शिवपुरी। आज पंडित चंद्रशेखर आज़ाद की पुण्यतिथि है। उनके इतिहास के बारे में कुछ भी बताना सूरज को दिया दिखाने के समान है.. परंतु उनके “बमतुल बुख़ारा” के बारे में कम लोगों को पता होगा।
आज़ाद अपनी पिस्टल को शान से “बमतुल बुख़ारा” कहते थे..
कोल्ट कंपनी की बनी यह पिस्टल मॉडल 1903 पॉकेट हैमरलेस सेमी-ऑटो.32 बोर थी। इस पिस्टल में आठ बुलेट की एक मैगजीन लगती थी और इसकी मारक क्षमता 25 से 30 यार्ड थी जिसे चलाने पे धुआँ नहीं निकलता था। आजाद ने 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क, जिसे अब चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है, में ब्रिटिश पुलिसकर्मियों के साथ लंबी लड़ाई के बाद खुद को गोली मारने के लिए इसका इस्तेमाल किया।
उनके शहीद होने के बाद तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सर जॉन नॉट बावर उनकी पिस्तौल अपने साथ लेकर इंग्लैंड चले गए थे. लंदन में भारतीय उच्चायोग की लाख कोशिशों के बाद 1972 में चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल वापस भारत लौटी थी। कहा जाता है कि यह पिस्टल उन्हें खनियाधाना के महाराज ख़लक सिंह जी द्वारा दी गई थी। खनियांधाना के राजा खलक सिंह जी अपना वाहन सुधरवाने के लिए झांसी जाते थे। एक बार जब राजा अपना वाहन सुधरवाने के बाद वहां से वापस लौट रहे थे, तो अंंधेरा होने लगा था, तो झांसी के मिस्त्री ने
चंद्रशेखर आजाद को राजा के साथ यह कहते हुए भेज दिया कि वाहन कहीं रास्ते में धोखा न दे जाए। महाराज खलक सिंह के साथ चंद्रशेखर वाहन में सवार होकर आ रहे थे तो रास्ते में एक जगह बाथरूम करने के लिए रुके तो वहां एक सांप महाराज की तरफ बढ़ा, जिसे चंद्रशेखर ने देख लिया और बिना देर किए गोली चलाकर उसे मार दिया।
चंद्रशेखर का निशाना देखकर खलक सिंह को शक हुआ तो उन्होंने रास्ते में उनसे पूछा कि तुम मिस्त्री तो नहीं हो। तब चंद्रशेखर ने बताया कि मैं देश की आजादी के लिए लड़ रहा हूं।उनकी बात से प्रभावित होकर राजा खलक सिंह ने चंद्रशेखर आजाद को पहले गोविंद बिहारी मंदिर का पुजारी बनाया और फिर सीतापाठा मंदिर पर रहते हुए चंद्रशेखर ने हथियार चलाना व हथगोला बनाना सीखा। चंद्रशेखर आजाद लगभग सात माह तक खनियांधाना में रहे तथा उनके पास जो पिस्टल थी, वो भी खनियांधाना के राजा खलक सिंह द्वारा ही दी गई थी।
इस पिस्तौल को 27 फरवरी 1973 को लखनऊ के संग्रहालय में रखा गया था, लेकिन इलाहाबाद म्यूजियम (Allahabad Museum) बनने के बाद इस पिस्तौल को वहां ले जाया गया. इस पिस्तौल को इलाहाबाद म्यूजियम में बुलेटप्रूफ ग्लास के बॉक्स में सेंट्रल हॉल के बीच में रखा गया है.
ताउम्र आज़ाद रहने वाले आज़ाद को पुण्यतिथि पे सादर श्रद्धांजलि.. डॉ गिरीश चतुर्वेदी, नेत्र रोग विशेषज्ञ, मेडिकल कॉलेज शिवपुरी💐🙏💕
शिवपुरी। Shivpuri News खनियाधाना को क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की कर्मस्थली के रूप में जाना जाता है। यह शिवपुरी से 120 किमी दूर है। आजाद ने सीतापाठा मंदिर के घने जंगलों में बम के परीक्षण किए थे। जिसके निशान आज भी देखे जा सकते हैं। आजाद को खनियाधाना स्वतंत्र रियासत के महाराजा खलक सिंह जूदेव लेकर आए थे। वह रात को महल में रुकते थे और दिन में सीतापाठा के घने जंगलों में बम बनाकर उसका परीक्षण करते थे। चंद्रशेखर आजाद का मूछों पर तांव देते हुए फोटो खनियाधाना के मम्माजू पेंटर ने ही बनाया था। जो इकलौता चंद्रशेखर आजाद का मूछों पर ताव देते हुए फोटो हैं। विपिन शुक्ला

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें