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धमाका डिफरेंट: फिल्म यातना के प्रोड्यूसर डायरेक्टर शिवपुरी निवासी राकेश सरैया ने मंगलम के निराश्रित भवन में ली अंतिम सांस

बुधवार, 25 जनवरी 2023

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। शिवपुरी में जन्में फिर शिक्षा ग्रहण करने के बाद फिल्मी दुनिया में कदम रखकर 1987 में सुप्रिया पाठक अभिनीत यातना फिल्म से पैर जमाने वाले फिल्म डायरेक्टर राकेश सरैया ने शिवपुरी के निराश्रित भवन में अंतिम सांस ले ली। यातना के बाद जैकपोट 2000, सावधान हिंदी फिल्म बनाने के बाद राकेश जी कनाडा के साथ कई अन्य देशों में लगातार बीस साल तक रहे। कठिन संघर्ष के साथ सफलता के घोड़े पर बैठे राकेश जी ने विदेश में फिल्म निर्माण कर सुर्खियां और अवार्ड भी हासिल किए। लेकिन कोई नहीं जानता की कब उनकी आर्थिक कमर टूटी और पूरी तरह बिखरने के बाद वे मंगलम संस्था के निराश्रित भवन में गुमनाम हो गए। आज जब वे इस दुनिया में नहीं हैं तो शिवपुरी की माटी के इस विरले इंसान को याद करते हुए धमाका टीम सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करती हैं। 
राकेश जी ने ये लिखा था खुद के बारे में
जानिए मेरे बारे में
मैं एक साधारण डाउन-टू-अर्थ, सेल्फ मेड, वर्कहॉलिक डाई-हार्ड व्यक्ति हूं, जो एक धूल भरे गांव की अत्यधिक गरीबी से सफलता के आकाश तक आया है। मैं सिर्फ पसीने, मेहनत और लगन की पूजा करता हूं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि किसी के पास आवश्यक कौशल के साथ इच्छा शक्ति हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। बड़ा हो या छोटा, मैंने हर मिशन पर समान ध्यान और सम्मान दिया। दिल से मैं भारतीय हूं, दिमाग से पश्चिमी हूं और कड़ी मेहनत से मैं चीनी हूं। कठिन दिनों ने मुझे सिखाया कि अतीत में विपरीत परिस्थितियों और तूफानी हवाओं का सामना कैसे करना है। मृत्यु मेरी कानूनी पत्नी है और जीवन सिर्फ एक रखवाली है लेकिन मैं इन दोनों से प्यार और सम्मान करता हूं। अपनी इच्छा के अनुसार मैंने पहले ही अपना पूरा शरीर दान कर दिया है और अपनी मृत्यु के बाद कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं करने के लिए कहा है। पैसा कमाना ज़रूरी है। लेकिन मेरी मुख्य इच्छा उन अनजान आँखों में हज़ारों आँसू कमाने की है जो मुझे कभी ज़िंदा नहीं देखते मेरे जीवन की डिक्शनरी में ये शब्द नहीं हैं- लक, मूड, बोरियत, धर्म, पूर्वानुमान, अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, पाखंड , जाति और रंग के आधार पर भेदभाव, असंभव, हार, हताशा, घबराहट और अहंकार लेकिन मैं दृढ़ता से हास्य, ईमानदारी, विनम्रता, दूसरों के प्रति सम्मान और खुद के प्रति
सम्मान में विश्वास करता हूं। मैं हमेशा खुश, फूलदार और आत्म-संतुष्ट रहता हूं क्योंकि अब तलाक के बाद मेरी जिप्सी जीवन शैली पर आधारित है: सभी कॉस्मेटिक नियमों को तोड़ो, मजबूत बनो, चुनौतियों को स्वीकार करो, जोखिम उठाओ, समान व्यवहार करो, जल्दी से माफ कर दो, धीरे धीरे चूमो, सच्चा प्यार करो, बेकाबू होकर हंसो सम्मान दो, सम्मान लो। प्यार दो, प्यार लो। मीठा बोलो, मीठा सुनो। मुस्कुराओ, आंसू उधार लो, अकेले चलो, भीड़ को खींचो। मेरा सबसे बड़ा माइनस पॉइंट यह है कि मेरे बहुत सारे माइनस पॉइंट हैं। मेरे दोस्त बनने की हिम्मत? आप बहुत जल्द उनसे मिलेंगे।
विशेषताएँ: कहानी-पटकथा-संवाद लेखन, फिल्म-निर्देशन, कविता और साहित्यिक पुस्तकें लिखना। फिल्म बनाना। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी प्रकार की फिल्म / वीडियो सह-निर्माण।
मेरे अपने शीर में मेरी विशेषता (काव्य छंद): रुकना हमारे कदमों ने सीखा नहीं कभी, मंजिल खुद तलाशती है हम जैसे सफर को! (मेरे कदमों ने कहीं भी रुकने का सबक नहीं सीखा, मैं कभी भी मंजिलों के पीछे नहीं जाता, दरअसल मंजिलें मेरे जैसे खास सफर की तलाश और इंतजार करती हैं)
बीते साल जनवरी में नजर आए थे नरवर किले पर
डायरेक्टर राकेश जी बीते साल जनवरी में नरवर के ऐतिहासिक किले पर नजर आए थे। सांपो को जीवन देने वाले रेस्क्यू एक्सपर्ट सलमान पठान ने केमरे पर उनसे बातचीत की थी। उनके साथ देवेंद्र शर्मा नरवर के उनके पुराने मित्र भी मोजूद थे। तब तक फिल्म बनाने की बातचीत राकेश कहते नजर आए थे। इंदौर और एक अन्य फिल्म का भी उन्होंने जिक्र किया था। लेकिन फिल्म यातना के प्रोड्यूसर डायरेक्टर शिवपुरी के राकेश सरैया शिवपुरी के मंगलम द्वारा संचालित वृद्ध आश्रम निराश्रित भवन में अंतिम सांस लेंगे किसी ने सोचा तक नहीं था। फिल्मी दुनिया की रंगीनियों में रचा बसा यह कलाकार जीवन के अंतिम मुकाम पर बेसहारा असहाय निराश्रित भवन में दम तोड़ेगा यह किसने सोचा था। 
एक अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की दुर्भाग्यजनक मृत्यू-
फिल्म निर्माता, निर्देशक, लेखक, डिवेटर, कवि राकेश सरैया का निधन
 आज अत्यंत सुबह-सुबह आये उस फोन ने मुझे जो सूचना दी वह मेरे लिए अत्यंत दुखद और झटका देने वाली थी, सूचना थी-आपके मित्र राकेश सरैया नहीं रहे। मित्र-? मैं बहुत देर तक सोचता रहा। उसके और मेरे रास्ते हमेशा अलग थे फिर भी बहुतसी समानतायें थीं। ऐसी कितनी बातें थीं जिसमें वह मुझसे बहुत आगे था और ऐसी कितनी बातें थीं जिनमें मैं उससे अपने आप को श्रेष्ठ मानता था। हम मित्र थे-फिर कुछ समय तक मित्र नहीं रहे और फिर मित्र हो गए। वह उन लोगों में से एक व्यक्ति था जिनके सामने एक लक्ष्य होता है। उसका लक्ष्य था- एक अच्छा फिल्म निर्माता बनना और उसने अनेक लघु-फिल्में बनाई और दो फीचर फिल्में बनाई। यातना और चैक पोर्ट बन करोड़ उसके द्वारा निर्मित, लिखित और निर्देशित फीचर फिल्में थीं। जिसमें शेखर सुमन, रवि वासवानी, सुप्रिया पाठक जैसे बड़े कलाकारों ने अपनी भूमिकायें की थी-योगेश के गीत थे और उषा खन्ना का संगीत।
