शिवपुरी। आज जो उसूलों की बात कर रहे हैं उन्हें याद होगा 2006 मे श्रीमंत महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया जी की कृपा से ही वीरेंद्र सिंह विधायक बने थे 2008 में, उसके बाद सिंधिया जी ने फिर टिकट दिया और चुनाव हार गये अपनी भाषा शैली से।
2013 मे सिंधिया जी ने पुनः टिकट दिया सभाएं की अपनी भुआ के खिलाफ लेकिन उसके बाद भी चुनाव हार गये।
हार से व्यथित होकर तब सत्ता लोलुपता मे पार्टी बदली 2018 मे ऐन केन प्रकरेण महज 700 वोटों से चुनाव जीते।
उसके बाद भाषा का क्या स्तर रहा कार्यकर्ताओं को किस प्रकार परेशान किया यह किसी से झुपा नहीं है आज समाज याद आ रही जब चंदेरी से जगन्नाथ सिंह जी को टिकट मिला तब समाज याद नहीं आई ।
आखिर वीरेंद्र सिंह जी कबतक स्वयं के नीज स्वार्थ के लिए समाज का सहारा लेगें तब कहा गयी थी समाज जब समाज के ही लोगों एफआईआर करवा रहै थे।
विजय शर्मा
प्रदेश कार्य समिति सदस्य

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें