करैरा। करैरा के फिल्टर प्लांट के पास स्थित अष्ठ भैरवी मनकामेश्वर महादेव मन्दिर पर भक्ति भाव के साथ माता तुलसी जी एवम् भगवान शालिग्राम ठाकुर जी का विवाह वेदमंत्रोचार के साथ संपन्न हुआ। इसके पूर्व विवाह के मांगलिक कार्य चार नवंबर से प्रारम्भ हो चुके थे जिसमें श्री गणेश पूजन तेल, मण्डप के बाद 6 नवंबर को टीका परिक्रमा एवम् प्रीतभोज हुआ ,7 तारीख को प्रातः शुभ विदाई के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। तुलसी माता के परिवार से श्री गंगागिरी महाराज एवम् शालिग्राम भगवान ठाकुरजी के परिवार से महंत श्री रामदास महाराज तो वहीं व्यवस्थापक पवनेश गिरी, बालिकदास महाराज, श्रीमती कमलेश सुरेश तिवारी, श्रीमती संध्या राजकुमार शर्मा शास्त्री श्रीमती राजकुमारी कमल किशोर दुबे। विनीत श्री मती हंसमुखी जगदीश प्रसाद नीखरा, जीवनलाल कनकने पुत्रवधू विंध्या कनकने ,श्रीमती राजकुमारी धरमू यादव ,उमेश कुमार पहारिया, श्रीमती रानी रवि गुप्ता ,श्रीमती सीमा अनिल गुप्ता ,गोपाल साहू एवं समस्त प्रभात फेरी भक्तगण करैरा सामिल हुए।
क्या है तुलसी विवाह की मान्यता
तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का दूल्हा और दुल्हन की तरह श्रृंगार किया जाता है। तुलसी विवाह करने से पति पत्नी के बीच प्यार बना रहता है और हर तरह की दिक्कतें दूर हो जाती हैं।
तुलसी-शालीग्राम विवाह की पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम का पूरे रस्म रिवाजों के साथ विवाह कराने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर में मां लक्ष्मी-नारायण की कृपा सदैव बनी रहती है। हर साल तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी या फिर कार्तिक द्वादशी के दिन मनाई जाती है। तुलसी विवाह विधिवत् करने से दांपत्य जीवन भी सुखमय बना रहता है। पति-पत्नी के बीच के सारे मनमुटाव तुलसी-शालिग्राम पूजा से दूर हो जाती है। तुलसी विवाह से जुड़ी पौराणिक कथा इस प्रकार है
प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था। वह बड़ा वीर और पराक्रमी था। जालंधर की वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए और अपनी रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, 'जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।' यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई।
जिस जगह वह सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। एक अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, 'हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।' तब से ही कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाने लगा।वहीं बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है।
भगवान शालिग्राम की पूजा का महत्व
श्रीमद देवी भागवत के अनुसार, कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करने से 10,000 गायों के दान का फल प्राप्त होता है। वहीं शालिग्राम का नित्य पूजन करने से भाग्य बदल जाता है। तुलसी दल, शंख और शिवलिंग के साथ जिस घर में शालिग्राम होता है, वहां पर माता लक्ष्मी का निवास होता है।
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