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#धमाका_धर्म: होश में जीने वाला अपनी वाणी की पूंजी को पुण्य में खर्च करता है : #साध्वी_नूतन_प्रभाश्री_जी

शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

/ by Vipin Shukla Mama
जैन साध्वियों ने बताया- वाणी आपको तीर्थंकर बना सकती है और नरक के द्वार भी खोल सकती है
शिवपुरी। प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी म.सा. की सुशिष्या साध्वी नूतन प्रभाश्री जी, साध्वी पूनमश्री जी और साध्वी वंदनाश्री जी का गंगा, जमुना और सरस्वती की तरह समन्वय प्रवचनों में अद्भुत रंग भर रहा है। साध्वी पूनमश्री जी ने आज जीवन में होश की महत्ता पर आधिकारिक रुप से व्याख्यान देते हुए कहा कि जिंदगी को जोश से नहीं, बल्कि होश से जीना चाहिए। उन्होंने अपनी बात जहां पूर्ण की वहां से साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने प्रारंभ किया और बताया कि होश पूर्वक जीने वाला व्यक्ति अपनी वाणी की पूंजी का कभी दुरुपयोग नहीं करता। वचन वह अनमोल पूंजी है जो आपको तीर्थंकर बना सकती है वहीं नरक के द्वार भी खोल सकती है। साध्वी पूनमश्री जी और साध्वी नूतन प्रभाश्री जी के प्रवचनों के बीच में साध्वी वंदनाश्री जी भजनों की ऐसी सुंदर श्रृंखला छोड़ती हैं जिससे आगे कुछ कहने को शेष नहीं रहता। बकौल साध्वी वंदनाश्री जी, मीठे-मीठे गुरु के वचन होते हैं जिंदगी बदल जाते हैं...।
साध्वी पूनमश्री जी ने भगवान महावीर की वाणी के दसवेकालिक सूत्र के चौथे अध्याय का जिक्र करते हुए कहा कि शिष्य गौतम ने प्रभु से पूछा कि भगवन कैसे चलना, कैसे उठना, कैसे खाना और कैसे जीना चाहिए? इस पर प्रभु ने कहा कि कोई भी काम करो यत्नापूर्वक करो, होशपूर्वक करो। यदि होशपूर्वक तुम काम करोगे तो कुछ गलत हो नहीं सकता। साध्वी जी ने कहा कि होशपूर्वक और विवेकपूर्वक काम करने से हिंसा से बचा जा सकता है। होश व्यक्ति को धर्म आराधना और दान-पुण्य से जोड़ता है। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने इससे आगे अपनी बात रखते हुए कहा कि हमें वाणी की अनमोल पूंजी मिली है। इस वाणी से हम दुखी आत्मा को सुख प्र्रदान कर सकते हैं और वहीं सुखी आत्मा को दुखी भी कर सकते हैं। आपमें सामथ्र्य है कि आप वाणी का उपयोग करें, सदुपयोग करें अथवा दुरुपयोग करें। उन्होंने कहा कि हिंसा से बचना है तो वाणी का सदुपयोग करना चाहिए। इससे आप वचन की हिंसा से बच सकते हैं। इसके बाद उन्होंने काया की हिंसा पर विस्तार से प्रकाश डाला। काया से आप परोपकार कर सकते हैं और काया से आप दूसरे को पीडि़त और दुखी भी कर सकते हो। उन्होंने कहा कि हमारा शरीर अनित्य है और इस काया पर हमें गर्व और अहंकार नहीं पालना चाहिए। काया का तब तक उपयोग और महत्व है जब तक उसमें आत्म तत्व मौजूद है। आत्मा के जाने के बाद कोई भी मृत शरीर को अपने घर में नहीं रखना चाहता। इस काया पर हमें क्यों इतना अभिमान करना चाहिए। साध्वी वंदनाश्री जी ने भजन का गायन किया कि जिस दिन मौत की शहजादी आएगी, ना सोना काम आएगा, ना चांदी काम आएगी।
जो जाग रहा है वही मुनि है
साध्वी पूनमश्री जी ने बताया कि भगवान महावीर ने आचारंग सूत्र में फरमाया है कि सुता अमुनि, असुता मुनि अर्थात् जो सो रहा है वह मुनि नहीं है और जो जाग रहा है वह मुनि है। उन्होंने कहा कि सोने और जागने से अभिप्राय होश ना होने और होश होने से है। धर्म जीवन को होशपूर्वक जीने की कला सिखाता है।













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