शिवपुरी। 62 वर्ष से जैन साध्वी के रूप में संयम का पालन कर रहीं साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के 81वे जन्मदिवस पर आयोजित गुणानुवाद सभा में उनकी सुशिष्या साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने उनके व्यक्तित्व की सहजता, सरलता, आत्मीयता और वात्सल्यता जैसी खूबियों के साथ-साथ उनकी आध्यात्मिक विशेषताओं को भी बखूबी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि गुरूणी हो तो साध्वी रमणीक कुंवर जी जैसी जिन्होंने एक माँ के रूप में, एक गुरू के रूप में और एक संरक्षक के रूप में हमारी देखभाल की है। जहां पीठ थपथपाने का मौका आया वहां उन्होंने शाबाशी भी दी और जहां आवश्यकता हुई वहां वह कड़े प्रहार करने से भी नहीं चूकीं। आज उनके सानिध्य में रह रहीं साध्वियां जो कुछ भी हैं वह उन्हीं के आशीर्वाद की बदौलत हैं। गुणानुवाद सभा में स्थानकवासी जैन समाज के अध्यक्ष राजेश कोचेटा, मूर्तिपूजक समाज के अध्यक्ष तेजमल सांखला, राजकुमार श्रीमाल, अशोक कोचेटा, कु. प्रतिभा जैन और अल्पना मेहता ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त कर गुरूणी मैया के प्रति विनयांजलि अर्पित की।साध्वी नूतन प्रभाश्री जी का वक्तत्व अपनी गुरूणी मैया के प्रति आत्मीयता और भावुकता से परिपूर्ण रहा। अनेक अवसरों पर उनकी आंखें अपनी गुरूणी के सम्मान में आद्र हो उठीं। उन्होंने साध्वी रमणीक कुंवर जी को गुदड़ी का लाल बताया और कहा कि उन्होंने अपने कर्मों से महानता हासिल की। महज 10 वर्ष की उम्र में उन्हें वैराग्य हो गया। परिवार की इतनी लाड़ली थी कि जब उन्होंने जैन दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की तो किसी ने भी सहमति नहीं दी। जैन दीक्षा तब ही दी जा सकती है जब परिवार के लोग सहमति दें। लेकिन गुरूणी मैया के मन में वैराग्य के अंकुर फूट पड़े थे। इंदौर में जब अचानक उनका उनकी गुरूणी मैया से साक्षात्कार हुआ तो सहज भाव में साध्वी रमणीक कुंवर जी की गुरूणी साध्वी शांति कुंवर जी ने कहा कि मैं तुम्हारे गांव में तब आऊंगी जब तुम दीक्षा लोगी। इससे वैराग्य भावना और प्रगाढ़ हुई। 16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह अमृतलाल जी छाजेड़ से हुआ और यह विवाह उन्होंने इसलिए किया ताकि उनके पतिदेव से उन्हें वैराग्य लेने की अनुमति मिल जाए। फेरों के समय उन्होंने अपनी इच्छा से अपने वर अमृतलाल जी को अपनी इच्छा से अवगत करा दिया। विवाह के ढाई वर्ष बाद ही उन्होंने पति की आज्ञा से दीक्षा ले ली और दीक्षा लेने के बाद उन्होंने लगभग पूरे भारत वर्ष की पदयात्रा कर जैन धर्म और संस्कृति का प्रचार किया। उनकी अपने गुरूदेव मालव केसरी सौभाग्यमल जी महाराज और दाद गुरूणी साध्वी चांद कुंवर जी गुरूणी, साध्वी शांति कुंवर जी में अगाध आस्था थी। इस कारण उन्हें गुरू छाया की उपाधि से अलंकृत किया गया। वह नौ घंटे साधना में रत रहती है और गुप्त रूप से उनके निर्देशन में समाजसेवा के अनेक उपक्रम संचालित हो रहे हैं। राजेश कोचेटा ने अपने हृदय उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरूणी मैया रमणीक कुंवर जी का व्यक्तित्व यथानाम तथा गुण का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनकी दया, कृपा और अनुकम्पा से कोई भी वंचित नहीं रहता है। शिवपुरी श्रीसंघ पर उनका अनंत उपकार है और जन्मदिवस पर हम उनके यशस्वी जीवन की कामना करते हैं। समाजसेवी और मूर्तिपूजक संघ के अध्यक्ष तेजमल सांखला ने साध्वी रमणीक कुंवर जी का जीवन परिचय दिया और कहा कि वह गुणों की खान हैं। जिन शासन की वह लगातार 62 वर्षों से एक साध्वी के रूप में सेवा कर रही हैं। उनके सानिध्य में रह रही साध्वियां भी जिन शासन की अनमोल धरोहर हैं। श्रावक राजकुमार श्रीमाल और अशोक कोचेटा ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त की और कहा कि उनका चातुर्मास हम सबके लिए जीवन निर्माण का एक अवसर है जिसका लाभ उठाना चाहिए। कु. प्रतिभा जैन ने कविता पढ़कर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं।
मातृ और पितृ भक्ति के श्रेष्ठ उदाहरण हैं भगवान महावीर
आराधना भवन में पर्यूषण पर्व के छठवे दिन कल्पसूत्र का वाचन करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी की मातृ और पितृ भक्ति अनुकरणीय है। उनके दीक्षा लेने पर माता-पिता दुखी ना हो इसलिए प्रभु ने संकल्प लिया कि माता-पिता के जीवित रहते वह दीक्षा नहीं लेंगे। माता और पिता के देहावसान के ढाई साल बाद बड़े भाई नंदीवर्धन से आज्ञा लेकर भगवान महावीर ने दीक्षा लेने का निर्णय लिया। उन्होंने दीक्षा लेने के पूर्व एक वर्ष तक वर्षी दान किया। एक वर्ष में उन्होंने 3 अरब 88 करोड़ 80 लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान किया। दान को भगवान महावीर ने मोक्ष का द्वार बताया। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि श्रावक श्राविकाओं को जिन वाणी का सम्मान करना चाहिए जो जिन वाणी का सम्मान नहीं करते उन्हें श्रावक कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। जिन वाणी और गुरू का सम्मान सच्चे श्रावक की विशेषता है।

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