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गुरुवार, 5 अक्टूबर 2023

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। आगामी विधानसभा चुनाव में शिवपुरी जिले की पांच सीटों पर वैसे तो सभी की निगाहें हैं लेकिन खेल मंत्री के चुनाव नहीं लड़ने के हालिया बयान ने राजनीति में भूचाल ला दिया है। अब पांच नहीं बल्कि हर किसी की निगाह शिवपुरी की सीट पर आकर रुक गई है। जो लोग खेल मंत्री सिंधिया के करीबी हैं उनका दावा है की पिक्चर अभी बाकी है ये कदम एक रणनीति का हिस्सा हैं और वे ही मैदान में उतरेंगे। अभी अपने लाडले भतीजे द ग्रेट ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार किया है और ऐसा हुआ तो श्रीमंत सिंधिया सांसद का चुनाव लड़ेंगी। पहली बात द ग्रेट सिंधिया शिवपुरी से मैदान मे होंगे ये कयास हैं और होंगे तो बीजेपी की सीट सुरक्षित रहेगी ऐसा माना जा सकता हैं क्योंकि शिवपुरी के वाशिंदे द ग्रेट सिंधिया का कर्ज उतारने की बात सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं, यानी भूल सुधार करेंगे।
खैर दूसरी बात ये है की आपको याद ही होगा की श्रीमंत सिंधिया सांसद थी लेकिन उनकी पहली पसंद चूंकि विधायक से मंत्री तक का सफर है, जिससे जनसेवा कर सकें। इसलिए जबसे उन्होंने शिवपुरी से चुनाव लडा एक बड़ा अंतर ये हुआ है की विकास गाथा लिखती आई श्रीमंत बीजेपी पार्टी से चुनाव लड़ेंगी तो शिवपुरी में बीजेपी आसमान पर होगी, और श्रीमंत सिंधिया या ग्रेट सिंधिया ने चुनाव नहीं लडा तो बीजेपी जमीन पर आ सकती है। बीजेपी के समर्थक इस बात को झुठलाएंगे लेकिन बीते चुनावों में जिस तरह खेल मंत्री सिंधिया ने राजनीति को अपने आसपास केंद्रित किया है उसकी भरपाई उनके मैदान से हटने पर फिलहाल शून्य की तरह दिखाई दे रही है। बल्कि यूं कहें की कांग्रेस और वो भी विधायक वीरेंद्र रघुवंशी के नाम के साथ अब काफी आगे खड़ी दिखाई दे रही है। ऐसे में या तो एक और बार खेल मंत्री सिंधिया या द ग्रेट सिंधिया या फिर.....! या फिर कौन ? ये एक बड़ा सवाल है। 
अब आते हैं श्रीमंत के इंकार के बाद उन नेताओं के नामों पर जिनको रातों को प्रत्याशी होने के सपने आने लगे हैं
फिलहाल जब तक श्रीमंत का इंकार हैं, तब तक कुछ फ्यूज बल्ब और कुछ रिजेक्टेड, कुछ युवा, कुछ नए नेताओं का रक्त संचार शुरू हो गया है। बीजेपी के लिए श्रीमंत के बाद कठिन राह होने के चलते कौन लड़ाका बीजेपी का किला फतह कर सकेगा ये दूर दूर तक नजर नहीं आता ऐसे में जिन नामों पर गौर किया जा सकता है उन नामों पर हमारी और जनता की राय ये हैं। 
आइए डालते हैं उन नामों पर एक नजर
नरेंद्र बिरथरे:
