शिवपुरी। भगवान महावीर स्वामी का जन्म राज परिवार में हुआ था। भौतिक सुख सुविधाओं की उनके पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन कोई भी सांसारिक वस्तु उन्हें सुख और आनंद से परिचित नहीं करा पाई। यदि धन की प्रचुरता, स्वास्थ्य, पत्नी, संतान, दीर्घायु और विद्या से सुख मिलता तो त्रिशलानंदन संसार क्यों छोड़ते और क्यों संन्यासी बनते। आनंद का खजाना हमारे भीतर है। उक्त उद्गार स्थानीय पोषद भवन में जैन साध्वी जयश्री जी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने संत दर्शन के लाभों से परिचित कराया वहीं साध्वी वंदनाश्री जी और साध्वी जयश्री जी ने भटके हुए इंसान हैं हम, प्रभु शरण पाना है, ये हैं आगमवाणी जिसे बारंबार सुनना है...भजन का गायन किया।
धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने शास्त्रों को पढऩे का लाभ बताते हुए कहा कि इससे जीवन में परिवर्तन आता है। प्रभुवाणी को सुनने से मन में जिज्ञासा पैदा होती है, ज्ञान का अर्जन होता है और चिंतन करने से विचारों तथा व्यक्तित्व में परिवर्तन होता है। ज्ञानी व्यक्ति प्रभु की वाणी को जन-जन में प्रसारित कर धर्म प्रभावना बढ़ाने का कार्य करता है। उन्होंने कहा कि संसार की कोई भी भौतिक वस्तु आपको सुख नहीं दे सकती है। सुख का अहसास कुछ समय के लिए होता है। असली सुख बाहर नहीं है, भीतर है। उन्होंने कहा कि कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े जग माही। धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने संत दर्शन की महिमा बताते हुए कहा कि इससे सम्यकत्व मजबूत होता है। श्रद्धा जन्म लेती है और आत्मा मोक्ष पथ की ओर अग्रसर होती है। इस अवसर पर साध्वी वंदनाश्री जी ने जब जीवन का अंत हो, मेरे सामने एक संत हो...भजन का गायन किया। धर्मसभा को साध्वी रमणीक कुंवर जी ने भी संबोधित किया।

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