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धमाका धर्म: साध्वी रमणीक कुंवर जी! गुरु छाया का प्रतिरूप81वे जन्मदिवस पर विशेष: अशोक कोचेटा

गुरुवार, 17 अगस्त 2023

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। प्रसिद्ध जैन संत मालव केसरी पूज्य श्री सौभाग्यमल जी म.सा. के मुखारबिंद से दीक्षा लेने वाली और शांति की प्रतिमूर्ति पूज्य शांति कुंवर जी म.सा. की सुशिष्या साध्वी रमणीक कुंवर जी का व्यक्तित्व जिन शासन की अनमोल धरोहर है। उनके गुणों का जितना बखान किया जाए उतना कम है। सरलता, सहजता, वात्सल्यता और निरहंकारिता की वह प्रतिमूर्ति हैं। उनके चेहरे पर हर समय बाल सुलभ मुस्कान रहती है हर क्षण वह आशीर्वाद देती हुईं नजर आती हैं। उनके दर्शन और वंदन करने वाले श्रद्धालुओं से जब वह कहती हैं दया पालो पुण्यवानो तो रोम-रोम पुलकित हो उठता है। अनुशासित और संस्कारित जीवन जीने की वह प्रेरणा देती हैं और भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति बताकर उसका आचरण करने की नसीहत वह अपने अनुयायियों को देती हैं। गुरु भक्ति की वह अनुपम मिसाल हैं। अपनी गुरुणी पूज्य शांति कुंवर जी और दाद गुरुणी पूज्य चांद कुंवर जी महाराज के प्रति उनका समर्पण भाव इस हद तक देखने लायक था कि उन्हें गुरु छाया की पदवी से अलंकृत और सुशोभित किया गया।
81 वर्षीय साध्वी रमणीक कुंवर जी का जन्म निमाड़ के एक छोटे से गांव करई में हुआ था। उनके पिता का नाम धनसुख लाल और माँ का नाम सूरज बाई था। उनके बचपन का नाम दमयंती था। जब वह महज दो वर्ष की थी तो उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया था। उनकी माँ जैन कुल में मूर्तिपूजक समाज से थीं। सौतेली माँ ने उनका लालन पालन किया। वह स्थानकवासी समाज की थीं जबकि उनकी धाई माँ वैष्णव धर्म का पालन करती थीं। बालिका दमयंती ने तीन-तीन माँ का दूध पिया था। परिवार बहुत समृद्ध था तथा धन दौलत और जमीन जायदाद की कोई कमी नहीं थी। नौ वर्ष की उम्र होते-होते दमयंती के सिर से पिता का साया भी उठ गया। पिता के वियोग के साथ ही घर में धन संपत्ति का विवाद भी शुरु हो गया जिससे बालिका दमयंती के मन में वैराग्य का बीजारोपण हुआ। इंदौर की मोरसली गली में उनके मामा रहते थे। बालिका दमयंती के मामा के घर के पास जैन स्थानक था जब वह अपने मामा के घर गई तो रास्ते में उन्हें महासती शांति कुंवर जी म.सा. मिलीं और जैन संस्कारों से परिपूरित बालिका ने साध्वी जी को प्रणाम किया और उनसे अपने गांव आने की विनती की। इस पर हंसते हुए शांति कुंवर जी महाराज बोलीं यदि तुम दीक्षा लोगी तो मैं अवश्य तुम्हारे गांव आऊंगी। यह छोटी सी बात बालिका के दिल को लग गई और उसने सहज भाव से कहा कि मैं साध्वी बनूंगी और आपसे दीक्षा लूंगीं। इसके बाद दमयंती अपने गांव करई लौटी और उसने परिवार से दीक्षा लेने की अनुमति मांगी। जैन दर्शन में बिना परिवार की आज्ञा के दीक्षा नहीं दी जाती। दमयंती के दीक्षा लेने की बात सुनकर उनकी सौतेली माँ विफर उठीं और उन्हें लगा कि मुझ पर यह आरोप लगेगा कि मैंने ठीक से देखभाल नहीं की इसलिए दमयंती दीक्षा ले रही है। उन्होंने दीक्षा की अनुमति देने