दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 10% आरक्षण दिए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10% आरक्षण मिलता रहेगा।
चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 2019 में किए गए 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली 30 याचिकाओं पर चार अलग अलग फैसले दिए। बेंच ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है। 50% की सीमा को पार करना बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। 50% की सीमा फिक्स नहीं है, बल्कि लचीली है। मालूम हो, इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने कहा था कि आरक्षण के लिए 50% की सीमा है और उसे पार नहीं किया जाना चाहिए। ताजा मामले में सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच आरक्षण के समर्थन में फैसला दे चुकी है। इसके बाद अगस्त 2020 में मामला 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया था।
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ईडब्ल्यूएस संविधान के मूल ढांचे के विपरीत नहीं
आरक्षण न सिर्फ सामाजिक बल्कि आर्थिक रूप से वंचित वर्ग को भी समाज में शामिल करने और समानता दिलाने में भी अहम भूमिका निभाता है। ईडब्ल्यूएस कोटा संविधान के मूल ढांचे को न तो नुकसान पहुंचाता है, न ही मौजूदा आरक्षण संवैधानिक व्यवस्था को प्रभावित करता है। संशोधन बुनियादी ढांचे का उल्लंघन इसलिए नहीं करता है, क्योंकि यह आर्थिक मानदंडों पर आधारित है।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को अलग वर्ग म्रानना सही होगा। इसे संविधान का उल्लंघन नहीं कह सकते। यह नहीं कह सकते कि सदियों पुरानी जातीय व्यवस्था से आरक्षण शुरू हुआ। हालांकि आजादी के 75 साल बाद हमें समाज के हितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरूरत है। संसद में एंग्लो इंडियन के लिए आरक्षण खत्म हो चुका है। इसी तरह आरक्षण की भी एक समय सीमा होनी चाहिए।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी
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ईडब्ल्यूएस कोटा बेमियाद के लिए नहीं बढ़ाया जाए
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर का संविधान निर्माण के समय विचार था कि आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ 10 साल तक रहे। मगर यह आजादी के 75 साल बाद भी जारी है। मैं ईडब्ल्यूएस संशोधन को सही ठहराता हूं। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय को सुरक्षित रखना है। हालांकि हमें आरक्षण को निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए। ईडब्ल्यूएस कोटा को अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए।
सरकार इसे अन्य तरीकों से दूर कर सकती थी
जस्टिस एस रविंद्र भट ने अपना व चीफ जस्टिस का असहमति वाला फैसला सुनाया। कहा, आर्थिक बदहाली और आर्थिक पिछड़ापन इस संशोधन का मूल है। इस हिसाब से तो यह संशोधन संवैधानिक रूप से अक्षम है। आरक्षण की व्यवस्था को ऐसे ही किसी को मुफ्त पास के तौर पर नहीं दिया जा सकता। जिस आर्थिक आधार को सरकार ने लिया है, उसे अन्य तरीकों से दूर कर सकती थी।
जस्टिस एस रविंद्र भट
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फैसले का मौजूदा आरक्षण पर क्या होगा असर
• फैसले का असर मौजूदा आरक्षण व्यवस्था पर नहीं पड़ेगा। यह आरक्षण अतिरिक्त होगा। सरकार मौजूदा 50% एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण को डिस्टर्ब नहीं करेगी। सरकार सामान्य श्रेणी में से 10% आरक्षण देगी। एक तरह से सामान्य श्रेणी की सीटों में से ही सामान्य श्रेणी के आर्थिक पिछड़ों को आरक्षण दिया जाएगा।
इसमें एससी-एसटी, ओबीसी शामिल होंगे ?
ऐसी मांग का कोई तार्किक आधार नहीं है। ईडब्ल्यूएस कोटा सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए है। इसमें एससी-एसटी और ओबीसी के गरीबों को इसलिए शामिल नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस वर्ग के गरीब लोगों को तो पहले ही जातिगत आरक्षण व्यवस्था के तहत आरक्षण का लाभ मिल रहा है।
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संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ
मैं जस्टिस एस रविंद्र भट के फैसले से पूरी तरह सहमत हूं। आर्थिक आधार पर आरक्षण देना गलत है और यह संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।
संविधान विशेषज्ञ डॉ. आदिश चंद्र अग्रवाल
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