Big news: Due to the negligence of the famous "Birla Hospital" of Gwalior, the death of the wife of the former district judge, the consumer commission ordered a compensation of 12 lakhs.
शिवपुरी। ग्वालियर के नामी गिरामी बिरला अस्पताल की लापरवाही से पूर्व ज़िला न्यायाधीश की पत्नी की मौत हुई थी, सुनवाई के बाद दिए गए फैसले में उपभोक्ता आयोग ने 12 लाख हर्जाने का आदेश दिया हैं। बता दें कि दिनांक 09.01.2023 को जिला उपभोक्ता विवाद प्ररितोषण आयोग शिवपुरी ने श्री गौरीशंकर दुबे की अध्यक्षता में, सदस्यगण राजीव कृष्ण शुक्ला एवं अंजू गुप्ता की पीठ के द्वारा प्रकरण क्र. 529/2021 आर.एस तोमर एवं अन्य बनाम बिरला हॉस्पिटल एवं अन्य के मामले में मरीज सरला तोमर की चिकित्सीय लापरवाही के कारण मृत्यु हो जाने के कारण आवेदक परिवार को रु. 11,77,560 पर 9% ब्याज दर, रु. 50,000 मानसिक प्रताड़ना, एवं रु. 10,000 वाद व्यय का भुगतान करने का निर्णय बिरला अस्पताल एवं बिरला ट्रस्ट को सुनाया हैं| उल्लेखनीय है की आवेदक ऐ.एस.तोमर, शिवपुरी के भूतपूर्व जिला न्यायाधीश, एवं वर्तमान में ग्वालियर उपभोक्ता आयोग में अध्यक्ष पद पर पदस्थ हैं| उनकी पत्नी के बिरला अस्पताल में हुए उपचार के उपरांत जब बिरला अस्पताल द्वारा मृतक के जेवरात वापस नहीं किए गए तब आवेदक द्वारा जेवरात गायब होने का कारण पता लगाने हेतु समस्त इलाजकालीन दस्तावेज एवं सी.सी.टी.वी. फुटेज माँगे गए, जिसमें दस्तावेजों के अवलोकन से यह सिद्ध हुआ की:
1. मृतक को डॉक्टर द्वारा जो दवाई बतायी गयी, वो ना देकर अन्य दवाई दी गयी, एवं भुगतान अन्य किसी दवाई का लिया गया।
2. मृतक को कोविड मरीज घोषित किया गया था, परन्तु कोई भी आर.टी.पी.सी.आर. टेस्ट नहीं किया गया, बल्कि एच.आर.सी.टी. टेस्ट के आधार पर कोविड मरीज मान लिया गया| जबकी आई.सीआईआई.एम.आर. द्वारा कोविड का संक्रमण पता लगाने के लिए स्पष्ठ तौर पर आर.टी.पी.सी.आर. टेस्ट के निर्देश हैं, एवं एच.आर.सी.टी. टेस्ट के आधार पर मना किया गया हैं|
3. मृतक के परिजनों से ऑक्सीजन का भुगतान समस्त दिनों का लिया गया, परन्तु दस्तावेजों के मुताबिक़ प्रथम 35 घंटों तक ऑक्सीजन दिया ही नहीं गया|
4. मृतक का इलाज होम्योपेथी के डॉक्टर से कराया गया, जबकि बिरला अस्पताल एक एलॉपथी अस्पताल है|
5. मृतक को 8 रेमडीसीवीर इंजेक्शन दिए जाने का उलेख किया गया, जबकि सरकार के निर्देशनो के मुताबिक़ 6 से ज्यादा इंजेक्शन देने की अनुमति नहीं है|
6. मृतक के परिजनों से मृत्यु हो जाने के बाद भी इलाज दिखा कर पैसे वसूले गए हैं|
इसके अलावा भी कई त्रुटियाँ, एवं कमियाँ किया जाना बिरला अस्पताल के माध्यम से पाया गया, जिसका विस्तृत उल्लेख आयोग द्वारा निर्णय में वर्णित हैं|
आवेदकगण की और से पैरवी करते हुये अधिवक्ता अंचित जैन व मनोज उपाध्याय ने आयोग के समक्ष तथ्यों को सिद्ध करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय उभोक्ता आयोग की नजीरों के आधार पर आवेदकगण के हक़ में निर्णय प्राप्त किया|
जैन ने पूछे जाने पर बताया की, माननीय आयोग ने यह माना हैं की मृतक की मौत अस्पताल द्वारा की गयी त्रुटियों एवं कमियों के कारण हुयी हैं, आई.सी.एम.आर. द्वारा सपष्ट निर्देश हैं की एच.आर.सी.टी. टेस्ट के आधार पर मात्र कोविड मरीजों की जाँच की जा सकती हैं, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता की जिस मरीज का एच.आर.सी.टी. टेस्ट किया जाए वह कोविड से संक्रमित ही हो, यह गलती बिरला द्वारा की गयी, जिसका दुष्परिणाम आवेदकगणों को उठाना पड़ा हैं|
इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय की यह नजीर हैं की होम्योपैथी का चिकित्सक एलॉपथी अस्पताल में इलाज नहीं कर सकता है| चूँकि मामला सेवा में कमी का रहा है इसीलिए आयोग द्वारा बीमा कंपनी को भार मुक्त किया हैं|
बता दें की बिरला अस्पताल ग्वालियर शहर के सबसे पुराने, एवं प्रदेश के बड़े अस्पतालों में शुमार हैं| आवेदक द्वारा 10 दिवसीय इलाज के लिए अस्पताल को रु. 3,11,107 का भुगतान किया गया था| जैन द्वारा बताया गया की, आयोग ने यह भी पाया की रु.74,000 के बिल गलत रूप से वसूले गए हैं|
क्या करें या ना करें
बातचीत के दौरान जैन ने कुछ सामान्य बातों पर ध्यान देने के लिए कहा कि:
1. हमेशा उपभोक्ता को इलाज उपरांत आई.सी.एम.आर. गाइडलाइनों के तहत दस्तावेजों का अध्ययन करना चाहियें।
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