शिवपुरी। "मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा शिवपुरी में "सिलसिला एवं तलाशे जौहर" के तहत कर्नल जी एस ढिल्लन एवं ख़ावर जबलपुरी की याद में व्याख्यान एवं रचना पाठ आयोजित"
मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा शिवपुरी के द्वारा सिलसिला एवं तलाशे जौहर के तहत कर्नल जी एस ढिल्लन एवं ख़ावर जबलपुरी की स्मृति में व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन 15 अगस्त 2023 को दुर्गा मठ, शिवपुरी में ज़िला समन्वयक सुकून शिवपुरी के सहयोग से किया गया।उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की गोष्ठी *सिलसिला* के माध्यम से हम स्वाधीनता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान देने वाले महान क्रांतिकारी कर्नल ढिल्लन को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
साथ उर्दू साहित्य के क्षेत्र अपनी बेमिसाल रचनाओं के माध्यम से शिवपुरी का नाम रोशन करने वाले प्रसिद्ध शायर व लेखक खावर जबलपुरी की साहित्यिक ख़िदमात को भी याद किया जाएगा।
शिवपुरी ज़िले के समन्वयक सुकून शिवपुरी मोईन ने बताया कि विमर्श एवं रचना पाठ दो सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में दोपहर 3 बजे तलाशे जौहर प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें ज़िले के नये रचनाकारों ने तात्कालिक लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया। निर्णायक मंडल के रूप में ग्वालियर के उस्ताद शायर एवं साहित्यकार क़ासिम रसा एवं वरिष्ठ शायर डॉ. विवेक अग्रवाल मौजूद रहे जिन्होंने प्रतिभागियों शेर कहने के लिए दो तरही मिसरे दिए जो निम्न थे:
1.लम्हा लम्हा बदल रहा है
उपरोक्त मिसरों पर नए रचनाकारों द्वारा कही गई ग़ज़लों पर एवं उनकी प्रस्तुति के आधार पर निर्णायक मंडल के संयुक्त निर्णय से उर्वशी गौतम ने प्रथम, सतीश दीक्षित किंकर ने द्वित्तीय एवं मुकेश शर्मा ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।
तीनों विजेताओं ने जो अशआर कहे वो निम्न हैं।
उर्वशी गौतम
मैया कब से मना रही है
ज़िद्दी कान्हा मचल रहा है।
सतीश दीक्षित किंकर
तुझको कैसे भूल के ये दिल
धीरे धीरे संभल रहा है।
मुकेश शर्मा-
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा
फिर इतना क्यों उबल रहा है
प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले तीनों विजेता रचनाकारों को उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कार राशि क्रमशः 3000/-, 2000/- और 1000/- एवं प्रमाण पत्र दिए जाएंगे।
दूसरे सत्र में शाम 5 बजे सिलसिला के तहत व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता ग्वालियर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शायर क़ासिम रसा ने की। एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में प्रमोद भार्गव, ज़िला ब्यूरो चीफ, आज तक न्यूज़ चैनल, पुरुषोत्तम गौतम, कहानीकार, पवन शर्मा, व्यवस्थापक, सरस्वती विद्या पीठ, सुरेश दुबे, प्रांतीय संघर्ष वाहिनी प्रमुख, स्वदेशी जागरण मंच एवं डॉ. विवेक अग्रवाल चमन, ग्वालियर आदि उपस्थित रहे।इस सत्र के प्रारंभ में शिवपुरी के साहित्यकारों आशुतोष शर्मा "ओज" और यूसुफ़ क़ुरैशी ने महान स्वतंत्रता सेनानी कर्नल जी एस ढिल्लन एवं प्रसिद्ध शायर ख़ावर जबलपुरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