से इंकार कर दिया। बालिका के काका साहब तो दीक्षा का नाम सुनकर लाल पीले हो गए। भाई ने भी दीक्षा लेने की अनुमति नहीं दी। इसके बाद बताया जाता है कि 13 वर्षीय बालिका अपनी मासी के पुत्र पूर्व मंत्री अमोलक चंद्र छाजेड़ जी से मिलीं। इस पर अमोलक चंद्र जी उन्हें एक जज साहब के पास ले गए। जज महोदय ने सुझाया कि यदि बालिका विवाह कर ले तो अनुमति सिर्फ एक पतिदेव से ही लेनी होगी। इतिहास में यह पहला उदाहरण है जब वैराग्य पथ पर अग्रसर किसी बालिका ने संन्यासी बनने के लिए विवाह की सहमति दी। उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में वकील साहब श्रेयमल जी छाजेड़ के पुत्र अमृतलाल छाजेड़ से हुआ। उनकी सुशिष्या साध्वी नूतन प्रभाश्री जी बताती हैं कि गुरुणी मैया ने फेरे के समय ही दीक्षा लेने के निर्णय से अपने पति को अवगत करा दिया था। उनके पतिदेव स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में ट्रेजरार थे। दीक्षा लेने के बाद उनकी बदली भोपाल हुई और बताया जाता है कि यहां दमयंती ने उनसे कह दिया कि दुनिया की नजरों में भले ही आप मेरे पतिदेव हैं, लेकिन मैं आपको अपना भाई मानती हूं और मैं आपसे दीक्षा लेने की अनुमति चाहती हूं। 8 मार्च 1962 को वह अमूल्य क्षण आ गया जिसकी बालिका दमयंती को प्रतीक्षा थी। मालव केसरी सौभाग्यमल जी म.सा. के मुखारबिंद से और साध्वी चांद कुंवर जी, साध्वी शांति कुंवर जी के सानिध्य में दीक्षा संपन्न हुई। बालिका दमयंती का नामकरण अब साध्वी रमणीक कुंवर जी किया गया। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने आगमों का अध्ययन किया, संस्कृत और प्राकृत भाषा में निपुणता प्राप्त की। गुरुणी शांति कुंवर जी महाराज के हर आदेश को शिरोधार्य किया। ज्ञानार्जन का कोई अवसर नहीं छोड़ा और आज भी उनके नौ घंटे साधना में व्यतीत होते हैं। सादगीपूर्ण और संयमित जीवन की वह मिसाल हैं। मानव सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। गुप्त रुप से पीडि़त मानवता की सेवा के लिए उनके कई उपक्रम संचालित हो रहे हैं। उनके सानिध्य में रहकर उनकी सुशिष्याएं आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नति के पथ पर लगातार अग्रसर हैं। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी कहती हैं कि मैं छह वर्ष की उम्र से उनके साथ हूं। उस समय मैं क, ख, ग भी नहीं जानती थी। उनकी वात्सल्यता, ममता और आशीर्वाद में एक ममतामयी माँ और आदर्श गुरु की छाया विद्यमान है। उनके बिना जीवन क्या होगा, यह कल्पना कर ही मन कांप उठता है। जन्मदिवस पर अपनी गुरुणी मैया रमणीक कुंवर जी महाराज के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए वह कहती हैं कि मेरी गुरुणी मैया का आध्यात्मिकता और गुरु आशीर्वाद से परिपूर्ण जीवन है। मैं इस अवसर पर यही कामना करती हूं कि वह अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचें और जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करें। उनके 81वे जन्म दिवस पर उनके श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन्।












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