मेरा उससे प्रथम परिचय एक डिवेटर के रूप में तब हुआ था जब वह अपने गांव मनपुरा से उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय शिवपुरी में वादविवाद प्रतियोगिताा के लिए आया था। सम्भवतः तब हम कक्षा 10 के विद्यार्थी थे। इसके एक साल बाद अर्थात 11वीं पास करने के बाद हम काॅलिज में साथ थे। सेक्शन भले ही अलग-अलग थे पर अनेक कक्षायें साथ होती थी। प्रयोग-शालाओं में साथ होते थे इसके अलावा समान रुचियां होने के कारण तमाम सांस्कृतिक आयोजनों व प्रतियोगिताओं में हम साथ होते थे। वह एक श्रेष्ठ डिवेटर था-मैं डिवेटर नहीं था-फिर भी डिवेट में भाग लेता था। वह गायक था, गाने मैं भी गा लेता था पर हम दोनों ही अच्छे गायक नहीं थे। वह अभिनय करता था-मैं उससे अच्छा अभिनेता था। हम दोनों कवि थे, कहानियां भी लिखते थे। विज्ञान के विद्यार्थी होते हुए भी वह सब करते थे जिसका विज्ञान से कोई नाता या लेना-देना नहीं था। हम दोनों साथी थे, मित्र थे किंतु एक दूसरे के प्रतियोगी भी थे। प्रतिस्पर्धा हारने व जीतने वाले दोनों को ही श्रेष्ठ बनाती है। इस लिए जब काॅलिज की सीमाओं से बाहर आ कर राकेश ने आकाशवाणी के लिए अपने समूह का कार्यक्रम रिकोर्ड कराया तो हममें भी उत्साह आया और हमने भी आकाशवाणी ग्वालियर से पत्राचार किया और 1975 में युववाणी के लिए पूरे एक घंटे का कार्यक्रम रिकोर्ड कराया। वह महाविद्यालय के अलावा अनेक अंतर विश्वविद्यालयीन वादविवाद प्रतियोगिता में भी भाग लेने ग्वालियर, जयपुर, दिल्ली आदि स्थानों पर गया। उसके होते हुए उस समय के अनेक डिवेटर उसके सामने पानी भरते रहे। कविता प्रतियोगिता में भी वह प्रथम आया मगर गायन प्रतिस्पर्धा में कभी उसकी दाल नहीं गली। इसी बीच उसके मेरे मध्य कुछ ऐसा हुआ कि हम मित्र नहीं रहे। बाद में हम दोनों के सहमित्रों यथा स्व.अशोक चैकसेजी, स्व.राजेन्द्र खैमरिया ने हम दोनों की मित्रता कराई और इसके बाद हम पुनः एक दूसरे को सहयोग करने लगे। 
उसने बी.एस.सी.के बाद हिन्दी विषय के साथ एम.ए.किया। वह पढ़ाई में भी श्रेष्ठ था। चाहता तो पी.एम.टी.फेस करके डाॅक्टर बन सकता था। एम.एस.सी. कर सकता था। किंतु उसके सामने उसका लक्ष्य स्पष्ट था इस लिए उसने धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना प्रारम्भ कर दिया। उसने स्व.श्री हरि उपमन्यू जी से फोटोग्राफी सीखी, उनके साथ-मुझे शराब कहते हैं, नई मेंहदी जैसी लघु-फिल्में बनाईं। सावधान लघु फिल्म साम्प्रदायिक एकता पर आधारित थी। इन फिल्मों का प्रसारण भोपाल, लखनऊ और जयपुर दूरदर्शन केन्द्रों से किया गया।
इन्हीं फिल्मों के कारण उसे पूना फिल्म संस्थान में किसी विशेष पाठ्क्रम में प्रवेश मिल सका। इसके बाद उसने दो फीचर फिल्में बनाई। सिनेमाघरों में यातना बुरी तरह पिटी। पिटने का कारण सेंसर-बोर्ड के द्वारा लगाये वे अनेक कट थे जिन्होंने उसके कथा-क्रम को बुरी तरह नष्ट व भ्रष्ट कर दिया था। चैकपोर्ट बन करोड़ दूरदर्शन दिल्ली से धरावाहिक के रूप में भी प्रसारित हुई थी और सिनेमा घरों में भी चली थी। मैं उनकी