 बात करें नरेंद्र बिरथरे की तो खेल मंत्री सिंधिया की पाठशाला के अग्रिम पंक्ति विद्यार्थी रहे हैं, उनकी एक नजर के कमाल से आप पोहरी से पूर्व में विधायक रह चुके हैं। साथ ही उमा भारती के भी लाडले हैं। छवि की बात करें तो उनकी शैली विधायक वीरेंद्र की तरह लडाका है जो शिवपुरी की राजनीति में एक बड़े वर्ग के लोगों की पसंद हैं। द ग्रेट सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद वे उनके कार्यक्रमों में भी दिखाई देते रहे हैं। श्रीमंत की एनओसी उनको टिकिट दिला सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो सबसे वजनदार नामों में इनका नाम शामिल किया जा सकता हैं। फिलहाल बिरथरे पोहरी से ताल ठोक रहे हैं जिससे मंत्री सुरेश राठखेड़ा हनुमान चालीसा का जाप करते दिखाई दे रहे हैं। एक और बात जिले में किसी भी ब्रह्मांड चेहरे को किसी भी पार्टी ने टिकिट नहीं दिया हैं ऐसे में बिरथरे पर ये दांव भी पार्टी खेल सकती हैं। वे वीरेंद्र को टक्कर भी देने में समर्थ हैं।
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माखनलाल राठौर:
पूर्व नपा अध्यक्ष और शिवपुरी से पूर्व विधायक रहे माखनलाल राठौर पर ये कृपा खेल मंत्री सिंधिया ने ही बरसाई थी। साफ छवि के मिलनसार राठौर बेदाग तो हैं लेकिन मध्यकाल में श्रीमंत से उनकी दूरी जनता की जानकारी में हैं। किसी भी व्यक्ति को ये दो महत्वपूर्ण पद मिलने का रिकॉर्ड राठौर के नाम दर्ज हैं। हालाकि द ग्रेट सिंधिया से उन्हें प्यार मिलता रहा हैं। लेकिन क्या जनता अब भी उन पर पहले वाला प्यार लुटा सकेगी ये देखना होगा। 
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देवेंद्र जैन: 
कोलारस और शिवपुरी के पूर्व विधायक देवेंद्र जैन की बात करें तो उन्हे भी खेल मंत्री सिंधिया का स्नेह प्राप्त रहा और उनकी दम पर राजयोग भोगा लेकिन बाद में ट्यूनिंग ठीक नहीं रही। अब जैन द ग्रेट सिंधिया की परिक्रमा में सक्रिय हैं और उनकी दम पर टिकिट की टक टकी लगाए हैं। हालाकि उनके छोटे भाई ने कांग्रेस ज्वॉइन करके उनके ही पहले प्यार कोलारस के टिकिट से जैन को दूर कर दिया है। इधर भाई के कांग्रेस में जाने के बाद भी बीजेपी बड़े भाई जैन पर दाव खेलेगी ये देखना होगा। बात छवि की करें तो ठीक ठाक है लेकिन विधायक रहते बड़े चमत्कार की कमी शिवपुरी और कोलारस को आज भी खलती है। 
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राजू बाथम: 
बीजेपी के जिलाध्यक्ष राजू बाथम की बात करें तो एक अखबारी सर्वे में उन्होंने टॉप नंबर हासिल किए थे लेकिन उस सर्वे पर जनता को संदेह रहा। हालाकि राजू की छवि बेदाग है। जिलाध्यक्ष रहते हुए सभी को साधकर अब तक राजनीति की है। पूर्व में मंत्री के पीए रह चुके राजू मिलनसार हैं, ज्ञान वान भी पुरजोर हैं और किसी भी विषय पर वॉक पटुता में माहिर हैं। सभी वर्गों में उनकी अच्छी पैठ भी है। मंत्री सिंधिया और द ग्रेट सिंधिया दोनों का लाड प्यार मिलता आया हैं, क्या ये स्नेह टिकिट में बदलेगा देखना बाकी है। 
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धैर्य वर्धन शर्मा: 
बात धैर्य वर्धन शर्मा की करें तो बेदाग छवि हैं। पार्टी में उनकी लगन बचपन से रही हैं। मंच पर वाक पट्टता में माहिर शर्मा को मिनी अटल के नाम से भी पुकारा जाता रहा है। रेलवे के सलाहकार मंडल में शामिल शर्मा भी टिकिट की कतार में हैं। उनकी निकटता खेल मंत्री सिंधिया और द ग्रेट सिंधिया से राजनेतिक स्तर पर बेहतर मानी जा सकती है। देखना होगा की लडाका शेली के शर्मा क्या टिकिट ले पाते हैं।
