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जिले में ESRO (Education system reform organisation) शिक्षा प्रणाली सुधार संगठन का गठन

सोमवार, 7 नवंबर 2022

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। जिले में ESRO (Education system reform organisation) शिक्षा प्रणाली सुधार संगठन का गठन किया गया है। जानेमाने शिक्षा विद शिवा पाराशर ने संगठन का गठन करते हुए कहा की जो यह मानते हैं कि शिक्षा जीवन का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है और भारतीय शिक्षा प्रणाली एक ऐसे व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए पर्याप्त नहीं है जिसकी हमें एक नागरिक के रूप में आवश्यकता है तो फिर सभी आगे आकर इस संगठन से जुड़ना चाहिए। शासकीय सेवा में कार्यरत राज्य सेवा एवं केंद्रीय सेवाओं के कर्मचारी अधिकारी गणों के बच्चे शासकीय स्कूलों में पढ़ने चाहिए साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को लागू करना चाहिए (इलाहाबाद हाईकोर्ट उत्तर प्रदेश हेतु यह फैसला जारी कर चुका है कि प्रत्येक सरकारी कर्मचारी का बालक शासकीय स्कूल में पढ़ना चाहिए)। आज हमारे देश में बेरोजगारी, गरीबी, अमीरी की खाई गहरी होती जा रही हैं। एक व्यक्ति को अच्छा इंसान शिक्षा संस्थानो द्वारा ना बना पाना हमारे शिक्षा तंत्र का फेलियर है। इस समूह को बनाने का उद्देश्य शिक्षा तंत्र को मजबूत बनाना है जिससे देश में अच्छे नागरिकों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों देशभक्तों का निर्माण किया जा सके।
अतः यह संगठन किसी भी प्रकार से निजी विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों का विरोध नहीं करता है। इस संबंध में चर्चा उपरांत निजी क्षेत्र के विद्यालय एवं विश्वविद्यालयों हेतु कोई बीच का रास्ता या उचित मार्ग निकाला जा सकता है। ताकी निजी क्षेत्र के स्कूल एवं विश्वविद्यालय पर कोई हानिकारक असर ना हो। इस संगठन का उद्देश्य शासकीय शिक्षा प्रणाली को उत्तम एवं मानक स्तरों तक ले जाना है। 
ये सुनाया गया फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी अधिकारियों को अपने बच्चों को प्राथमिक सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाने को कहा है। ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ कोर्ट ने कार्रवाई करने को भी कहा है।
हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वह अन्य अधिकारियों से परामर्श कर यह सुनिश्चित करें कि सरकारी, अर्द्धसरकारी विभागों के सेवकों, स्थानीय निकायों के जन प्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करें. ऐसा न करने के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की जाए. यदि कोई कान्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उसके द्वारा प्राप्त सरकारी खजाने में प्रतिमाह जमा कराई जाए।साथ ही ऐसे लोगों का इंक्रीमेंट, प्रमोशन कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था करने का आदेश लागू किया जाए। कोर्ट ने गणित और विज्ञान सहायक अध्यापकों की भर्ती की 1981 की नियमावली के नियम 14 के अन्तर्गत नयेसिरे से अभ्यर्थियों की सूची तैयार करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने मुख्य सचिव से छह माह बाद कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिव कुमार पाठक कई अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने सहायक अध्यापकों की भर्ती में 50 फीसदी सीधी व 50 फीसदी पदोन्नति से भर्ती के खिलाफ याचिकाओं पर हस्तक्षेप नहीं किया। कोर्ट ने प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित कोर्ट ने सहायक अध्यापकों की भर्ती में 50 फीसदी सीधी व 50 फीसदी पदोन्नति से भर्ती के खिलाफ याचिकाओं पर हस्तक्षेप नहीं किया। कोर्ट ने प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों अध्यापकों के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में पानी आदि मूलभूत सुविधाएं मुहैया न होने पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है। अंग्रेजी कान्वेंट स्कूल, मध्य वर्ग के प्राइवेट स्कूल और उ.प्र. बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित सरकारी स्कूल।
अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए अनिवार्य न करने से इन स्कूलों की दुर्दशा है। इनमें न योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधा ले बड़े लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा के लिए जब तक ऐसे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तब तक इनकी दशा में सुधार नहीं होगा। इसलिए सरकारी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और राजकीय सहायता ले रहे लोगों के बच्चों को बोर्ड के स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाए।

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