(शिवपुरी से शिक्षा विद निर्भय गौड की रिपोर्ट)
भगवान जगन्नाथपुरी (ओडिशा) चार धाम में से एक वैष्णव सम्प्रदाय का मन्दिर, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण भगवान को समर्पित है।श्री जगन्नाथ पहले नील माधव के नाम से पुजे जाते थे जो भील सरदार विश्वासु के आराध्य देव थे। अब से लगभग हजारों वर्ष पुर्व भील सरदार विष्वासु नील पर्वत की गुफा के अन्दर नील माधव जी की पुजा किया करते थे।
यह मंदिर वैष्णव परम्पराओं और सन्त रामानन्द से जुड़ा हुआ है। यह गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय केलिये खास महत्व रखता है। इस पन्थ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु कई वर्षों तक पुरी मे रहे।
मंदिर का वृहत क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट में फैला है और चारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है। शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर की रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं !
महाराजा रणजीत सिंह महान सिख सम्राट ने इस मन्दिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर अमृतसर को दिये गये स्वर्ण से कहीं अधिक था। उन्होंने अपने अन्तिम दिनों में यह वसीयत भी की थी कि विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा जो विश्व में अब तक सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ा हीरा है इस मन्दिर को दान कर दिया जाये। लेकिन यह सम्भव नहीं हो सका, क्योंकि उस समय तक ब्रिटिश ने पंजाब पर अपना अधिकार करके उनकी सभी शाही सम्पत्ति जब्त कर ली थी। वर्ना कोहिनूर हीरा आज भगवान जगन्नाथ के मुकुट की शान होता !!
याद रखें
(1) मंदिर मे यदि आपके साथ बच्चे और बुजुर्ग है तो हाई अलर्ट पर आ जाएं। यहां की अपार भीड और धक्का मुक्की को आप यहां के इडली-वडा -डोसा
और Khaja (Indian deep-fried pastry, filled with fruit & soaked with sugar syrup) की तरह कभी नही भूल पाएंगे।
(2) जाने से पहले जगन्नाथ पुरी मन्दिर प्रशासन के ही निलाचल भक्त यात्री निवास, नीलाद्री भक्त निवास या श्री गुन्दिचा भक्त निवास मे आनलाइन रूम बुक करवा लें। ये मंदिर से केवल 100 मीटर की दूरी पर हैं।

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