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धमाका विशेष: स्व. श्रद्धेय श्री अटलजी की जन्म-जयंति पर सादर स्मरण

रविवार, 25 दिसंबर 2022

/ by Vipin Shukla Mama
अटलजी का जनता में जादूई प्रभाव था, जनता अटलजी के भाषण सुनने के लिये पागलपन की सीमा तक उत्साहित रहती थी
लेखक: अरुण अपेक्षित
25 दिसम्बर 2022
स्वतंत्रता के उपरांत हमारे देश में जो प्रधानमंत्री हुये है वे हैं- पं.जवाहर लाल नेहरू, गुलजारीलाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, इन्द्रागांधी, मोरारजी देसाई, चौ.चरण सिंह, राजीव गांधी, राजा विश्वनाथप्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, नरसिंहराव, अटबिहारी वाजपेई, एच.डी.देवगोड़ा, इन्द्रप्रकाश गुजराल, मनमोहनसिंह और नरेन्द्र मोदीजी। 
इन सभी प्रधानमंत्रियों में पं.जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इन्द्रगांधी, राजीवगांधी, अटलबिहारी वाजपेई और नरेन्द्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनके दर्शन मैंने प्रत्यक्ष रूप से किये हैं। 
पं.जवाहर लाल नेहरू का सन 1961-62 में ग्वालियर आगमन हुआ था। ग्वालियर मेरी ननिहाल अर्थाथ मेरी मॉ का मायका था और इस समय मेरी मॉ स्व.श्रीमती कृष्णादेवी वर्मा (मेरे माता-पिता अपना सरनेम वर्मा लिखते थे) ग्वालियर से शिक्षा का बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त कर रही थीं। देश के प्रधानमंत्री के सामने प्रशासन को हजारों में भीड़ जुटानी थी-इस लिये प्रशासन के आदेश पर बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे तमाम शिक्षक-छात्राओं को इस जन-सभा में जाने का आदेश प्राचार्य की ओर से प्राप्त हुआ। तब हम चार भाई थे-मैं अरुण, स्व.अरविंद, अनंत और स्व.अखिल। स्व. अतुल का तब जन्म नहीं हुआ था। अनंत और अखिल चूंकी बहुत छोटे थे-इसलिये वे नाना-नानी के पास रहे और मॉ हम दोनों को अपने साथ उस जनसभा में ले गई थी तब हमने पं.जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री को अपनी आंखों से देखा। मेरी आयु तब लगभग 8 वर्ष थी।
श्रीमती इन्द्रागांधी का शिवपुरी में अनेक-बार अपनी चुनावी जनसभाओं को सम्बोधित करने के लिये आगमन हुआ और तब हमने हजारों की भीड़ में शामिल होकर पोलोग्राउन्ड पर उन्हें देखा और सुना।
सन 1983 दिनांक -06 नवम्बर मेरा जन्मदिन के एक दिन पूर्व तक  शा.कलापथक दल शिवपुरी में कलाकारों की नियुक्तियां हो चुकी थी। सात कलाकारों में से कुछ ने उपस्थिति दे दी थी और कुछ को उपस्थिति देनी थी। इसी बीच सम्भागीय कार्यालय से सभी कलाकारों को अशोकनगर में 7 नवम्बर को आयोजित पंच-सरपंच सम्मेलन में भाग लेकर कार्यक्रम देने काा आदेश हुआ। हम तीन-चार जो भी कलाकार उस दिनांक तक उपस्थित हो गये थे। अपने जिला पंचायत एवं सेवा अधिकारी (तब यह पद उपसंचालक का नहीं होताा था) के आदेश पर अशोक नगर पहुंचे।यह जनसभा तात्कालिक प्रदेश सरकार ने राजीवगांधी को हाईलाईट या यूं कहें कि जनता के सामने लोंच करने के लिये आयोजित की थी। हम कलाकार तो भीड़ का समय काटने के लिये बुलाये गये थे। गुना, ग्वालियर और नवगठित शिवपुरी कलापथक दल के हम कलाकारों ने उस समय तक अपना संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जब तक स्व.श्री राजीव गांधी मंच पर अवतरित नहीं हुये। इस तरह राजीवगांधी को अत्यंत निकट से देखने का सौभाग्य मिला। विभागीय अधिकारियों ने उस समय तक शासन के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं पर भाषण भी दिये। दोपहर के लगभग तीन बजे राजीवगांधीजी तात्कालिक प्रदेश सरकार के साथ मंच पर थे। हमें मंच से नीचे उतार दिया गया था। राजीवजी के जाने के साथ ही पंच-सरपंच सम्मेलन सम्पन्न हो गया।
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यहीं शिवपुरी के गांधी मैदान में आयोजित जन-सभा में देखने सुनने का अवसर मिला। जिला जनसम्पर्क शिवपुरी की ओर से मैं उनकी कवरेज के लिये, फोटोग्राफर सोनीजी के साथ उपस्थित हुआ था।
अब बात अटलबिहारी वाजपेईजी की जिनका कि आज जन्मदिन है। मेरा यह सौभाग्य है कि उनके साथ एक ही मंच पर बैठ कर काव्यपाठ करने का अवसर मुझे एक से अधिक बार मिला। लगभग दो बार मध्यभारतीय हिन्दी साहित्य सभा के कक्ष में आयोजित काव्यगोष्ठी में तो एक बार शीतलासहायजी के द्वारा आयोजित केंसर पहाड़ी ग्वालियर पर आयोजित कवि सम्मेलन में। अटलजी भी श्रीमती इन्द्रागांधीजी की तरह अनेक बार शिवपुरी आये हैं। अपितु उनकी तुलना में कुछ अधिक बार आये। इन्द्राजी प्रधानमंत्री हुआ करती थी तो उनके पीछे पूरा प्रशासन खड़ा होता था पर तब अटलजी जनसंध के पदाधिकारी या कार्यकर्ता की हैसियत से आते थे। तब जनसंघ इतनी बड़ी पार्टी नहीं थी। किन्तु अटलजी का जनता में जादूई प्रभाव था, जनता अटलजी के भाषण सुनने के लिये पागलपन की सीमा तक उत्साहित रहती थी। उनके साथ राजमाता श्रीमंत विजिया राजे सिंधिया भी मंच पर होती थी। तब अटलजी का प्रभामंडल बहुत बड़ा नहीं था तब वे यहां अनेक परिवारों में एक सामान्य व्यक्ति की तरह आते-जाते थे। जनसंघ के टिकिट पर अनेक बार विधायक बने स्व.सुशील बहादुर अस्थानाजी से हमारे पारिवारिक संबंध थे। सुशीलजी पर राजमाता सिंधिया का आशीर्वाद था और अटलजी से उनकी अंतरंगता थी।
अटलजी से मेरे लगाव का एक कारण मेरी मॉ भी थी। अटलजी के पिता स्व.श्री कृष्णबिहारी वाजपेईजी मेरी मॉ के शिक्षक रहे थे और मेरे नाना स्व. श्रीउत्तमनारायण जोहरीजी के सहकर्मी। आप दोनों ही एक विद्यालय में शिक्षक थे। मेरी मॉ को स्टेट के समय की बहुतसी बातें याद थी जो वे जब कभी संस्मरण के रूप में सुनाया करती थी। 
अटलजी प्रो.रामकुमार चतुर्वेदी चंचलजी के सहपाठी थे जो मेरे गुरु थे। मैं चंचलजी का सबसे प्रिय छात्र था। कवितायें लिखने के अनुराग ने मुझे अटलजी के साथ अन्य अनेक कवि-मित्रों के सम्पर्क में आने का सौभाग्य दिया जिनमें-छोटलाल भारद्वाज मुरैना, वीरेन्द्र मिश्र, राजनारायण बिसारिया ग्वालियर आदि प्रमुख रहे हैं। श्री बिसारियाजी को तो हमने अपने मध्य एम.ए.हिन्दी करते हुये आमंत्रित भी किया। उनके सम्मान में आयोजन छत्री में किया गया था जिसमें हम छात्र-छात्राओं के अलावा प्रो.चंचलजी, डॉ.विरहीजी, प्रो.राजीवजी, डॉ.के.सी.गुप्ता और प्रो.के.के.जैन प्राध्यापकों में से उपस्थित थे। बड़ा स्वाभाविक है जब दो पुराने मित्र एकत्रित हों तो वे अपने छात्र जीवन की चर्चा क्योंकर नहीं करेंगे। चंचलजी तब हिन्दी के विभागाध्यक्ष थे तो राजनारायण बिसारिया रेडियो बी.बी.सी.लंदन को छोड़ कर आ गये थे और भारतीय दूरदर्शन के महानिदेशक के पद पर थे। इस कार्यक्रम का संचालन मैंने किया था। दो मित्रों की चर्चा में अटलजी अनेक बार अनायास आ धमके।
अटलजी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर स्वदेश ने उनपर लगभग 600 पृष्ठ का विशेषांक प्रकाशित किया था। जिसमें मुझे भी एक पृष्ठ का स्थान मिल गया था। इस विशेषांक के उपसम्पादक मेरे अग्रज डॉ.उपेन्द्र विश्वास थे। इस अंक में प्रकाशित संस्मरणों के संकलन के लिये अग्रज डॉ.उपेन्द्र विश्वासजी के साथ मैं भी चंचलजी के निवास पर गया था। आज मैं अटलजी के जन्म दिवस पर उनकी पुण्य-स्मृतियों को ताजा करते हुये, उनके प्रति अपने विनम्र श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूं। मेरा प्रयास अटलजी के व्यक्तित्व के उस पक्ष को उजागर करना भी है जो एक राजनेता से हटकर अति-सामान्य व्यक्ति का था। एक कवि का था और एक अभिनेता का भी था। इस लिये यहां चित्रों में मैं अमृत-अटल ग्रंथ से कुछ पृष्ठ पोस्ट कर रहे हैं-जहां स्व.चंचलजी का अटलजी को लिया गया पूरा साक्षात्कार, डॉ.कमल वशिष्ठ का आलेख और इस नाचीज का संस्मरण भी है। पढने कर अनुग्रह करें। 

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