या नहीं तो उन्होंने कहा कि शांति तो मानव जीवन का लक्ष्य है। मैंने उनसे कहा कि शांति पाने का धर्म से श्रेष्ठ कोई मार्ग नहीं है। जीवन में शांति और समाधि की ओर सिर्फ धर्म से ही पहुंचा जा सकता है। उक्त हृदयस्पर्शी उद्गार आराधना भवन में आयोजित युवा जाग्रति शिविर में प्रसिद्ध जैन संत कुलदर्शन विजयजी ने व्यक्त किए। शिविर में बाल मुनि और केडी महाराज के नाम से विख्यात जैन संत ने बताया कि मंदिर जाने से कौन-कौन से दोष लग सकते हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है। परमात्मा दर्शन की उचित विधि क्या है? परमात्मा की कैसे पूजा की जाती है? मंदिर में तिलक लगाने का क्या महत्व है और क्यों मंदिर में तीन परिक्रमाएं लगाई जाती हैं? शिविर में आचार्य कुलचंद्र सूरि जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। शिविर में मंदिर पूजा की विधि का बाकायदा प्रदर्शन भी किया गया। शिविर के लाभार्थी नथमल जी इंदर कुमार बुरड़ परिवार थे जिनका चातुर्मास कमेटी के पदाधिकारी मुकेश जैन, विजय पारख और समाज के अध्यक्ष दशरथमल सांखला ने बहुमान किया।
जाग्रति शिविर में संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि जिस तरह से राजनेताओं से मिलने के लिए आपको प्रोटोकॉल का पालन करना पड़ता है उसी तरह से मंदिर में प्रवेश के लिए भगवान से साक्षात्कार हेतु आपको प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए। मंदिर में हृदय के भाव और भगवान का प्रभाव आपके मनोमस्तिष्क पर होना चाहिए। जबकि संसार का अभाव होना चाहिए। विचारों का त्याग कर आप मंदिर में प्रवेश करें। साथ ही अपने स्वभाव में आएं। खुद के भीतर झांकें, दूसरों के दोषों को देखना बंद करें। मंदिर में जाने के लिए स्नान कर आपको शुद्ध होना चाहिए। मुख शुद्धि करें, गरिमापूर्ण वस्त्रों को धारण करें, मुखपोष रखें, मंदिर जाएं तो कभी खाली हाथ न जाएं। मंदिर में संभव हो तो घर से नंगे पांव आएं। मंदिर के द्वार पर प्रणाम कर निसीहि बोलें। इसका अर्थ है कि मंदिर में मैं सांसारिक बात नहीं करूंगा। मंदिर में अपने माथे पर तिलक लगाएं, तिलक आज्ञाचक्र पर लगाया जाता है जिसका अर्थ है कि जिसके लिए यह तिलक लगाया गया है मैं उसकी आज्ञा में रहूंगा। तिलक उध्र्वगमन होना चाहिए जो आत्मा की उन्नति का सूचक है। भगवान की मूर्ति के समक्ष नमस्कार करें। परमात्मा के प्रति बहुमान (आदर, सम्मान) व्यक्त करने के लिए परिक्रमा लगाई जाती है। तीन परिक्रमाएं इसलिए लगाई जाती है ताकि परमात्मा की तरह मेरे जीवन में भी ज्ञान, दर्शन और चरित्र आए। परमात्मा का स्तूतिगान करें, उनके गुणों का बखान करें। मंदिर में पूजा करने के लिए हमेशा पूजा के वस्त्रों में शुद्ध रूप में आना चाहिए। भगवान का अभिषेक करें, अभिषेक कर भगवान की मूर्ति को जल से इस भावना से साफ करें कि हे प्रभु मेरे कर्म रूपी मैल को भी आप दूर करें। अभिषेक हमेशा सूर्योदय के बाद होना चाहिए। इसके बाद भगवान की चंदन पूजा करें। उन्होंने कहा कि केशर पूजा से भगवान की मूर्ति को क्षति पहुंचती है। फिर भगवान को पुष्प अर्पित करें, ईश्वर को अखण्ड और सुगंधित पुष्प अर्पित करना चाहिए। धूप पूजा इस भावना के साथ करें कि हे ईश्वर मेरे दुर्गुणों को दूर करो। दीपक पूजा और अक्षत पूजा करो। तत्पश्चात नैवेध पूजा करें, शुद्ध और अच्छी मिठाई भगवान को अर्पित करें फिर फल पूजा करें। महाराज श्री ने बताया कि भगवान को अर्पण करने हेतु श्रेष्ठ फल श्रीफल है इसके बाद मंगल आरती करें।
सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले स्कूलों को किया गया सम्मानित
9 से 19 सितम्बर तक आयोजित शताब्दी महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले शहर के 10 स्कूलों को युवा जाग्रति शिविर के अंतर्गत सम्मानित किया गया। इस अवसर पर स्कूल संचालकों को पांच-पांच हजार रूपए की राशि भेंट की गई। इस कार्यक्रम को आयोजित करने में युवा सौरभ सांखला की प्रमुख भूमिका रही और कार्यक्रम में उन्हें श्वेताम्बर समाज के अशोक कोचेटा, सुनील सांड और संदीप पारख ने सम्मानित किया। इस अवसर पर श्री गौतम स्वामी जैन संत से पधारे ट्रस्ट मंडल ने आचार्य कुलचंद सूरि जी से आगामी चातुर्मास अहमदाबाद में करने की विनती की। उनका भी कार्यक्रम में सम्मान किया गया। शाम को गुरू धर्म की मनमोहक अंग रचना एवं भक्ति का सुंदर आयोजन हुआ।







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