ग्वालियर। दीनदयाल नगर स्थित "उद्भव" के सचिव श्री दीपक तोमर के निवास पर "उद्भव साहित्यिक मंच " की आंचलिक "काव्य गोष्ठी "का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक "स्नेही" मेंहगांव ,भिण्ड के द्वारा की गई। कार्यक्रम में संस्था के अध्यक्ष डॉ. केशव पांडेय एवं सचिव दीपक तोमर मंचासीन रहे।
कार्यक्रम में सरस्वती वंदना श्री जगदीश गुप्त महामना ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक "स्नेही" का सम्मान शॉल,श्रीफल एवं पुष्पहार भेंट कर संस्था के अध्यक्ष डॉ. केशव पांडेय एवं सचिव श्री दीपक तोमर द्वारा किया गया। श्री अशोक स्नेही ने अपनी व्यंग प्रस्तुति देते हुए कहा।
" जब भिखारी बिरादरी से हो, तो युग युग जियो ।
और हाथ से विल्स फेंको और सिगार पियो।" कार्यक्रम में वरिष्ठ गीतकार श्री घनश्याम " भारती" ने सुंदर गीत प्रस्तुत करते हुए कहा,
"होली की फुहारों में बासंती बहारों में , आओ रंगे तन मन हम, आयो सतरंगी मौसम।"
इसी क्रम में वरिष्ठ नवगीतकार श्री बृजेश चंद्र श्रीवास्तव ने गीत पढ़ते हुए कहा " संबोधन की जगह किसी ने हरसिंगार लिखा, लगा कि जैसे अंतर्मन में पलता प्यार लिखा।"
वरिष्ठ गीतकार श्री राजेश शर्मा ने सुंदर गीत की प्रस्तुति देते हुए कहा।" जिस दिन रूप तुम्हारा देखा था निखार होते-होते, और बच गए हम भी उस दिन निर्विकार होते होते।"
अगले क्रम में जगदीश "महामना " द्वारा अपनी सुंदर प्रस्तुति दी गई ,उन्होंने कहा,
"रामराज स्थापना अब यही राष्ट्र आराधना। एक दूजे से विनय करें हम, करें यही बस प्रार्थना ।।"
बहुत सराहा गया।
कार्यक्रम में रंग बदलते हुए होली पर सुंदर गीत प्रस्तुति दी डॉक्टर किंकर कर पाल सिंह जादौन ने ,उन्होंने कहा,
"खुल गए हैं आज सुधि के बंद दरवाजे, याद के उपहार लेकर आ गई होली।"
अगले क्रम में श्री अनंग पाल सिंह भदौरिया " अनंग "ने गीत रचना प्रस्तुत करते हुए कहा,
" सब कुछ है मेरे अंतर में, सारी दुनिया दुनिया वाला। इसमें भी मेरा मन भी है मन के अंदर मतवाला ।"
कवि रामचरण" रुचिर " ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा, "
तरफ तो खाई है गहरी, दूजी और कुआं है।
जीवन के पथरीले पथ पर चलना कठिन हुआ है।"
युवा गीतकार भरत त्रिपाठी ने भी अपनी सुंदर प्रस्तुति दी । उन्होंने कहा, "उमर गुजरी सफर गुजरा ,मगर मंजिल नहीं पाई। कहो जाएं कहां हमदम, इधर खाई उधर खाई।" श्री सुरेंद्र सिंह परिहार द्वारा भी अनोखी प्रस्तुति देते हुए कहा गया,
"रे मन तू क्यों नहीं मानत है, क्षण क्षण बेकार में ही भटकत क्यों नहीं सुधरत है।"
सफल संचालन कर रहे श्री सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा ने अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा,
" बीतते अब जा रहे हैं शीत के दिन ,
आ गए मधुमास के संग प्रीत के दिन ।
कार्यक्रम में श्री ओमप्रकाश रिछारिया ने भी अपनी सुंदर प्रस्तुति दी। काव्य गोष्ठी बहुत ही सराहनीय एवं अविस्मरणीय रही।
कार्यकम में श्रोता के रूप में सर्वश्री अरविंद जैमिनी ,राजेंद्र मुद्गल एवं सतीश श्रीवास्तव सहित अन्य गणमान्य जन उपस्थित रहे।
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