शिवपुरी। आराधना भवन में प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज, साध्वी नूतन प्रभाश्री जी और साध्वी जयश्री जी के सानिध्य में पर्यूषण पर्व के दौरान पूर्ण उत्साह, उमंग और उल्लास के साथ भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाया गया। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने भगवान के जन्म का वाचन किया। उसके पूर्व भगवान महावीर की माँ त्रिशला द्वारा देखे गए चौदह स्वप्रों की बोली लगाई गई। पहली बार बोली रूपयों में ना लगकर तपस्या में लगाई गई। धर्मावलंबियों ने उपवास, आयंबिल और एकासना की बढ़चढ़कर बोली लगाई। भगवान को पालने में विराजमान करने की बोली 108 एकासना करने का संकल्प लेकर डॉ. पारस-पंकज गूगलिया परिवार ने ली। मेरु पर्वत तथा आरती की बोली साल भर में 75 एकासना का संकल्प लेकर नन्नू जी राजकुमार श्रीमाल परिवार ने ली। जैसे ही आराधना भवन के परिसर में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने भगवान महावीर के जन्म की घोषणा की वैसे ही पूरा हॉल भगवान महावीर की जय-जयकार के नारों से गूंज उठा और धर्मावलंबियों ने एक दूसरे को बधाई देते हुए नारियल खिलाया। भगवान के जन्म की खुशी में केसरिया रंग के छापे लोगों ने एक दूसरे को लगाए और भगवान की शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से निकाली गई। इसके बाद साधार्मिक वात्सल्य का आयोजन हुआ।
आराधना भवन में पर्यूषण पर्व के दौरान आज भगवान महावीर के जन्म का दिवस था। इस अवसर पर कल्पसूत्र का वाचन करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि भगवान को भी कर्मों का फल भोगना पड़ता है। उन्होंने बताया कि नयसार के भव में भगवान की आत्मा को सम्यकत्व की प्राप्ति हुई थी और मरीची के भव में जब उन्होंने अपने वासुदेव चक्रवर्ती और तीर्थंकर होने का अभिमान किया तो उन्हें नीच गोत्र भोगनी पड़ी और वह नरक में भी गईं। इसी कारण उनकी आत्मा ब्राह्मणी देवनंदा की कोख में आई जबकि तीर्थंकर क्षत्राणी के गर्भ से जन्म लेते हैं। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि हिरणगमेषी देव ने ब्राह्मणी के गर्भ में पल रही भगवान की आत्मा का अपहरण कर उन्हें माता त्रिशला के गर्भ में स्थानांतरित किया। भगवान जब माँ त्रिशला के गर्भ में आए तो माँ त्रिशला ने चौदह शुभ स्वप्र देखे। साध्वी जी ने कहा कि जब तीर्थंकर की आत्मा गर्भ में आती है तो माँ चौदह शुभ स्वप्र देखती है। इसके बाद साध्वी जी ने कल्पसूत्र का वाचन करते हुए भगवान के जन्म का वाचन किया तो पूरा परिसर भगवान महावीर की जय हो के नारों से गूंज उठा।
साध्वी रमणीक कुंवर जी की प्रेरणा से वृद्धाश्रम को दिए 11 हजार रूपए
पोषद भवन में आचार्य आनंद ऋषि जी म.सा. के पांच दिवसीय जन्मोत्सव के कार्यक्रमों में एक दिन दान दिवस का भी था जिसमें दिल खोलकर धर्मावलंबियों ने जीव दया, औषधि वितरण और ज्ञान दान के लिए दान दिया। अनेक लोगों ने गुप्त रुप से भी दान दिया। धर्मावलंबियों द्वारा एकत्रित की गई दान राशि में से साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपनी जन्म स्थली में संचालित वृद्धाश्रम और गौशाला के लिए 11 हजार रूपए की राशि करई से आए बंधुओं को भेंट की। यह राशि स्थानकवासी समाज के अध्यक्ष राजेश कोचेटा, मूर्तिपूजक समाज के अध्यक्ष तेजमल सांखला, चातुर्मास कमेटी के सचिव सुमत कोचेटा और पंकज गूगलिया ने भेंट की।

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