शिवपुरी। भगवान महावीर स्वामी ने उत्तराध्यन सूत्र में फरमाया है कि अपने असंस्कृत जीवन पर लेश मात्र भी प्रमाद न करो। जब वृद्धावस्था का प्रकोप आता है तथा शरीर पर रोगों का आक्रमण होता है। उस समय कोई रिश्तेनाते काम नहीं आते। सिर्फ धर्म की शरण ही काम आती है। इसलिए समय से पहले धर्म को अपने जीवन का अंग बना लो। उक्त बात साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने जिन वाणी का वाचन करते हुए व्यक्त की। इससे पूर्व साध्वी जयश्री जी ने प्रभू महावीर की वाणी सभी दुखड़े मिटाती है, भजन का गायन कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने संबोधन में कहा कि जिनवाणी चाहे मन से सुनो अथवा विना मन से सुनो वह दोनों ही स्थिति में कल्याणकारी होती है। उन्होंने कहा कि पुण्यात्मा वह होता है जो जिन वाणी सुनने के लिए तैयार रहता है। जिनवाणी सुनने की इच्छा क्यों नहीं होती इसे स्पष्ट करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि आत्मा जन्म-जन्म से पापों में रत है। इसलिए जिनवाणी सुनने की इच्छा मन में नहीं आती है। जिन वाणी पापों पर चोट कर ती है। साध्वी जी ने बताया कि जिनवाणी सुनने के बाद उस पर सृद्धा करना दुलर्भ है। उन्होंने कहा कि परमात्मा की वाणी पर कभी शंका नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति श्रृद्धा से पतित हो जाता है उसके लिए मोक्ष के रास्ते वंद हो जाते हैं। साध्वी जी ने क्या-क्या दुलर्भ है इसे स्पष्ट करते हुए यह भी बताया कि संयम पथ पर चलना दुर्लभ है। उन्होंने बताया कि हमें असंस्कृत जीवन मिला है। धर्म के साथ बिना इस असंस्कृत जीवन का परिष्कार संभव नहीं है। इस शरीर पर प्रमाण न करें। जब शरीर पर बुढ़ापे और बीमारियों का प्रहार होगा तब तुम्हें शरण सिर्फ धर्म से ही मिलेगी।
जैन दर्शन में नहीं है बरदान की व्यवस्था
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि जैन दर्शन में कर्र्मो की प्रधानता है। कर्म से ही अपने भाग्य का निर्माण किया जा सकता है। जैन संस्कृति में बरदान की कोई व्यवस्था नहीं है। जो आपके सारे दु:ख दर्द दूर कर दे। जैैसा आप कर्म करेंगे। वैसा आपको फल मिलेगा। उन्होंने बताया कि संसार में रहकर धन कमाना गलत नहीं है। लेकिन धन के प्रति आशक्ति नहीं होना चाहिए। कमाए हुए धन का अच्छे कार्यो में उपयोग भी होना चाहिए।

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