"मम्मी मुझे माफ़ करना। साइंस मुझे अच्छा नही लगता था मेरा मन हिस्ट्री और लिटरेचर में लगता था पर आपकी जिद थी मुझे डॉक्टर बनना हैं।सोरी मम्मा।"
इन अंतिम पंक्तियों को लिखने के साथ ही एक बिटिया इस संसार से उस बोझ को लेकर विदा हो गई जो उसके मन मस्तिष्क पर किसी और ने नही उसके मातापिता ने ही रख दिया था।यह एक सामान्य आत्महत्या भर का मामला नही है बल्कि भारत के मध्यम एवं निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से जुड़ चुका एक संत्रास है। राजस्थान के कोटा में कोचिंग कर रहे दो ऐसे ही विद्यार्थियों ने कमोबेश इन्ही मानसिक हालातों से पराजित होकर इस सप्ताह अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।इस साल अब तक 23 बच्चे ऐसा ही कदम उठा चुके हैं।ग्वालियर में भी पिछले दिनों एक ऐसे ही बालक ने खुदकुशी कर ली थी।इंदौर,भोपाल,जबलपुर ही नही छोटे कस्बाई क्षेत्रों से हर साल खबरे आती रहती हैं।इधर भारत का सबसे बड़ा कोचिंग हब कोटा " मासूम बचपन औऱ जन्मजात प्रतिभाओं " के लिए दम घोंटू चैंबर भी बन रहा है।मातापिता अपने निजी जीवन में जो खुद नही कर पाए है उसे अपने बच्चों से कराने की एक अस्वाभाविक जिद का शिकार हो रहे हैं। ऐसा लगता है मानो डॉक्टर औऱ आइआइटी इंजीनियर बनाने के लिये देश में बच्चों के मनोविज्ञान को कोई समझने के लिए तैयार नही हैं।पढ़ाई के लिए सहायक टूल कही जाने वाली "कोचिंग" से सब फलफूल रहे हैं।कोटा समेत देश के अधिकतर मेट्रोपॉलिटन शहरों का अर्थशास्त्र नई इबारत लिख रहा है।सरकारों का राजस्व बढ़ रहा है।पढ़ने पढ़ाने का यह पवित्र कार्य इंडस्ट्री की शक्ल ले चुका है।शिक्षकों के पैकेज करोड़ों में जा रहे हैं।अखबारों के पहले पन्नों पर नीट औऱ जेईई टॉपर्स के विज्ञापन भरे हैं।हर शहर में होर्डिंग्स कोचिंग्स की चमकदार दुनियां को बता रहे हैं लेकिन इस सफलता के पीछे एक दर्दभरी औऱ अव्यक्त सिसकियां भी हैं जिसे न परिवार न सरकार न सिस्टम सुनना चाहता है।
आज के अंक में हम इसी विषय को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
०कोटा यानी चमकदार सफलताओं के बीच अवसाद का अंबार०
AIR -1 यानी आल इंडिया रैंक के साथ मुस्कराते हुए विक्टरी साइन दिखाते फोटो आप हर साल अखबारों के पहले पन्ने से लेकर शहर के सबसे महंगे लोकेशन वाले होर्डिंग्स पर देखकर यही अंदाज लगाते है कि कोटा के कोचिंग कमाल कर रहे हैं।लेकिन यह सत्यांश भर है इसके पीछे की इस इंडस्ट्री का निर्मम चेहरा भी छिपा है।यह कोचिंग संस्थानों का शिक्षकीय कौशल या पराक्रम भर नही है बल्कि इंडस्ट्री के हर दाव इसके पीछे लगे है।हमारा उद्देश्य इन संस्थानों की काबिलियत या निष्ठा पर सवाल उठाना नही है बल्कि इस चमकदार प्रचार के बहाने देश के मध्यम और निम्नमध्यमवर्गीय परिवारों की उस एकतरफा इच्छाओं या यूं कहें कुंठाओं से जुड़ी त्रासदी को अधोरेखित करना है जिसमें लाखों मासूम बच्चे पिस रहे हैं।देश भर के लगभग 16 राज्यों के बच्चे इस समय कोटा के छोटे बड़े 100 से अधिक कोचिंग्स में पढ़ रहे हैं और इनका आंकड़ा करीब 02 लाख है।देश में आई आई टी की कुल सीट्स 10 हजार से कम हैं और गलाकाट प्रतिस्पर्धा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर साल 14 लाख बच्चे इस परीक्षा में बैठते हैं।यानी स्पर्धा इतनी खतरनाक है कि सफलता का प्रतिशत केवल 1.5 है।
नीट यानी एमबीबीएस की सीट्स अभी मोदी सरकार आने के बाद ही 91000 हुई है जो 2017 तक लगभग 47000 ही थी और परीक्षा देने वाले यहां भी 17 लाख के आसपास है।
इन आंकड़ों से जाहिर है कि बच्चों को सफलता का पोस्टर बाय बनने कितना दुरूह है।परिवार का परिवेश,बच्चों की जन्मजात अभिरुचि,भाषा,खानपान,स्थानीय वातावरण जैसे कारकों को दरकिनार कर कस्बाई औऱ छोटे शहरों से कोचिंग्स में धकेल दिए गए बच्चे आखिर किस कीमत औऱ किसके अरमानों को पंख देने आते हैं इसकी सच्चाई पिछले सप्ताह दो छात्रों की आत्महत्या में खोजना बिल्कुल भी कठिन नही है।क्यों उस बिटिया की हिस्ट्री और लिटरेचर की अभिरुचि को उसके मातपिता ने नही समझा?क्या जिन 23 बच्चों ने पिछले 08 महीनों में अकेले कोटा में आत्महत्या कीं उनके अपने सपनों का कोई मोल नही था? राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इन घटनाओं को लेकर सख्त लहजे में कोचिंग्स संचालकों को डांट लगाई।लेकिन सच्चाई यह है कि कुछ दिन बाद मामला शांत हो जाएगा।यह कहकर कि मरने वाले बच्चे आत्मविश्वास में कमजोर थे।पढ़ाई में प्रतिस्पर्धी नही थे।यह इंडस्ट्री फिर उसी रफ्तार से चलने लगेगी।
०कौन सुनेगा बच्चों की जब परिजन …..
