दुनिया परेशान है, डॉक्टर हैरान हैं और लोग अनजान, जबकि जिंदगियां निगलने वाला कैंसर बना हुआ है हैवान। देश में प्रति घंटे डेढ़ सैकड़ा से अधिक जिंदगियां कैंसर की शिकार हो रही हैं। कारण भारत में कैंसर तेजी से पैर पसार रहा है। रिपोर्टों पर विश्वास करें तो आने वाले दो वर्षों में देश में करीब 16 लाख लोग कैंसर के कारण अपनी जान गंवा बैठेंगे। “विश्व कैंसर दिवस“ पर पढ़िए एक खास रिपोर्ट।
आधुनिक युग में कैंसर एक ऐसी बीमारी बन गई है, जो सबसे ज्यादा जिंदगियां लील रही है। तमाम कोशिशों के बावजूद कैंसर मरीजों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसी कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन हर वर्ष चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाता है, ताकि लोगों को इस जानलेवा बीमारी से होने वाली क्षति के बारे में बताया जा सके। क्योंकि यदि समय रहते नहीं चेते तो 2030 तक देश में कैंसर मरीजों की संख्या एक करोड़ के पार हो सकती है।
कैंसर, मानव प्रजाति में पाए जाने वाली सबसे घातक बीमारियों में से एक है। लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस घातक बीमारी को भी मात दे दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्तमान में दुनिया के 20 फीसदी कैंसर मरीज भारत में हैं। इस बीमारी से हर साल 75,000 हजार लोगों की मौत होती हैं। भारत में कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। नतीजन देश में हर घंटे 162 लोगों की मौत हो रही है। हालात कितने गंभीर हैं इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि कैंसर जांच केंद्रों के जरिये बीते आठ साल में इस बीमारी से जुड़े लगभग 30 करोड़ गंभीर मामले सामने आए हैं।
बीमारी की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य राज्यमंत्री डॉ. भारती पवार ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया था कि राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के मुताबिक साल 2020 में करीब 14 लाख लोगों की इस बीमारी से मौत हुई। जबकि मरीजों की संख्या में प्रतिवर्ष 12.8 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2025 में यह बीमारी 15 लाख 69 हजार 793 की जिंदगी लील लेगी। उन्होंने बताया कि कैंसर जांच केंद्रों के जरिये ओरल कैंसर के 16 करोड़, ब्रेस्ट कैंसर के 8 करोड़ और सर्वाइकल कैंसर के 5.53 करोड़ मामले सामने आए हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक हर 10 में एक भारतीय को कैंसर होने की आशंका रहती है। जर्नल ऑफ ग्लोबल ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, विकसित देशों के मुकाबले भारत में कैंसर मरीजों की मौत की दर दोगुनी है।
डब्ल्यूएचओ के एक अनुमान के मुताबिक कोविड से पहले वर्ष में कुल 96 लाख मौतें हुईं थीं। इनमें से 70 फीसदी मौतें गरीब देश या भारत जैसे मध्यम आय देशों में हुईं। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कैंसर से 7.84 लाख मौतें हुईं। यानी कैंसर से हुईं कुल मौतों की 8 फीसदीं मौतें अकेले भारत में हुईं। सबसे हैरानी की बात यह है कि भारत में हर 10 कैंसर मरीजों में से 7 की मौत हो जाती है जबकि विकसित देशों में यह संख्या 3 या 4 है। इसकी वजह एक डॉक्टर 2000 मरीजों का बोझ उठा रहा है। जबकि अमेरिका जैसे देश में 100 पर एक डॉक्टर है।
यदि हम मध्य प्रदेश की बात करें तो पाते हैं कि राज्य में प्रति वर्ष एक लाख की आबादी पर 1789 कैंसर के मामले आ रहे हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नेशनल सेंटर ऑफ डिसीज इन्फॉर्मेशन एंड रिसर्च की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। इनमें 892 केस पुरुषों में, जबकि 897 केस महिलाओं के हैं। 2025 तक मप्र में कैंसर रोगियों की संख्या 77 हजार से बढ़कर 88 हजार के पार पहुंच सकती है।
प्रदेश में जन्म से 75 वर्ष की आयु तक हर 9 में से 1 पुरुष और हर 8 में से एक महिला को कैंसर है। प्रोफाइल ऑफ कैंसर एंड रिलेटेड फैक्टर मप्र के मुताबिक प्रदेश में पुरुषों में मुंह, फेफड़े और जीभ का कैंसर सर्वाधिक है, जबकि महिलाओं में स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और ओवरी कैंसर के केस सर्वाधिक हैं। कैंसर की बीमारी लगभग 100 प्रकार की होती है। इनमें सबसे आम स्किन कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, लंग कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर, ब्लैडर कैंसर, मेलानोमा, लिम्फोमा, किडनी कैंसर हैं। महिलाओं में सबसे ज्यादा स्तन, कोलोरेक्टल, फेफड़े, सर्वाइकल, और थायराइड कैंसर होता है, वहीं, पुरुषों में फेफड़े, प्रोस्टेट, कोलोरेक्टल, पेट और लिवर का कैंसर सबसे ज्यादा पाया जाता है।
ऐसे में कैंसर पीड़ितों को हिम्मत देने और इसके वैश्विक बोझ को कम करने पर जोर देने के लिए यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल की ओर से 23 साल से इस दिवस को मनाया जा रहा है। इस वर्ष विश्व कैंसर दिवस मनाने के लिए थीम क्लोज द केयर गैप ( ब्सवेम जीम बंतम हंच. म्अमतलवदम कमेमतअमे ंबबमे जव बंदबमत बंतमष्) है। इस थीम को 2022 से 2024 तक के लिए रखा गया है। कैंसर जैसी बीमारी से बचने के लिए सावधानी व सर्तकता जरूरी है। कैंसर एक ऐसी स्थिति है जो शरीर में असामान्य कोशिकाओं के बढ़ने से उत्पन्न होती है। यदि समय पर इसका पता चल जाए तो संभवत इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। इस बीमारी का पूर्णतयाः इलाज संभव है। सामाजिक प्राणी होने के नाते हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम सब मिलकर कैंसर के प्रति लोगों को जागरूकत कर इस बीमारी को हराएं।
( लेखक सांध्य समाचार के संपादक हैं)

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