शिवपुरी। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय कवि संगम शिवपुरी द्वारा सरस्वती शिशु मंदिर में एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसका विषय था ""राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर जी का राष्ट्रीय अवदान"" कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध लेखक प्रमोद भार्गव ने की । कार्यक्रम में शहर के श्रेष्ठ गीतकार डॉ0 एच0 पी0 जैन मुख्य अतिथि व पत्रकार आलोक एम इंदौरिया विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर संस्था के ज़िलाध्यक्ष सुकून शिवपुरी, ज़िला महामंत्री आशीष पटेरिया व संरक्षिका श्रीमती चंदर मेहता भी मंचासीन थे । कार्यक्रम का शुभारम्भ वंदे मातरम् के गायन के साथ हुआ। तत्पश्चात डॉ हरिप्रकाश जैन ने महाकवि दिनकर के व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही पक्षों को समग्रता से प्रस्तुत करते हुए कहा कि दिनकर एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, जो एक छोटे से ग्राम सिमरिया से अपने जीवन के लक्ष्यों को साधने निकले और अनेक बाधाओं का सामना करते हुए साहित्य के क्षेत्र में ढेरों कीर्तिमान स्थापित किए।उन्होंने कुरुक्षेत्र, रश्मि रथी, परशुराम की प्रतीक्षा ,उर्वशी और संस्कृति के चार अध्याय जैसी उत्कृष्ट रचनाएं देने के साथ संसद की भी शोभा बढ़ाई। संसद में वे पं0 नेहरू की भी आलोचना करने से नहीं चूकते थे, जबकि नेहरू ही उन्हें संसद में राज्यसभा सदस्य के रूप में लाए थे।
दिनकर जी को 1959 में साहित्य अकादमी सम्मान और फिर इसी वर्ष पद्मभूषण मिला।1972 में उन्हें उर्वशी के लिए देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारतीय ज्ञानपीठ मिला। दिनकर एक विद्रोही तेवर के प्रखर राष्ट्रवादी कवि थे।इसलिए वे आजीवन कहते रहे कि "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।" डॉ जैन ने दिनकर की अनेक कालजई कविताओं के उदाहरण दे कर उनकी रचनात्मक सार्थकता को सिद्ध किया।
अध्यक्षता कर रहे प्रमोद भार्गव ने कहा कि दिनकर श्रेष्ठ साहित्यकार तो थे ही, इससे आगे बढ़ कर वे भारतीय संस्कृति और इतिहास को भारतीय संदर्भों में खोज रहे थे। उनकी पुस्तक "संस्कृति के चार अध्याय" एक ऐसी अनूठी रचना है, जो प्राचीन भारत से लेकर अब तक के राष्ट्रीय सांस्कृतिक प्रतिमानों को स्थापित करती है । कुरुक्षेत्र, परशुराम की प्रतीक्षा जैसी प्रखर राष्ट्रीयता और उर्वशी जैसी सौंदर्य के रूपकों से जुड़ा गीतिकाव्य लिखने वाले रचनाकार से संस्कृति और इतिहास पर लिखने की अपेक्षा कम ही रहती है। उनकी प्रत्येक रचना में भारत का न केवल बोध है, बल्कि अतीत से लेकर वर्तमान तक उसकी गौरव गाथा का बखान भी है।
श्री भार्गव ने कहा कि दिनकर अपनी रचना का कथानक पौराणिक आख्यानों से इसलिए उठाते थे, क्योंकि इनके माध्यम से वे भारतवासियों की चेतना को झकझोरना चाहते थे ।वामपंथ के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए यह आवश्यक था कि भारतीय ज्ञान परंपरा से सोई हुई इस चेतना को अवगत कराया जाए कि भारत में विचारों का वैविध्य परंपरा में हमेशा ही रहा है, इसलिए उसे आयातित विचारों की जरूरत नहीं है।
अंचल के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, वरिष्ठ साहित्यकार व संस्था के मुख्य संरक्षक आलोक एम इंदौरिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि देश की वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्रीय कवि संगम जैसी साहित्यिक संस्था राष्ट्र निर्माण मैं अपना अद्भुत योगदान दे रही है । क्योंकि साहित्य देश को जोड़ने में एक मेहती भूमिका निभाता है, विश्व का इतिहास इसका गवाह है। उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी कविताओं के ओज ने तत्समय अंग्रेजों के शासनकाल में और उसके बाद स्वतंत्र भारत में लोगों को जागृत करने का जो काम किया, उसी दायित्व का निर्वहन आज राष्ट्रीय कवि संगम कर रहा है, जिसके लिए सुकून शिवपुरी बधाई के पात्र हैं।
कार्यक्रम से एक दिन पूर्व दिनकर जी के पुत्र केदार बाबू का दिल्ली में निधन हो जाने से कार्यक्रम के पश्चात् दो मिनट का मौन धारण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम का संचालन कोषाध्यक्ष राम पंडित ने किया। अंत में महामंत्री आशीष पटेरिया ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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