कोटा के मंदिरों में जाइये हर दीवार उस मानसिक दबाब औऱ यंत्रणा की बाल चिरौरी करती नजर आयेगी जिसे परिजनों ने अपनी झूठी शान औऱ तथाकथित लिविंग स्किल के साथ बस आईआईटियन और नीट के साथ चिपका लिया है।मंदिर की दीवारों पर मन के अंतर्द्वंद्व लिखे हैं "प्रभु इस बार मेरा करा दें"। प्रतियोगी कोचिंग्स के वातावरण को लेकर 2007 में भाजपा सांसद महेंद्र मोहन ने एक निजी विधेयक राज्यसभा में पेश किया था "कोचिंग्स सेंटर ( विनियमन एवं नियंत्रण) विधेयक" तब यूपीए सरकार में शिक्षा मंत्री डी पुरंदेश्वरी ने 2012 कहा था "हम कोचिंग सेंटर्स के खतरों को रोकने कानून लायेंगे"मंत्री ने कोचिंग इंडस्ट्री को शिक्षा व्यवस्था में राक्षस तक निरूपित किया था।2023 में देश ऐसे कानून का इंतजार ही कर रहा है।कोटा में हर साल बच्चों की आत्महत्याओं की घटनाएं होती हैं।राजस्थान हाईकोर्ट भी इस पर संज्ञान लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बना चुका है पर जमीन पर कुछ नही हुआ। मानव संसाधन मंत्रालय ( अब शिक्षा) ने अशोक मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। उस कमेटी ने देश में कोचिंग उधोग की निगरानी के लिए "आल इंडिया काउंसिल फ़ॉर कोचिंग ऑफ एंट्रेंस एग्जाम "स्थापित करने का सुझाव दिया था। इस पर भी कुछ नही हुआ।
सवाल सरकार से अधिक तो मातापिता की भूमिका को लेकर उठाये जाने का समय आ गया है क्योंकि आज के मातपिता डॉक्टर या आईआईटी इंजीनियर बनाने के लिए मानो पगला गए हैं।बच्चों को क्या पढ़ना है?कैसे पढ़ना है?कहाँ पढ़ना है? औऱ क्यों पढ़ना है?इन सवालों के जबाब खोजने की जहमत कोई उठाना नही चाहता है।आज नीट ,जेईई से हटकर ढेरों विकल्प उपलब्ध है।स्किल इंडिया और स्टार्टअप की दुनिया भी सफलता के स्वर्णिम ध्वज फहरा रही है लेकिन मातापिता आज भी 70 के दशक की डॉक्टर इंजीनियर मानसिकता से बाहर नही निकल पा रहे हैं।ऐसे में केवल सरकार की ओर अंगुली उठाना न तो नैतिक रूप से ठीक है न सरकारी ढर्रे के हिसाब से।
०शिक्षा व्यवस्था और प्रतियोगी परीक्षा का अंतर०
एसोचैम के अध्ययन के अनुसार बड़े शहरों में प्राइमरी के 87 प्रतिशत औऱ हाईस्कूल के 95 फीसद बच्चों को कोचिंग या सहायक कक्षाओं का सहारा लेना पड़ता है।जाहिर है हमारा स्कूली ढांचा बदलते वक्त के अनुरूप नही है।कोरिया में स्टीम एजुकेशन सिस्टम है जहां साइंस,टेक्नोलॉजी,मैथ्स जैसे विषय पढ़ाये जाते हैं लेकिन नई शिक्षा नीति आने के बाद भी देश के अधिकतर पाठ्यक्रम पुराने औऱ परम्परागत ढर्रे पर चल रहे है।नतीजतन प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए स्कूलों में कोई बुनियादी वातावरण ही नही है।यही कोचिंग्स इंडस्ट्री का आधार है।एसोचैम की रिपोर्ट बताती है कि 35 फीसदी की दर से भारत में कोचिंग इंडस्ट्री बढ़ रही है।
०9.6 लाख करोड़ की इंडस्ट्री०
-भारत में निजी कोचिंग का कारोबार आज 9.6 लाख करोड़ से अधिक का हो चुका है।रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार यह 15 फीसदी की सालाना दर से बढ़ रहा है।
-करीब 15 करोड़ बच्चे इस समय अलग अलग शहरों में कोचिंग ले रहे हैं।
-करीब 8 लाख कोचिंग सेंटर देश के अलग अलग राज्यों में सरकार के पास रजिस्टर्ड है और बिना रजिस्ट्रेशन के चलने वाले को मिला दिया जाए तो आंकड़ा 50 लाख बैठता है।
