कमबख्त विधान सभा चुनाव क्या करीब आए लोगों का यानि की नेताओं का साथ बैठकर चाय पीना तक दुश्वार हो गया। अभी जितेंद्र जैन, धैर्यवर्धन और रामवीर की फोटो चर्चा में आई थी की गुरु पूर्णिमा पर पोहरी से बीजेपी के एक बड़े नेताजी की फोटो श्योपुर के कांग्रेस के बड़े नेता जी के साथ दिखाई दी तो हमने सोचा जाने दो अब कौन हर कोई पार्टी बदलेगा। गुरु पूर्णिमा थी हो सकता हैं दर्शन को गए हों या क्या पता गुरु भी एक हों सो कुछ नहीं लिखा था।
इसी बीच आज फिर एक फोटो दिखाई दे गई तो मन नहीं माना हमने धैर्य खोया और पूछ बैठे धैर्यवर्धन जी से तो बोले, धमाका वाले भईया, श्रीप्रकाश जी विपक्षी दल के नेता हैं, वे बेहद विद्वान व्यक्ति हैं। उनसे मिलने पर इतिहास, संस्कृति, साहित्य, भूगोल जैसे विषय पर बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है।
एक ही शहर की हम धरोहर हैं अतः राजनैतिक तौर पर विपरीत ध्रुव होने के वावजूद छोटे शहरों में आसानी से मेल मुलाकात हो जाती है जिसका उनके सुदीर्घ अनुभवों को सुनकर लाभ लेना चाहिए। दरअसल शहर के नामचीन एडवोकेट श्रीमान भुवन दंडोतिया जी ( श्रद्धेय गोपाल दंडोतिया जी के अनुज) के यहां एक केस की जानकारी लेने गया था तभी वहां अध्यक्ष जी से मुलाकात हुई, कुछ बात हुई। शर्मा जी बोले,
व्यक्तिगत व्यवहार इतना अच्छा होना चाहिए कि आप आते जाते जय राम जी की बोल सकें और यदि साथ बैठे हों तो कुछ ज्ञान प्राप्त भी कर सकें,
मेरा तो यही प्रयास रहता है।
हमने फिर सवाल दाग दिया बताइए जरा क्या बात हुई, तो बताने लगे कि 1985 में रूस की यात्रा पर गए पं. श्रीप्रकाश शर्मा जी बोले 1991 (32 साल पहले ) तक रूस ( तत्कालीन सोवियत संघ ) और यूक्रेन तब एक ही थे। 30 सालो में खराब विदेश नीति के कारण यूक्रेन अमेरिका और रूस के परंपरागत झगड़े में फंस गया और बेइंतिहा बमबारी के दौर से गुजर रहा है । इन्ही 6 साल के कालखंड में सोवियत संघ से विखंडित होकर 15 देश अलग हो गए थे ( जिसके राजनैतिक, धार्मिक, मुख्यालय से काफी दूर होना, रूस की बिगड़ती अर्थव्यवस्था, नेतृत्व की कमजोरी जैसे अनेकों कारण थे ) । यह रशिया ही था जिसने संसार में सर्वप्रथम अंतरिक्ष में पहला उपग्रह भेजा । प्रथम अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन भी सोवियत संघ के नागरिक थे वक्त की बलिहारी है यह की इतना महान और ताकतवर देश भी टूट गया । श्रीप्रकाश जी इस दौरान मॉस्को से लेकर ताशकंद सहित अनेक शहरों की यात्रा पर रहे । श्रीप्रकाश जी बोले की रूसी नागरिकों में अनुशासन और देशभक्ति तब भी अनुकरणीय और उल्लेखनीय थी।
वैश्विक मंच पर आज के भारत की विदेश नीति की सर्व स्वीकार्यता की प्रशंसा करते हुए श्रीप्रकाश जी कहने लगे कि भारत ने कभी किसी के फटे में टांग नही अड़ाई ।और पंडित जी अपनी यादों में खो गए । वे कहते हैं की भारत के नेताओं को दुनिया में सदैव भरपूर सम्मान मिला है।
सरकारी खर्चे पर सोवियत संघ की यात्रा पर गए आ. श्रीप्रकाश जी तब अविवाहित बांके नौजवान थे । श्रीप्रकाश जी भाई साहब जब चर्चारत थे तब विदेशी बाला का उनके प्रति लगाव जैसे अनछुए , अनकहे किस्से भी जुबान पर आ गए थे । उर्दू की अच्छी समझ होने से पंडित जी रूस में भी शेर ओ शायरी कहने से नहीं चूके, अफगानिस्तान और वर्तमान रूस के मध्य के लोग जो अब अलग देश है पर वे अधिकांश लोग मुस्लिम धर्मावलंबी होने से थोड़ी उर्दू समझ लेते थे जिसपर पंडितजी की विदेशी धरती पर और साथियों पर अच्छी धाक जम गई थी । इतनी उमस और गर्मी में भी चर्चारत श्रीप्रकाश जी सोवियत की बर्फ और ठंडक से इस समय भी तरोताजा दिखाई देने लगे ।
वे कह रहे थे कि तब सोवियत उत्सव के तहत परस्पर दोनो देशों में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। यूथ फेस्टिवल के अंतर्गत भारतीय युवकों को सोवियत संघ की यात्रा पर भेजा गया ।
मित्रता चरम पर थी तभी तो तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाईल गोर्वाचेव के सोवियत संघ के राष्ट्रध्यक्ष के कार्यकाल में शिशुओं के नाम सीता, गीता और इंदिरा आदि रखे गए और भारत में स्टालिन और नताशा जैसे रूसी नामों ने परिवारों में जगह पाई । राजधानी मॉस्को में गंगा नाम से एक बड़ा जनरल स्टोर भी खुल गया था । इसी दौरान भारत को रूस से T 72 नामक युद्धक टैंक मिले थे ।
वर्तमान राष्ट्रपति पुतिन और भी ज्यादा आक्रामक हैं वे दुनिया में फिर से उतना ही ताकतवर रूस बनाना चाहते है जितना विखंडन के पहिले सोवियत संघ था ताकि दुनिया की राजनीति में पलड़ा एक ही तरफ झुका न दिखाई दे ।
मुझे तो सिर्फ इतनी समझ थी की रूस भारत का सच्चा दोस्त है और किताबो पर चढ़ाए जाने वाले कवर ( रंगीन, चिकना, मल्टीकलर में प्रिंट, मोटा और जल्दी खराब न होने वाला, मजबूत पुट्ठा कागज ) वाली मैगजीन इसी देश से आती है । रंगीन शब्दो और चित्रों का कवर पाठ्य पुस्तक निगम की तत्कालीन कक्षा की किताबो पर , चढ़कर, मुड़कर वह इठलाता, चिड़ाता और किताब को जवान बनाता था । जिन बच्चों की किताब पर यह कवर होता बाकी बच्चे उनकी किताबो को गौर से देखतकर सोचते थे काश ऐसा पुट्ठा हमारी किताब को भी मिल जाता। हम यह भी मानते थे कि यदि भारत पर कोई हमला हुआ तो हमारा इकलौता सक्षम और सच्चा दोस्त रूस साथ खड़ा दिखाई देगा।

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