लेखक: ज्योतिर्विद श्री ब्रजेन्द्र श्रीवास्तव, विश्वविद्यालय में कॉस्मोलॉजी एस्ट्रोनॉमी ज्योतिष अध्यात्म पढ़ाया
लाइफमेम्बर ग्वालियर एकेडमी मैथेमैटिकल साइंस भोपाल, विश्वविद्यालय में पढ़ाई की है।
बंगलौर में निवास है।
शिवजी के गृहस्थ रूप की सुन्दर झलक शिव परिवार का उपरोक्त चित्र देता है जो पुराण परम्परा अनुसार बना है ।
देखिए इस चित्र में शिव पार्वती उनके दोनों पुत्र भी हैं। फिर इन चारों के वाहन रूप पशु पक्षी और शिव जी का श्रृंगार सर्प भी तो परिवार में शामिल हैं।
★ अब देखिए न कितना बड़ा परिवार है।
• शिव जी के साथ माता पार्वती जी बाल गणेश को गोद में लिए हैं।
• जबकि उनके ज्येष्ठ पुत्र कुमार कार्तिकेय शिव जी के निकट खड़े हैं।
● दूसरी ओर वीरभद्र भी सेवा में उपस्थित हैं।
• परिवार में एक ओर भवानी का वाहन सिंह बैठा है तो दूसरी ओर नन्दी वृषभ भी है ।
• फिर कुमार कार्तिकेय का वाहन मयूर है जिसके कारण वह मयूरेश भी कहे जाते हैं । और गणेश जी का वाहन मूषक है यह तो ज्ञात ही है।
• सबको भोजन की व्यवस्था अन्नपूर्णा पार्वती ही तो करती हैं आप इस पर तनिक गौर करें कि नंदी वृषभ को तो ढेर सारा भोजन लगता है । नंदी वृषभ की कहीं बैल की तरह भी चित्रित किया गया है।
★ ★ इतना ही क्यों इस गृहस्थी में प्राकृतिक वैर विरोध वाले प्राणी हैं।
• सिंह बैल में विरोध
• सर्प में और कार्तिकेय के वाहन मयूर में विरोध है
• फिर मूषक सर्प में विरोध है।
★ इन सब को अपनी अपनी सीमा में रखने और प्रेम भाव बनाने में और इन की भोजन व्यवस्था में माता भवानी को पर्याय श्रम करना पड़ता है। जबकि शिव जी को इससे कोई मतलब नहीं वह तो बस ध्यान समाधि में तल्लीन रहते हैं। शिव परिवार की गृहस्थी पर कवियों ने तरह तरह से हास्य विनोद के पद भी लिखे हैं।
अब आपके सवाल पर आते हैं।
• भगवान शिव संन्यासी हैं या गृहस्थ?
• अब शिव का इतना बड़ा परिवार है तो शिव निर्विवाद
रूप से गृहस्थ हैं। वे गृहस्थाश्रम धर्म का पालन भी करते हैं।
इतना ही क्यों शिव जी अर्धांगिनी पार्वती के प्रश्नों के निरन्तर उत्तर देकर उनका ज्ञान रजंन करते रहते हैं। जब अन्नपूर्णा सब के भोजन विश्राम की व्यवस्था कर लेती हैं तब यह ज्ञान चर्चा कैलास शिखर पर बैठ कर इत्मीनान से होती है।
• इस चर्चा से ही तुलसी ने रामचरित मानस पूर्ण किया।
• इस चर्चा को काकभुशुण्ड जी अपने ढंग से बखानते हैं। • विभिन्न प्रकार के तंत्रों के गूढ़ रहस्य इसी शिव गौरी सम्वाद से प्रकाश में आए हैं।
★ तो इस प्रकार शिव जी गृहस्थधर्म धर्म का पालन करते हैं
• ★ पर आदर्श गृहस्थ होने के साथ ही शिव, परम संन्यासी भी हैं। सो कैसे?
निरंकार ओंकार मूलं तुरीयं -रुद्राष्टक
★ कर्म संन्यास की यह सर्वोच्च अवस्था है जिसमें योगी अपने ही स्वरूप में स्थित होते हुए भी बाह्य जगत के कार्यव्यापार में भी संलग्न दिखाई देता है। इसलिए शिव योगेश्वर भी कहे गए हैं और इसलिए शिव परम संन्यासी भी हैं।
★ निष्कर्ष यह है कि भगवान शिव परम संन्यासी एवं आदर्श गृहस्थ दोनों ही हैं।
चलते चलते एक बात और
शिव जी शीघ्र क्यों प्रसन्न होते हैं ? आशुतोष क्यों कहे जाते हैं ? इस पर कई आख्यान हैं पर उन आख्यानों की चर्चा न करते हुए इतना ही कहना पर्याप्त है कि शिवजी गृहस्थ की कठिनाइयाँ समझते हैं इसलिए किसी अन्य देवता की अपेक्षा शिव शीघ्र प्रसन्न होते जाते हैं।
सृष्टि के मूल तत्व गॉड पार्टिकल की खोज में संलग्न विश्व की सबसे बड़ी वैज्ञानिक प्रयोगशाला CERN ( स्विट्ज़रलैंड) के द्वार पर नटराज शिव की प्रतिमा स्थापना की औपचारिकता के समय का चित्र । नटराज की प्रतिमा के नीचे वैज्ञानिक फ्रिट्ज़ोफ काप्रा ( Tao of Physics के लेखक) की स्वयं की अनुभूति का यह वाक्य लिखा है कि यह विश्व, नटराज शिव के नृत्य के समान ऊर्जा कणों का नृत्य ही है - dance of energy particles । यहाँ शिव विश्व सांस्कृतिक एवम वैज्ञानिक मंच पर भी आसीन हैं।
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आभार: चित्र क्रमांक दो और तीन चार वेब दुनिया, पिंटरेस्ट के सौजन्य से गूगल से साभार।

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