
2. यह कि विगत वर्ष के यथोचित परिणाम के फलस्वरूप इस वर्ष भी माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सभी जिला न्यायाधीशों को आगामी वर्ष 2023 में 100 चिन्हित प्रकरणों के निराकरण हेतु नये दिशा निर्देश जारी किये गये है जिनके अनुसार वर्ष के कुल कार्यदिवस 264 को 66-66 दिन की चार कार्यावधि में विभक्त कर उक्त 66 दिन की समयावधि में 25 चिन्हित प्रकरणों के निराकरण की अपेक्षा की गई है और यदि उनमें से कोई प्रकरण उक्त 66 दिन की कार्यावधि में अनिर्णीत रहता है तो वह ठीक आगामी कार्यावधि में शामिल किये जाने संबंधी निर्देश जारी किये गये है।
3. यह कि प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों के अनुसार विचारण न्यायालय में शीघ्रता न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है क्योंकि विचारण न्यायालय द्वारा पारित निर्णय को ही माननीय उच्च न्यायालय एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विश्लेषित किया जाता है तथा विचारण न्यायालय द्वारा अभिलिखित की गई साक्ष्य के आधार पर माननीय उच्च न्यायालय व माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचारण न्यायालय के निर्णय की पुष्टि अथवा निरस्ती की जाती है यदि विचारण न्यायालय में अभिभाषक एवं पक्षकार को साक्ष्य अभिलिखित कराये जाने, अपने तथ्यों को रखे जाने तथा विचारण न्यायालय की कार्यवाही हेतु पर्याप्त समय नहीं दिया जाता तो यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है तथा पक्षकारों एवं अभिभाषकों के साथ अन्याय है ।
4. यह कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिशा निर्देश से यह भी प्रकट होता है कि भले ही वर्ष की द्वितीय, तृतीय या चतुर्थ कालावधि हेतु निर्धारित प्रकरण शीघ्र निराकरण योग्य हो परंतु उसके निराकृत होने पर ऐसे प्रकरण की गणना पूर्ववर्ती कालावधि के निराकृत प्रकरणों में नही की जावेगी।
5. यह कि, उक्त दिशा निर्देशों के फलस्वरूप जिला न्यायालयों का संपूर्ण ध्यान मात्र पुराने और चिन्हित प्रकरणों पर केन्द्रित हो गया है और अन्य प्रकरण जो शीघ्र निराकरण योग्य है, अत्यधिक लम्बी अवधि हेतु नियत किये जा रहे हैं जिससे इन शीघ्र निराकरण योग्य प्रकरणों के पक्षकारों के मध्य भारी रोष और असंतोष व्याप्त हो रहा है और उनका न्यायिक प्रक्रिया से विश्वास भी भंग हो रहा है तथा इस प्रकार की कार्यप्रणाली से अभिभाषकगण भी आहत है।
6. यह कि वर्तमान में जिला न्यायालय में जिन क्लेम मामलों में लोक अदालत में राजीनामा किये गये है उनके भुगतानों में अत्यंत बिलम्ब हो रहा है वर्णों की छोटी-छोटी त्रुटियों के कारण भुगतान नही हो पा रहा है। इसके कारण अभिभाषकों एवं पक्षकारों के मध्य अविश्वास एवं रोष व्याप्त है ।
7. यह कि पुराने प्रकरणों को दर्शाते हुये शीघ्र न्याय किये जाने की बात विधि के सिद्धांतों के प्रतिकूल है, माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर मुख्यन्यायपति द्वारा पारित आदेश न्यायिक क्षेत्र का सार्वभौमिक आदेश नही है यह केवल म. प्र. के लिये है जबकि भारत के अन्य किसी भी उच्च न्यायालय द्वारा इस तरह के आदेश पारित नही किये गये है और न ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे आदेश पारित किये जाने की कोई अनुशंसा की गई है अनावश्यक रूप से दबाब बनाया जाकर न्याय संभव नही है, कार्य की अधिकता से अभिभाषकगण भी शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान है।
8. यह कि, विनम्रता पूर्वक निवेदन है कि लंबित प्रकरणों के शीघ्र निराकरण हेतु जारी उक्त दिशा निर्देश स्पष्ट रूप से न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सहायक न होकर मात्र लंबित और निराकृत प्रकरणों की संख्या को ध्यान में रखकर जारी किये जाना परिलक्षित होता क्योंकि प्रत्येक प्रकरण का निराकरण समान प्रक्रिया और मापदण्डों पर आधारित नहीं हो सकता । यदि संपूर्ण वर्ष में न्यायालय में लंबित संपूर्ण प्रकरणों में से शीघ्र निराकरण योग्य प्रकरणों को चिन्हित किया जाये तो संभव है कि एक वर्ष में 100 से भी अधिक प्रकरणों का निराकरण हो सकता है परंतु यदि नये और पुराने होने के आधार पर प्रकरणों को चिन्हित कर निर्धारित समय-सीमा में उनके निराकरण की अपेक्षा की जाती है तो निश्चय ही प्रकरण में न्याय न होकर मात्र निराकरण हो सकेगा जिससे न्याय की हानि होगी और पक्षकारों की न्यायालय के प्रति आस्था और विश्वास को क्षति पहुंचेगी ।
9. यह कि माननीय उच्च न्यायालय म.प्र. उच्च न्यायालय द्वार पारित दिशा निर्देशों का म.प्र. के सभी जिला एवं सत्र न्यायालयो में अभिभाषकगणो द्वारा विरोध प्रकरण किया जा रहा है आज दिनांक तक कई बार ज्ञापन दिये जाने एवं विरोध प्रकट किये जाने पर भी कोई भी सकारात्मक पहल सामने नही आयी है।
अतः अभिभाषकगण को न्यायहित मे अपनी बात रखे जाने हेतु दिनांक 01.03.2023 से दिनांक 06.03.2023 तक जिला अभिभाषक संघ शिवपुरी के सभी सदस्यों द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि उक्त अवधि में वह अपने न्यायालयीन कार्य से पूर्णतः विरत रहेगें तथा उक्त आदेश के प्रति अपना शालीनतापूर्वक न्यायालय परिसर में विरोध प्रकट करेगे।

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