“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः ... मतलब-अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म है और जब धर्म पर संकट आए तो उसकी रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म है। ...... बावजूद इसके अहिंसा को अपने जीवन का मूल मंत्र मानने वाले महात्मा गाँधी ने इसे अपने आचार, विचार और व्यवहार में अपनाकर अहिंसा को स्थापित करने में एक कदम आगे बढ़कर देश और दुनिया को नई दिशा दी। बेशक वे आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार गुजरते वक्त के साथ और भी प्रासंगिक होते गए। उनकी पुण्यतिथि पर इस आलेख के जरिए करते हैं उनका पुण्य स्मरण।
आज पूरा देश महात्मा गाँधी को याद कर रहा है। उनकी 75वीं पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। भारत देश सदियों से वीरों की भूमि रहा है। देश में अनेक वीर-सपूतों ने जन्म लिया और अपनी शहादत से वतन की मिट्टी को पावन कर दिया। उन वीर शहीदों की याद में ही हर वर्ष शहीद दिवस मनाया जाता है। हालांकि भारत में विभिन्न तिथियों में शहीद दिवस मनाने की परंपरा है। इनमें 23 मार्च की तिथि भगत सिंह, राजगुरू, और सुखदेव से और दूसरी 24 नवंबर गुरु तेग बहादुर से जबकि 30 जनवरी की तिथि
महात्मा गाँधी जी से संबंधित है। शहीद दिवस की तारीख अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन शहीद दिवस की भावना एक ही है। हम उन जाबांज क्रांतिकारियों को याद कर उनके लिए श्रध्दा सुमन अर्पित करने के लिए ही यह दिवस मनाते हैं।
आज का शहीद दिवस हम समर्पित करते हैं सत्य और अहिंसा के पुजारी मोहनदास करम चंद गाँॅंधी को, जिन्हें पूरी दुनिया महात्मा गाँधी के नाम से जानती है। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गाँंधी की हत्या हुई थी।
महात्मा गाँधी ने अहिंसा परमो धर्मः को ही जीवन में अपनाया। हालांकि भगवान महावीर, भगवान बुद्ध और महात्मा गाँधी की अहिंसा की धारणाएँ अलग-अलग थीं। फिर भी वेद, महावीर और बुद्ध की अहिंसा से महात्मा गाँधी प्रेरित थे। अहिंसा की बात की जाती है तब यही खयाल आता है कि किसी को शारीरिक या मानसिक दुःख न पहुँचाना अहिंसा है। मन, वचन और कर्म से किसी की हिंसा न करना अहिंसा कहा जाता है। यहाँ तक कि वाणी भी कठोर नहीं होनी चाहिए। फिर भी अहिंसा का इससे कहीं ज्यादा गहरा अर्थ है।
महात्मा गाँधी कहते थे कि एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है अहिंसा। व्यक्ति हिंसक है तो फिर वह पशुवत है। मानव होने या बनने के लिए अहिंसा का भाव होना आवश्यक है।
गाँधी जी की सोच थी कि हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक-मजदूर एवं जमींदार-किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। निःशस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। बहादुरी, निर्भीकता, स्पष्टता, सत्यनिष्ठा, इस हद तक बढ़ा लेना कि तीर-तलवार उसके आगे तुच्छ जान पड़ें, यही अहिंसा की साधना है। शरीर की नश्वरता को समझते हुए, उसके न रहने का अवसर आने पर विचलित न होना अहिंसा है।
उनकी इसी सोच ने ने महात्मा गांधी को देश का सबसे प्रभावशाली नेता बना दिया। जिन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह को अपने एकमात्र हथियार के रूप में देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी। सामाजिक और राजनीतिक सुधार में उनकी सार्वजनिक भूमिका का परिमाण ऐसा था कि, उनके विचारों और आंदोलनों पर अमेरिकी और यूरोपीय समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तकों और रेडियो में चर्चा होने लगी थी। उनके काम को दुनिया भर के शीर्ष राजनेताओं और राजनेताओं द्वारा उत्सुकता से अनुसरण किया गया था। गाँधी पर्यावरणीय स्थिरता के अग्रदूतों में से एक थे। सर्वोत्कृष्ट गाँधीवादी प्रश्न- “एक व्यक्ति को कितना उपभोग करना चाहिए?” आज भी सच है। स्थिरता का उनका मॉडल हमारे तेजी से बढ़ते और आबादी वाले राष्ट्र में प्रासंगिक बना हुआ है। औद्योगिक विकास की ज्यादतियों के खिलाफ अभियान चलाकर और इसके परिणामस्वरूप नवीकरणीय ऊर्जा और छोटे पैमाने पर सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा देकर, गाँंधी बाद में एक जोरदार पर्यावरण आंदोलन बनने के पीछे प्रेरणा शक्ति थे। जबकि अहिंसा या अहिंसा का दर्शन गांधी का पर्याय बन गया था।
अहिंसा का उनका अभ्यास अन्य धर्मों के प्रति सम्मान और भाईचारे की भावना का विस्तार था। गाँधी ने अन्याय और सत्तावादी शासन का जोरदार विरोध किया, लेकिन बिना किसी हथियार या हिंसक कार्यों के। राज्य शक्ति के मनमाने उपयोग के लिए उनका शांतिपूर्ण और मौखिक लेकिन अहिंसक विरोध आज गाँधीवादी विरासत की प्राथमिक अभिव्यक्ति है। गाँंधी ने देश भर में महिलाओं के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सबसे उल्लेखनीय सेवा, अहमदाबाद में स्व-नियोजित महिला संघ है, जो उत्पादक सहकारी समितियों में एक मिलियन से अधिक महिलाओं को संगठित करने, उन्हें बाल और मातृ स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने और आर्थिक आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करने के लिए एक सहकारी बैंक प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है।
उनकी सोच और दूरदृष्टि ने देश को नई दिशा दी। उन्होंने अहिंसा को ही हथियार बनाया और उसे अपने आचरण में लाए। गाँधी जी के अनुसार अहिंसा केवल एक दर्शन नहीं बल्कि कार्य करने की एक बेहतर पद्धति है और मानव के हृदय परिवर्तन का एक साधन है। यही वजह थी कि उन्होंने कभी भी अहिंसा को व्यक्तिक आचरण तक ही सीमित न रखकर उसे मानव जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में लागू किया। उनका मानना था कि सत्य सर्वाच्च कानून है तो अहिंसा सर्वाच्च कर्त्तव्य है। सत्य की तरह ही अहिंसा की शक्ति भी कम नहीं है वह भी असीम है। इसी सोच ने उन्हें सत्य और अहिंसा का पुजारी बना दिया और वे देश ही नहीं दुनिया में अंहिसा परमो धर्म के महात्मा बन गए। सत्य, प्रेम और अहिंसा के ऐसे महात्मा को हमारा शत्-शत् नमन।
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