शिवपुरी। मोक्ष के चार दरबाजों में से पहला द्वार दान का है। जीवन की आसक्ति को दूर करता है। परिग्रह की भावना अर्थात् संचय वृत्ति का हृास करता है। जीवन को परोपकार में संलग्र करता है। हालांकि आत्मा का श्रेष्ठ कार्य संयम (संन्यास) है, लेकिन दीक्षा लेने के पूर्व दान करना अनिवार्य है। तीर्थंकर दीक्षा लेने के पूर्व पूरे एक वर्ष तक दान करते हैं। शुद्ध भावों से किया गया दान हमारे मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करता है। उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने स्थानीय पोषद भवन में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में उन्होंने जैन दर्शन में वर्णित मोक्ष के चार मार्ग और चार रास्तों का वर्णन करते हुए धर्मप्रेमियों से जीवन उस अनुरूप बनाने का उपदेश दिया। धर्मसभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने बताया कि जिन पर ईश्वर की कृपा और अनुकम्पा होती है वही दान करने के अधिकारी होती हैं। नहीं तो धन, संपत्ति होते हुए भी दान नहीं कर पाते और करने की इच्छा हो तो परिवार में कोई ना कोई दान में अवरोध बनकर सामने आ जाता है। इसके पूर्व साध्वी जयश्री जी और साध्वी वंदना श्रीजी ने तुम्हारी शरण में भगवन तुम कर लो विनती स्वीकार भजन का गायन किया।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि 18 पापों से धन का उपार्जन होता है और जैसा धन आता है वैसी ही व्यक्ति की मती हो जाती है। धन के शुद्धिकरण के लिए दान अत्यंत आवश्यक है।(Caption : प्रवचन से पूर्व अपनी गुरु नीं मां से आशिर्वाद लेती साध्वी नूतन प्रभा श्री जी)
अपनी कमाई का एक हिस्सा अवश्य दान करना चाहिए, लेकिन अहसान भावना के साथ नहीं शुद्ध भाव के साथ किया गया दान ही फलीभूत होता है। गुप्त दान की महिमा तो और भी अपरम्परा है। दायां हाथ दान दे तो बायें को पता भी ना चले। साध्वी जी ने कहा कि दान की यदि हम घोषणा करते हैं तो 24 घंटे के भीतर उस घोषणा की पूर्ति कर देनी चाहिए। दान की रकम घर में नहीं रखनी चाहिए। दान करने से तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन होता है और शुद्ध भाव से यदि दान दिया जाए तो भगवान बनने का रिजर्वेशन हो जाता है। दान का दूसरा द्वार साध्वी जी ने शील बताया और कहा कि वर्षावास में अधिक से अधिक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। दान का तीसरा द्वार तप है। तप से कर्मों की निर्जरा होती है और आत्मशक्ति प्रबल होती है। दान के चौथे द्वार भावना की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि दान, शील और तप तब प्रभावी होते हैं जब यह हृदय के आंतरिक भावों से किए जाएं। धर्मसभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने बताया कि समाज में दीपचंद गार्डी जैसे दानवीर महापुरुष हैं जो हर दिन कुछ न कुछ दान करते हैं और जिस दिन वह दान नहीं कर पाते उस दिन वह उपवास करते हैं।
दान किया गया धन ही साथ जाता है
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि आपकी सारी संपत्ति यही रह जाती है सिर्फ दान किया गया धन ही साथ जाता है। उन्होंने सेठ हुकुमचंद का उदाहरण देते हुए कहा कि उनसे पत्रकारों ने पूछा कि आपके पास कितना धन है तो उन्होंने कहा कि बहुत ज्यादा नहीं है। इस पर पत्रकार का सवाल था कि आपके पास तो अथाह संपत्ति है। रंगमहल है, शीशमहल है, अनेकों कोठियां हैं, जमीन जायदादें हैं, बेशुमार धन-दौलत है और आप कहते हैं कि आपके पास ज्यादा पैसा नहीं है। इस पर शांति से सेठ हुकुमचंद ने जवाब दिया कि मैंने अभी तक सिर्फ 40 लाख का दान दिया है और यही मेरी संपत्ति है। यही संपत्ति मेरे साथ जाएगी। बांकी सब तो यहीं पड़ा रह जाएगा।

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