(सुनिए क्या बोली, श्रीमंत)
उन्होंने कहा की हमारी पार्टी में दरवाजे हमेशा खुले हैं। जब आना हैं आइए जब जाना हैं जाइए। राकेश जी एक बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार से हैं सांवलदास जी को कोन नहीं पूजता था। सांवलदास जी एक अलग किस्म के व्यक्ति थे जैसे राजमाता एक अलग किस्म की व्यक्ति हैं और जब सांवलदास जी ने सुना की मैं खड़ी होने वाली हूं तो सबको पता हैं की उन्होंने अपनी टोपी के साथ क्या किया। ठीक हैं न पर मैं फिर से कहती हूं ये लोकतंत्र हैं जिसको आना हैं मैदान में आए जिसको नहीं आना हैं न आए। हमारा क्या हैं। जब उनसे पूछा गया की आयातित लोग ही जा रहे हैं तो उसके जवाब में श्रीमंत ने कहा की जो आए वो जा रहे हैं वापिस, जो अपने पुराने स्थाई हैं वो तो कहा जायेंगे।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें