युगल किशोर शर्मा, पत्रकार
करैरा। जिन लोगों को भगवान कीk भक्ति ,भक्ति और प्रारब्ध पर विश्वास वह विचार करें और नहीं भी हो तब भी विचार करें, कि कैसे एक छब्बीस वर्षीय युवा कथावाचक बुंदेलखंड के छोटे से गांव से निकल कर आज अपनी पहिचान सम्पूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में बना चुका है जबकि न तो उसका परिवार किसी बड़े नाम (जैसे -धार्मिक, राजनैतिक या व्यावसायिक) से पूर्व में जाना जाता था और न ही किसी का सहारा था, लेकिन उस युवा का अपने प्रभु श्री हनुमान जी चरणों में पूर्ण समर्पण ही यह सिद्धि करता कि "जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करहीं सब कोई" लेकिन सर्त यही है कि अपने आराध्य के चरणों में समर्पण हो तो श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जैसा तभी तो आज वह जहां भी जाते हैं उस राज्य सहित आस पास के राज्यों की जानता ठीक उसी प्रकार उनकी ओर खिची चली आती है जैसे किसी बड़े चुम्बक की शक्ति से आकर्षित होकर उसके आस पास पड़े लोहे के कण स्वतः ही खिंचे चले आते हैं वर्तमान में यही स्थिति श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के साथ है, मैं यह अपने अनुभव के आधार पर दावे के साथ कह सकता हूं कि यह सिर्फ उनकी भक्ति के प्रभाव और पूर्व जन्म की तपस्या का ही प्रभाव है।
अभी ताजा उदाहरण बिहार का ही ले लें जहां पर आयोजन कर्ताओं को तीन लाख के लगभग अनुमान था जो रिकार्ड पहले ही दिन टूट गया तो वहीं दूसरे ही दिन आठ से दस लाख की भीड़ उमड़ पड़ती है, और आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा था।
जिससे यह सिद्ध होता कि अब भी इस देश कीसबसे बड़ी शक्ति उसका धर्म है। मैं यह इसलिए भी कह रहा हूँ कि किसी बड़े से बड़े सत्ताधारी राजनेता की रैली में 50-60 हजार की भीड़ जुटाने के लिए नेताओं और शासन प्रशासन को गांव गांव गाड़ी भेजने पैसे और भोजन ,पानी की पूरी व्यवस्था के बाद भी रैलियां फैल हो जाती हैं ऐसाहम सब ने देखा है। लेकिन इस भागदौड़ भरे वैज्ञानिक युग में यदि लाखों की संख्या में लोग तपती दोपहरी में कहीं दूर से आये किसी युवक को देखने के लिए पूरा राज्य दौड़ पड़े, तो आश्चर्य होता है। मेरे लिए यही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का सबसे बड़ा चमत्कार है।
इनके दर्शनों के लिए लाखों की भीड़ किसी एक जाति की भीड़ नहीं है, उसमें सम्पूर्ण हिन्दू समाज है,जहां राजनीति के कारण हर जाति को वोट बैंक के चश्मे से देखने की ही परम्परा सी बन गयी है।
उस टूटे हुए हिन्दू समाज को एक युवक पहली बार में इतना बांध देता है, तो यह विश्वास दृढ़ होता है कि हमें बांधना असम्भव नहीं। राजनीति हमें कितना भी तोड़े, धर्म हमें जोड़ ही लेगा...
आयातित तर्कों के दम पर कितना भी बवंडर बतिया लें, पर यह सत्य है कि इस देश को केवल और केवल धर्म एक करता है। कश्मीर से कन्याकुमारी के मध्य हजार संस्कृतियां निवास करती हैं। भाषाएं अलग हैं, परंपराएं अलग हैं, विचार अलग हैं, दृष्टि अलग है, भौगोलिक स्थिति अलग है, परिस्थितियां अलग हैं, फिर भी हम एक राष्ट्र हैं तो केवल और केवल धर्म के कारण! धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उसी धर्म की डोर से सबको बांध रहे हैं।
कुछ लोग उनके चमत्कारी होने को लेकर उनकी आलोचना करते हैं। मैं अपनी कहूँ तो चमत्कारों पर मेरा अविश्वास नहीं। एक महाविपन्न परिवार से निकला व्यक्ति यदि युवा अवस्था में ही देश के सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल हो जाता है, तो इस चमत्कार पर पूरी श्रद्धा है मेरी... धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपने समय के मुद्दों पर स्पष्ट बोलते हैं, यह उनकी शक्ति है। नवजागृत हिन्दू चेतना को अपने संतों से जिस बात का असंतोष था कि वे हमारे विषयों पर बोलते क्यों नहीं, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उस असन्तोष को शांत कर रहे हैं। यह कम सुखद नहीं...
कुछ लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को रोकने के दावे कर रहे थे। मैं जानता हूँ, उन्हें ईश्वर रोके तो रोके, अब अन्य कोई नहीं रोक सकेगा... धीरेंद्र समय की मांग हैं। यह समय ही धीरेंद्र शास्त्री का है। मैं स्पष्ट मानता हूँ कि यह भारत के पुनर्जागरण का कालखंड है, अब हर क्षेत्र से योद्धा नायक निकलेंगे। राजनीति, धर्म, अर्थ, विज्ञान, रक्षा और कला... हर क्षेत्र नव-चन्द्रगुप्तों की आभा से जगमगायेगा। देखते जाइये...
वन्दे मातरम्

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