शिवपुरी। नगर स्थित बड़े हनुमान जी मंदिर तुलसी आश्रम (कत्था मिल) पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन की कथा में व्यास नंदिनी भार्गव ने कृष्ण की लीलायें, महारास एवं रुक्मणी विवाह के प्रसंग वडे ही आध्यात्मिक ढ़ंग से भक्तों को सुनाये ,उन्होंने कहा कि रासलीला तो भागवत का फल है,और महारास, जीव एवं ईश्वर का मिलन है, भागवत का उद्देश्य ईश्वर का जीवन दिखाना उसकी प्राप्ति कराना है, रासलीला काम को मारती है क्योंकि यह दिव्य मिलन गोपियों का, कृष्ण के साथ होता है,रासमंडली के मध्य में राधा कृष्ण हैं, कृष्ण के एक हाथ में वांसुरी दूसरा हाथ राधा जी के कंधे पर है,एक एक गोपी के साथ एक एक कृष्ण है, रासलीला के चिंतन से कामवासना नष्ट होती है, परमात्मा आनंद स्वरूप है अतः भक्ति मार्ग में आनंद और श्रद्धा के विना सिद्धि नही मिल सकती, रासलीला,भागवत का उद्देश्य जीव को ईश्वर मय वनाना है! भगवान ने उन्हीं गोपियों के साथ रास रचाया जिनका माया रुपी आवरण,चीर हर लिया था, गोपियों का चीर हटते ही उनको भगवान का रास प्राप्त हुआ,रासो वै स: अर्थात जव रस ही रस में ढूव जाये तव महारास होता है!
श्री कृष्ण सव राजाओं से जीतकर रुक्मणी जी को द्वारिका ले आये,विधि पूर्वक पाणिग्रहण किया, द्वारिका में उत्सव मने, रूक्मिणी हरण की गाथा गाई जाने लगी,भगवती लक्ष्मी जी को रुक्मणी के रुप में साक्षात लक्ष्मी पति भगवान श्री कृष्ण के साथ देखकर द्वारिका वासी नर, नारियों को परम आनंद हुआ।

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