*महाशिवरात्रि पर एक हफ्ते तक होते हैं धार्मिक आयोजन
*भारेश्वर महादेव से लौटकर संजय आजाद की रिपोर्ट
कृत शालिनी मध्य देशे ख्याता भरेह नगरी, किल तत्र राजा राजीव लोचन रतो भगवन्त देवा। इस श्लोक के माध्यम से भारेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन हमें देखने मिलता है बनारस के विद्वान नीलकंठ भट्ट ने भगवन्त भास्कर नामक ग्रंथ में मंदिर की महिमा का वर्णन करते हुए यह श्लोक लिखा है। एक बिल्वपत्रम एक पुष्पम एक लोटा जल की धार दयालु रिझ देत हैं चंद्रमौली फल चार,, बाघाम्बरम भस्माम्बरम जटा जूट निवास, आसन जमाए बैठे हैं कृपासिंधु कैलाश महाशिवरात्रि से ठीक पहले हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान भोलेनाथ के प्राचीनतम मंदिर भारेश्वर महादेव के बारे में,इस बारहम आपको इटावा जिले के भरेह गांव में स्थित भारेश्वर महादेव के बारे में बताने वाले हैं जो महाभारत कालीन मंदिर है यानी कि पांच हजार वर्ष से भी ज्यादा पुराना मंदिर है और इस मंदिर की विशेषता यह है की यहां मंदिर के ऊपर कई बार बिजली गिर चुकी है उसके बाद भी यह मंदिर पूरी शान के साथ आज खड़ा हुआहै। मंदिर के पीछे की ओर आल्हा उदल का प्राचीनतम अखाड़ा आज भी मौजूद है जो आज भुतहा खंडहर में तब्दील हो चुका है। मंदिर की लोकेशन के बारे में पढ़कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मंदिर कितना सुंदर और भव्य होगा। जमीन से मंदिर की ऊंचाई लगभग 500 फुट है जहां पर सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है और यदि आप अपने वाहन से भी जानाचाहे तो अब ऊपर तक जाने के लिए निर्माण हो चुका है और अब ऊपर विशाल शिखर भगवान भोलेनाथ के ऊपर बना हुआ है जहां से आप कई किलोमीटर तक के दृश्य आसानी से देख सकते हैं मंदिर के ठीक सामने चंबल और यमुना का बेजोड़ संगम है उस नयनाभिराम दृश्य को देखकर आप स्वयं ही यहां पर दोबारा आए बिना नहीं रह सकेंगे।शिवालय के अंदर भगवान भोलेनाथ की विशाल शिवलिंग है शिवलिंग के चारों ओर उज्जैन के महाकाल मंदिर जैसी छोटी सी रेलिंग लगाकर सजावट की गई है। भोलेनाथ के ठीक सामने नंदी महाराज बैठे हुए हैं जो विशेष पत्थर के बनवाए गए हैं ऐसी मान्यता है कि अपनी कोई मनोकामना यदि आप नंदी महाराज के कानों में कहकर जाते हैं तो वह अवश्य पूरी होती हैं भगवान भोलेनाथ नंदी द्वारा आपके आवेदन पर जल्दी विचार करते हैं। लगभग 500 फुट ऊपर शिखर के चारों ओर विशाल चबूतरानुमा स्थान है जहां पर बैठकर आप ताजा और तेज हवाओं का आनंद ले सकते हैं और हर मौसम में यहां आनंद ही आनंद बरसता है यहां पर उपस्थित मंदिर के पुजारी चंबल गिरी महाराज ने बताया कि इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर किसी भी तरह का सीमेंट,चूना, गारा नहीं लगाया गया है मुख्य मंदिर सीधा पहाड़ काटकर ही बना है मंदिर महाभारत कालीन है, जहां पर पांडवों ने अपना अज्ञातवास का कुछ समय काटा था। मंदिर के सामने जो चंबल और यमुना जी का संगम है बहुत देखने लायक है जब दो अलग रंगो का जल मिलकर एक हो जाता है। एक समय ऐसा था कि यहां से दिल्ली आगरा और कोलकाता तक जहाज चलते थे और खूब व्यापार होता था अभी वर्तमान में यहां पर स्लोव निर्माण कार्य चल रहे हैं जो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा कराए जा रहे हैं जिससे मंदिर पर ऊपर चढ़कर जाने वालों को परेशानी से बचाया जा सके।
साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं में लिखा है भारेश्वर महादेव का इतिहास
मंदिर के इतिहास के बारे में कई साहित्यकार और इतिहासकारों में भी लिखा है उन्होंने बताया है कि किस तरह महाभारत काल में पांडवों ने यहां अपना अज्ञातवास काटा और अंग्रेजों के विरुद्ध पुराने समय में भारेश्वर महादेव मंदिर पर किस तरह युद्ध प्रशिक्षण दिया गया था।
बनारस के विद्वान नीलकंठ भट्ट ने भगवन्त भास्कर नामक ग्रंथ में मंदिर की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है
कृत शालिनी मध्य देशे ख्याता भरेह नगरी, किल तत्र राजा राजीव लोचन रतो भगवन्त देवा। बताते हैं कि भरेह के राजा रूपसिंह ने अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ इस स्थल पर सेना की प्रशिक्षण कार्यशाला बनाई थी। गांव के पुराने लोग बताते हैं कि एक बार जब अंग्रेजों ने मंदिर को घेर लिया तो मंदिर से निकले ततैया (बर्रो) ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। यमुना चंबल संगम पर स्थित भारेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन काल से आध्यात्मिक ज्ञान एवं तपस्या का केंद्र रहा है। मान्यता है कि विद्वान नीलकंठ ने कर्मकांड एवं दंड के 12 मयूक (ग्रंथ) एवं आयुर्वेदिक ग्रंथ इसी मंदिर में रहकर लिखा था। आगरा जाते समय गोस्वामी तुलसीदास भी इस मंदिर में कुछ समय रहे। परमहंस गुंधारी लाल ने भारेश्वर महाराज की तपस्या कर अपना कर्मक्षेत्र ग्राम बडेरा को बनाया। परमहंस पुरुषेात्तम दास महाराज ने बिना भोजन व जल के भोलेनाथ की तपस्या की। भागवताचार्य पंडित रजनीश त्रिपाठी के अनुसार पांडवों ने अज्ञातवास के समय भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर शंकर भगवान की आराधना हेतु भीमसेन द्वार व शंकर की विशाल पिंडी की स्थापना की थी, जिसकी द्रोपदी सहित पांचों पांडवों ने पूजा अर्चना की। मान्यता के अनुसार जो भक्त भगवान भोले नाथ की पूजा करके बाहर नंदी के कान में जो भी मनोकामना मांगता है। वह शीघ्र ही पूरी हो जाती है।
भारेश्वर महादेव मंदिर पहुंचने का मार्ग
भारेश्वर महादेव का मंदिर इटावा जिले के भरेह ग्राम में स्थित हैं। यहां पर पहुंचने के लिए आपको बता दें कि यदि आप इंदौर, दिल्ली, राजस्थान आदि जगह से आ रहे हैं तो सीधा रास्ता यह है सर्वप्रथम आपको ग्वालियर जाना होगा ग्वालियर से भिंड होकर इटावा रोड पर चकरनगर फोरलेन से होते हुए आप प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से सीधे भरेह पहुच सकते हैं। चकरनगर से गांव की दूरी मात्र 19 किलोमीटर है जो पूरी तरह पक्की सड़क है। ग्वालियर से भरेह की दूरी लगभग मात्र 150 किलोमीटर है। यहाँ से हर घंटे इटावा के लिए बस चलती हैं और यदि आप ट्रैन से सफर कर रहे हैं तो ग्वालियर से इटावा ट्रेन में बैठे, इटावा उतरकर वहां से ऑटो जीप के माध्यम से बकेवर से चकरनगर होते हुए आप भरेह गाँव पहुँच सकते हैं।

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