शिवपुरी। शिवपुरी की साहित्यिक संस्था बज्मे उर्दू की मासिक काव्य गोष्ठी शहर के ए बी रोड के व्यस्ततम मार्ग पर स्थित गांधी सेवाश्रम पर आयोजित की गई। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता हाल ही में उमरा कर लौटे मोहम्मद याकूब साबिर ने की बज्म में उपस्थित सभी सदस्यों ने उन्हें शॉल उड़ाकर और हार पहना कर सम्मानित किया। इस संगोष्ठी का संचालन सत्तार शिवपुरी ने किया आरंभ में भगवान सिंह यादव ने अपनी भावपूर्ण रचनाएं पढ़ी जो बहुत सराही गई, उन्होंने कहा,
जब भी उनके पयाम आते हैं,
खुशनसीबों के नाम आते हैं,
रामकृष्ण मौर्य ने कहा,
वो जख्मों पर नमक मेरे लगा देता है,
खता कुछ भी न हो फिर भी सजा देता है,
वही नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संजय शाक्य ने कहा
दिन-रात उन अंखियों को अश्क से भिगोना है,
महबूब सितमगर है इस बात का रोना है,
वही सत्तार शिवपुरी ने कहा,
इस राहे मोहब्बत का सत्तार खुदा हाफिज,
आगाज में आंसू हैं अंजाम में क्या होगा,
बज्म के सचिव रफीक इशरत लिखते हैं,
छोड़ के मत जा हमें बाप ने बेटे से कहा,
पहले हम थे तेरे अब तू है हमारा वारिस,
इन्हीं का एक और शेर देखें,
खुद को लावारसी क्यों कर मैं कहूं ए इशरत,
मेरा वारिस है, वही जो के है सबका वारिस,
अजय अविराम ने पिता के प्यार पर मार्मिक रचनाएं पढ़ी जो बहुत सराही गईं आपने कहा,
अंधेरों में गुम हुए वो चमकना सिखाते हैं,
हराकर खुदको वो जीत दिये जाते हैं,
प्यार है परवाह भी, स्वाहा भी हुए जाते हैं,
प्यार तो करते हैं पिता, दिखा नहीं पाते हैं,
पिता की भूमिका में इरशाद जालौनवी लिखते हैं,
घर पर बच्चे थे भूखे सभी,
हमसे लुकमा न खाया गया,
मोहम्मद याकूब साबिर लिखते हैं,
भूल जाना मेरी फितरत में नहीं है शामिल,
फिर भी उस दिन की कोई बात मुझे याद नहीं,
राजकुमार भारती लिखते हैं,
कोहरे की ठंडी रजाई हटा दो दादा,
सूरज दादा, सूरज दादा,
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए मोहम्मद याकूब साबिर ने सभी सदस्यों से समय पर आने और और अच्छा लिखने के लिए कहा तरह का मिसरा ‘‘किसको कहते हैं शराफत समझो‘‘ है,

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