ग्वालियर। जीवन में घटित होने वाली विषम परिस्थितियो में साथ निभाना ही मित्रता का सच्चा धर्म होता है। सच्चा मित्र वही है जो अपने सखा को सही दिशा प्रदान करे और उसकी गली पर उसे रोके तथा सही राह पर चलाकर उसका सहयोग करे। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता इसका साक्षात प्रमाण है।
संत श्री गोपाल दास महाराज ने फूलबाग मैदान में आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र और सुखदेव विदाई का प्रसंग सुनाया।
संतश्री ने कहा कि मित्रता में गरीबी और अमीरी नहीं देखनी चाहिए। मित्र एक दूसरे का पूरक होता है। भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा की गरीबी को देखकर रोते हुए अपने राज सिंहासन पर बैठाया और उन्हें उलाहना दिया कि जब गरीबी में रह रहे थे तो अपने मित्र के पास तो आ सकते थे, लेकिन सुदामा ने मित्रता को सर्वोपरि मानते हुए श्रीकृष्ण से कुछ नहीं मांगा।
कथा व्यास ने कहा कि सुदामा चरित्र हमें जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने की सीख देता है। सुदामा ने भगवान के पास होते हुए अपने लिए कुछ नहीं मांगा। अर्थात निःस्वार्थ समर्पण ही असली मित्रता है। कथा के दौरान परीक्षित मोक्ष व भगवान सुखदेव की विदाई का वर्णन किया गया। कथा के बीच-बीच में भजनों पर श्रद्धालुओं ने नृत्य भी किया। संत कृपाल सिंह महाराज, सुनील शर्मा, किरण भदौरिया, महेश मुदगल एवं अशोक पटसारिया ने आरती की।

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