आशुतोष शर्मा ओज ने कर्नल जी एस ढिल्लन के कारनामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सुभाष चंद बोस, कैप्टन शाहनवाज़ व कर्नल सहगल के साथ मिल कर आज़ाद हिन्द फौज बना कर भारत की आज़ादी के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ा । दिल्ली में लाल क़िले में ट्रायल चली । ब्रिटिश सेना ने दो बार कोर्ट मार्शल किया। सिंगापुर व बर्मा में भी ट्रायल चली । पूरा देश ढिल्लन साहब के साथ खड़ा हो गया। भारी जन दबाव के कारण अंग्रेजों को छोड़ना पड़ा। 1998 में पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। आख़िरी जीवन भारत के हृदय स्थल शिवपुरी ज़िले में गुज़रा।
यूसुफ़ क़ुरैशी ने प्रसिद्ध शायर ख़ावर जबलपुरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी पैदाइश 1890 में हुई, वो उर्दू अदबो-ज़बान के बेमिसाल ख़ादिम थे। उर्दू, अरबी व फ़ारसी के विशेषज्ञ। सादा मिज़ाज। ख़ुश अख़लाक़ इंसान। उर्दू ज़बानो-अदब की निस्वार्थ सेवा की । बेहतरीन अफ़सानानिगार । उनकी एक नज़्म तराना-ए-सहरी बेहद मक़बूल हुई ।अफ़सोस उनके घरवाले उनकी रचनाओं को सुरक्षित नहीं रख सके।
रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :
क़ासिम रसा
हरी नहीं है मगर शाख़ काटते क्यों हो,
ये जाने कितने परिंदों को आसरा देगी ।
वो एक मां है ये उसका कुसूर है साहब,
सताइएगा उसे लाख वो दुआ देगी ।
डॉ.विवेक अग्रवाल चमन
उड़ रहे थे जो हवाओं में ज़मीं पर आ गए,
वक़्त ने ऐसा झिंझोड़ा आदमी से हो गये।
डॉ. महेंद्र अग्रवाल-
लगे रहें सदियों तक मेले यार शहीदों के,
न सूखें मूरत पर लटके हार शहीदों के।
सुकून शिवपुरी
डालूंगा अपने हाथ के छालों पे नज़र,
फिर हाथ बढ़ाऊंगा निवालों की तरफ़
डॉ. एच.पी.जैन हरि-
करते हैं हम नमन उन्हें जो जांनिसार हैं,
उनकी महान वीरता गाएगा ये गगन।
दिनेश वशिष्ठ दिनेश -
जो ज़ख़्म पीठ पे है दोस्त की निशानी है,
इसे संभाल कर रखना इलाज मत करना।
अशोक मोहिते मोहित-
किससे दहेज मागूं किसको हिसाब दूं,
लड़का मेरा भगा के मेरी जेब काट ली ।
मुबीन अहमद मुबीन-
ऐ हिंद तेरी अज़मत की क़सम हर वक़्त तेरे काम आएंगे,
जां देने का आया जो वक़्त अगर ये जां भी तुझी पे लुटाएंगे।
आदित्य शिवपुरी-
कीलें उठा के हाथ में बच्चे ने ये कहा,
किस-किस की आंख आजकल हिंदोस्तां पे है।
सुभाष पाठक ज़िया
शौर्य गाथाएं लिखीं हैं भाल पर इसके ज़िया,
आसमानों से भी ऊंचा मेरा हिंदोस्तान है।
सत्तार शिवपुरी-
मेरा बेटा हज करवाए ये भी तो हो सकता है,
और गिन-गिन के रोटी आए ये भी तो हो सकता है।
प्रदीप अवस्थी सादिक़-
कितने हिस्सों में मैं बंट गया देखिए,
अब मुकम्मल नहीं हूं किसी के लिए।
मो. याक़ूब साबिर-
हम हिंद के हैं वासी आज़ाद हैं वतन में,
जब तक ज़मीं रहेगी ये आसमां रहेगा।
सलीम बादल-
हिफ़ाज़त कर मेरे मौला ये तूफ़ां,
अंजलि प्रेम दीवानी-
मिले जो जन्म बार-बार तो तेरी ही गोद हो,
करे दुआ ये अंजलि हो ख़ुशनुमा मेरा वतन।
घनश्याम शर्मा
भारत बदल गया है सुनो कान खोल कर,
बदला तो छोटी बात है बदलाव लाएंगे।
कार्यक्रम का संचालन सलीम बादल द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक सुकून शिवपुरी ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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