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धमाका डिफरेंट: शिवपुरी जिले का 9वी सदी में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र रहा "अरणीप्रद", जिले के साहित्यकारों ने खोज निकाला, कई अन्य ऐतिहासिक स्थलों पर भी पहुंचे

सोमवार, 2 जनवरी 2023

/ by Vipin Shukla Mama
9वी और 10 वी सदी के ऐतिहासक स्थानों पर पहुची साहित्य परिषद की यात्रा
शिवपुरी। अखिल भारतीय साहित्य परिषद की सम्पूर्ण मध्यभारत प्रान्त में आयोजित की जा रही यात्रा वृतांत के क्रम में शिवपुरी जिले में 1 जनवरी को साहित्यकारों ने कोलारस क्षेत्र के कल्पवृक्ष, केलधार प्राचीन कपिल मुनि का आश्रम व 9वी सदी में शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र रहे अरणीप्रद अर्थात आज के रन्नौद का भृमण कर जानकारी एकत्रित की।
शिवपुरी जिले के वरिष्ठ साहित्यकार व विश्लेषक पूर्व प्राचार्य लखनलाल खरे के नेतृत्व में कोलारस क्षेत्र के कल्पवृक्ष से अखिल भारतीय साहित्य परिषद की यात्रा प्रारम्भ हुई,यात्रा में वरिष्ठ लेखक प्रमोद भार्गव,विद्वान  नेत्र विशेषज्ञ डॉ एच पी जैन,अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांत महामंत्री आशुतोष शर्मा,वरिष्ठ गजलकार व इतिहासविद डॉ महेंद्र अग्रवाल,चिंतक व विचारक दिनेश वशिष्ठ, मानस मर्मज्ञ डॉ योगेंद्र शुक्ला,जयपाल जाट,प्रदीप अवस्थी व विकास शुक्ल प्रचंड ने कल्प वृक्ष उमेश कुमार जैन के बगीचे में कोलारस पहुचकर देखा,ज्ञात हुआ कि विदेशी शोध कर्ता भी इस वृक्ष पर शोध करके गए है,हाथी नुमा वृक्ष इतना मोटा था जो आस पास कही भी देखने को नही मिलता,प्रमोद भार्गव ने बताया कि मांडू में इस प्रकार के वृक्ष देखने को मिलते है पंरन्तु ये वृक्ष उन सभी से अलग हटकर है,और कौतूहल का विषय है। अगले पड़ाव में साहित्यकार प्राचीन कपिल मुनि के आश्रम केलधार पहुचे जहां गौ मुख से निकलने वाले पानी और 9 वी शताब्दी के मंदिरों के भग्नावेश इस स्थान के अति प्राचीन होने की गवाही स्वतः ही देते है,साथ ही विखंडित मूर्तिया आक्रांताओं के आक्रमण की भी गवाही देती है।
इसी कड़ी के सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव रन्नौद जिसका प्राचीन नाम अरणीप्रद के रूप में मिलता है,ककनमठ नामक पुस्तक में भारत के श्रेष्ठ लेखक छोटेलाल भारद्वाज ने जिसका उल्लेख विस्तार से किया है,और उस समय के सबसे बड़े शिक्षा केन्द्र के रूप में दर्शाया है पहुचकर ज्ञात हुआ कि उक्त स्थान वाकई अति प्राचीन व पुरातत्व संपदा से परिपूर्ण है।तेरही मठ जो खुदाई में निकला है,अपने आप मे इस क्षेत्र की प्राचीनता को सिद्ध करता है।खुदाई में निकले अवशेषो से पता चलता है जो छोटेलाल भारद्वाज ने लिखा है पूरी तरह से सत्य है। मात्र 2 फिट पर शुद्ध जल की बाबड़ी शैव मंदिर,पत्थरो पर की गई उच्च कोटि की नक्काशी, माता के मंदिर के आगे बना हुआ तोरण द्वार  क्षेत्र की अति प्राचीन कला कृति को स्वतः ही उजागर करता है।पंरन्तु उचित रखरखाव के अभाव व शासकीय उदासीनता से अभी भी इस क्षेत्र को वह उपलब्धि नही मिली जो भारत के अन्य क्षेत्रों को मिली है जबकि उक्त अरणीप्रद (रन्नौद)का  क्षेत्र अति प्राचीन पुरातात्विक संपदा का जीवंत उदाहरण है।
इन सभी तथ्यों को प्रांतीय स्तर पर छपने वाली पुस्तक में आलेख कहानी व कविता के रूप में लिपिबद्ध करने का कार्य शिवपुरी के साहित्यकार अब करेंगे।उक्त यात्रा में लुकवासा के पूर्व सरपंच जनपद के पूर्व उपाध्यक्ष हरिओम रघुवंशी ने भी भाग लिया,रन्नौद के राममोहन शर्मा,ब्रजेश पाठक व तेरही के पूर्व सरपंच बंटी यादव  भी उक्त यात्रा में सम्मिलित हुए। आलेखों की एक एक प्रति प्रशासन को भी उपलब्ध कराई जाएगी।






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