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धमाका साहित्य कॉर्नर: बज्मे उर्दू मासिक काव्य गोष्ठी जनवरी 2023 संपन्न

शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। गत दिवस शिवपुरी शहर की साहित्यिक संस्था बज्मे उर्दू की मासिक काव्यगोठी शहर के व्यस्ततम मार्ग ए.बी. रोड पर स्थित गॉधी सेवाश्रम पर आयोजित  की गई ।
वरिठ कवि विनय प्रकाश जैन नीरव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई इस काव्ययोठी का संचालन सत्तार शिवपुरी ने किया। 
आकाशवाणी शिवपुरी से राकेश सिंह राकेश ने अपनी प्रसिद्ध रचना चंदन से भी बढकर है मेरे देश की माटी, जो बहुत सराही गई। 
सचिव रफीक इशरत ने नये वर्ष के संदर्भ में कहा 
बोल बाला हो अमनो अमन का यहॉ। 
कोने कोने में हो भारत के शान्ति। 
गुलाने हिन्द का पत्ता - पत्ता कहे। 
खैर मकदम करै साले नव र्वा का सभी। 
वही सत्तार शिवपुरी ने कहा 
नये साल के इब्तिदाई की महफिल । 
हरिक कौम से आये भाई की महफिल
ये सत्तार आया वो गोपाल आया । 
नया साल आया । नया साल आया। 
वही विनय प्रकाश जैन नीरव ने कहा। 
जब मिले हम तुम तो चेहरे खुशी झलके।
दुखों का बोझ कम हो, और आपस का बहम निकले। 
अजय जैन अविराम ने जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की बात की उन्होने यह भी कहा। 
आर्दशो की ऑख फोडते, फर्क नही दुतकारों का। 
वो ना बोलेंगे, जिन पर है कर्जा इन दरवारो का। 
वहीं सजय ााक्य लिखते है।
झठे बादे है, हकिकत समझों।
जाने वाली है,ये हुकुमत समझोें।
हास्य व्यंग के कवि विनोद अलवेला कहते है। 
जंगल में बाघ न चीते । 
नेता जी शहर में काट रहे फीते। 
प्रकाश चन्द्र सेठ ने कलम और तलवार्र ाीाक से ली गई रचना पडी उन्होने कहा । 
सच कहॅू तेरा, चरित्र गिर गया है।
तू बिक गई है, तेरा स्तर गिर गया है। 
राधेयाम सोनी परदेाी लिखते है। 
महबूब मेरा गर हो जाये, मेहरवॉ तो जिन्दगी सवर जाएगी।
मानिन्द बू-ए गुले मोहब्बत बहारे चमन में विखर जाएगी। 
वहीं मोहम्मद याकूब साविर ने कहॉ। 
पहले तुम लफजे मोहब्बत समझो । 
फिर मोहब्बत की लताफत समझो।
जो भी कहता हॅू, मैं सच कहता हॅू।
बात को मेरी, गलत मत समझों। 
इरााद जालौन वी लिखते है, 
कहॉ से कहॉ आ गया है जमाना। 
अन्धेरो से निकलो जरा रोानी में। 
राम कृण मोर्य लिखते है। 
जान मुस्किल से बची है मेरी । 
लौट आया मैं गनीमत समझो 
बज्म को संबोधित करते हुए अध्यक्षीय उदवोद्यन में विनय प्रकाश जैन नीरव ने कहा। वैसे तो शिवपुरी में अच्छा लिखा जा रहा है। फिर भी हमे और अच्छा लिखने का प्रयास करना चाहिए। हमे समाज की कुरीतियों को उजागर करते हुए समाज के अनछुए पहलूओ पर अपनी लेखनी प्रखर करना चाहिए। 
अन्त में सत्तार शिवपुरी ने साहित्यकारों का आभार प्रकट करते  हुए शूक्रिया अदा किया। 

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