-भारत में इस समय मध्यम एवं निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों में अपनी आय का 1/3हिस्सा बच्चों की पढ़ाई एवं कोचिंग पर खर्च हो रहा है।
०कोटा में 6000 करोड़ का कारोबार०
-नीट,जेईई के सबसे बड़े केंद्र कोटा में यह कारोबार करीब 6000 करोड़ का है।
-यहां 2500 पंजीकृत हॉस्टल हैं जहां एक बेडरूम फ्लैट उपलब्ध होते हैं।करीब इतने ही गैर पंजीकृत पीजी हॉस्टल भी है।
-बंसल,एलन,रेजोनेंस जैसे 6 बड़े ब्रांड है जहां हर समय 5000 बच्चे अध्ययन करते है।इनके अलावा 50 से ज्यादा छोटे कोचिंग सेंटर हैं।
-कोटा में 60 करोड़ रुपए का सालाना किताबों का ही कारोबार होता है।औसतन हर बच्चे को 15 से 20 हजार की किताबें खरीदनी होती है।
-करीब 5 लाख अभिभावक हर साल कोटा में आते है यहां बाहर से आने वाला हर दूसरा व्यक्ति किसी बच्चे का अभिभावक ही होता है।
-कोटा की कुल आबादी में 13 फीसदी बाहरी राज्यों से आये बच्चे हैं।
-राजस्थान सरकार को अकेले कोटा से अलग अलग टेक्स के रूप में इन कोचिंग्स से करीब 700 करोड़ सालाना कमाई होती है।
-कोटा में हुए एक अध्ययन के अनुसार यहाँ पढ़ने वाले 25 फीसद बच्चे मानसिक रूप से अवसाद के शिकार है।
०कोविड़ के बाद ऑनलाइन कोचिंग सातवे आसमान पर०
ऑनलाइन कोचिंग्स में भारत बड़े खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है।
-आनंद राठी ब्रोकरेज फर्म के अनुसार देश के एजटेक सेक्टर में 2020 में 2.1 अरब डॉलर का निवेश हुआ है।इससे पहले के दस साल में मिलाकर यह 1.7 अरब डॉलर था।
-आरबीएसए एडवाइजर के अनुसार एजटेक इंडस्ट्री अभी 80 करोड़ डॉलर की है औऱ अगले 10 साल में यह 30 अरब डॉलर की होगी।इस इंडस्ट्री में एक समय बाद 70 फीसद तक मुनाफा होगा।
-इस भारी मुनाफे के चलते अब विदेशी निवेश भी शुरू हो गया है। दक्षिण भारत की नामी कोचिंग " थिंक सेल"जो गेट और आई आई टी की कोचिंग देती है में अमेरिकी कम्पनी कैप्लेन ने भारी निवेश किया है।
-बाइजुज एजटेक ने आकाश एजुकेशनल सर्विसेज को 01 अरब डॉलर में खरीदा है।यह देश का सबसे बड़ा शिक्षा सौदा है।
-बाइजुज ने " ग्रेट लर्निंग " प्लेटफार्म को भी 60 करोड़ डॉलर में औऱ " टॉपर "को 15 करोड़ डॉलर को अधिग्रहित किया है।
-बेंगलुरु के वेदांतु कोचिंग ने इंस्टासेल्व को अधिग्रहित कर लिया है। जाहिर है आने वाले समय में इस कारोबार में बस कुछ खिलाड़ी ही बचेंगे औऱ फिर मिडिल क्लास की क्या स्थिति होगी अंदाज लगाया जाना मुश्किल नही।
नई शिक्षा नीति क्या कहती है….
29जुलाई 2020 को मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति में कहा है
"मौजूदा परीक्षा व्यवस्था कोचिंग संस्कृति को बढ़ावा देने वाली है। छात्रों का बहुमूल्य समय सही अर्थों में सीखने की बजाय कोचिंग औऱ परीक्षा की तैयारी में चला जाता है। प्रवेश परीक्षाओं में बदलाव किए जायेंगे ताकि कोचिंग की जरूरत खत्म की जा सके। इसके लिए बोर्ड परीक्षाओं औऱ उच्च शिक्षा के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की परीक्षाओं में बड़े बदलाव किए जायेंगे"
जाहिर है सरकार ने भी माना है कि मौजूदा व्यवस्था उपयुक्त नही है। लेकिन देश मे तीन साल बाद भी नई शिक्षा नीति पर ठोस काम नही हुआ है।

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