तमाम फिल्मों के निर्माण में सहयोगी था। भले ही पर्दे पर मेरा नाम सहयोगी लेखक के रूप में दिखाया गया हो।(ऐसा मेरे अपने आग्रह पर ही किया गया था) फिल्म के टाइटल में मेरा नाम कहीं और भी दिया जा सकता था। सच्चाई यह है कि हम दोनों ने साथ मिल कर स्क्रिप्ट पर शार्ट-डिवीजन, शोर्ट व सीन के अनुसार लोकेशन के चयन और खोज, सेट निर्माणख् प्रत्येक शोर्ट या सीन की प्रत्येक बरीक से बारीक चीज पर गहन चिंतन, मंथन और  विचार के बाद उसकी तैयारी की थी। उसने मुझसे अनेक बार कहा-अरुण तुम्हें दिल्ली या मुम्बई जा कर अपना भाग्य आजमाना चाहिए। इसके लिए वह पूरा सहयोग कराने के लिए तैयार था किंतु उसके आग्रह को मानने के अनुकूल मेरी परिस्थितियां नहीं थी। इस लिए मैं उसके आग्रह के उपरांत भी शिवपुरी नहीं छोड़ सका।
प्रत्येक व्यक्ति की कुछ अपनी विशेषतायें होती है तो कुछ कमजोरियां। उसकी अपनी कुछ कमजोरियों के कारण ही तमाम मित्र, परिजन और परिवारजन उससे छिटकते चले गए। पिता श्रीरघुनाथ प्रसाद सरैया और मातायें श्रीमती कौशल्य सरैया तथा श्रीमती जानकी सरैया (उसकी जन्मदात्री माॅ)  के निधन के बाद उसका अपना कोई नहीं रहा। उसके पास बातें हमेशा बहुत बड़ी-बड़ी होती थी। प्रदर्शन भी खूब बड़े-बड़े करता था,शो बिजनिस में जो था, पर वास्तिविकता उसके अलावा कोई नहीं जानता था। सुना है मकान बिक गया था। आय का क्या साधन था? भरण-
पोषण कैसे होता था? -कोई नहीं जानता था। वह इतने समय तक कहां रहा ? किस तरह रहता रहा,  कोई नहीं जानता था। एक बार फौन पर मुझसे कह रहा था-अरुण अब मेरा मित्रों के अलावा कोई नहीं है। मित्र भी उसके कितने थे-यह भी कोई नहीं जानता। कल रात या शाम को उसने मंगलम वृद्धाश्रम में अंतिम सांस ली। शिवपुरी के मेरे सहपाठी, मित्र और वरिष्ठ पत्रकार श्री शंकर शिवपुरी से मोबाइल काल से ही पता चला कि उसे केंसर था, अब वह नहीं रहा। जब मैं यह लेख लिख रहा हूं तब सम्भवतः उसके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया जा रहा होगा-शिवपुरी के अंतिम विश्रामधाट पर। पर उसे कौन मुखाग्नि देगा? मैं नहीं जानता। उसकी भस्मी और फूल कौ
न गंगा में विश्रजित करेगा? मैं कुछ भी नहीं जानता। मैं यहां इन्दौर से उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना के अलावा कर ही क्या सकता हूं। उसका अपना संसार में कोई नहीं है जिनके लिए मैं यह बज्रघात सहने और शोक-संतप्त परिवार के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर सकूं। राकेश चला गया पर शिवपुरी में एक खाली स्थान छोड़ कर गया है। उसका नाम सदा एक ऐसे प्रतिभाशाली सिनेमा निर्माता के नाम से याद किया जाना चाहिए जिसने कम से कम पांच लघु-फिल्में तथा दो-दो फीचर फिल्मों का निर्माण किया। उसकी दो प्रकाशित कृतियां भी है। अभी तो उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना, ऊॅ शांति, ऊॅ शांति, ऊॅ शांति ऊॅ शांति।
अरुण अपेक्षित
25 जनवरी 2023
इंदौर म.प्र.



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