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हेमंत ओझा : 
सांसद प्रतिनिधि और दूसरी तरफ खेल मंत्री सिंधिया के प्रति आस्थावान, द ग्रेट सिंधिया से राजनीति की दुआ सलाम रखने वाले हेमंत ओझा भी एक अखबारी सर्वे से चर्चा में आए हैं। उनकी छवि साफ सुथरी है। बीजेपी की बात करें तो वे पार्टी की जिले में आर्थिक रीढ़ की हड्डी हैं। यानि बड़े आयोजन से लेकर जिले में आने जाने वाले नेताओं के सफर हेमंत तय करवाते आए हैं। धन धान्य की कोई कमी नहीं, युवा तरुनाई के इस व्यक्तित्व पर क्या पार्टी भरोसा करेगी ये देखना बाकी होगा। 
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राघवेंद्र शर्मा: 
सीएम शिवराज से करीबी और भोपाल जाकर धन बाहुबल के सिरमौर बने शिवपुरी निवासी राघवेंद्र शर्मा का नाम भी चर्चा में हैं। पार्टी के ऊपरी फोरम पर भले ही मजबूत लेकिन बाहर रहने से स्थानीय जुड़ाव की कमी शर्मा को खल सकती है दूसरी तरफ खेल मंत्री सिंधिया और द ग्रेट सिंधिया की एनओसी की जरूरत नहीं पड़ी तो टिकिट ले सकते हैं। बात छवि की करें तो बेदाग हैं। 
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रामजी व्यास: 
बात रामजी व्यास की करें तो पूर्व मंडी सचिव और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी पार्टी के अन्य नेताओं में भी आस्था रखते हैं। हालाकि बीते नपा चुनाव में वे खेल मंत्री के सामने आने के बाद से चर्चा में तो रहते हैं लेकिन टिकिट की उनकी मांग पूरी होना देखने काबिल होगा। छवि बेदाग है। जनता के साथ उनकी अल्प संख्यक वर्ग में भी पैठ है। 
पवन जैन: 
नामों की बात हैं तो द ग्रेट सिंधिया के बेहद करीबी इंजीनियर पवन जैन का नाम भी लिया जा सकता है। korona काल में द ग्रेट सिंधिया की ओर से राहत शिविर लगाने से लेकर उनके सम्मान में सभी समाजों का कार्यक्रम आयोजित करने वाले कैट के प्रदेश पदाधिकारी जैन का नाम भी लोगों को चौंका सकता है। साफ छवि के जैन मिलनसार भी हैं। हालाकि कांग्रेस से बीजेपी में आप द ग्रेट सिंधिया के साथ ही आए हैं।
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विजय शर्मा: 
ये एक नाम भी टिकिट के गलियारे में खेल मंत्री के इंकार के बाद उभरा है। द ग्रेट सिंधिया के अति प्रिय विजय शर्मा भी टिकिट की अग्रिम पंक्ति में हैं लेकिन कांग्रेस से बीजेपी के रथ में सवार हुए शर्मा को पुराने बीजेपी नेता कितना प्यार देंगे ये अभी कहना जल्दबाजी होगी। छवि साफ है। हालाकि वे कहते हैं उनको किसी पद की लालसा नहीं।
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चलते चलते अहम बात मामा का धमाका के प्रधान संपादक विपिन शुक्ला की नज़र से
प्रदेश में और फिर देश में बीजेपी को सरकार हर हाल में बनानी हैं। इसीलिए प्रयोग जारी हैं। जिनको बड़े नेता होने का मलाल हैं वे मंत्री, सांसद होकर भी विधान सभा का चुनाव लड़ने मैदान में उतरे हैं ऐसे में उनके राजनेतिक भविष्य भी दाव पर हैं और वे चुनाव जीतने अभी से पूरा जोर लगा रहे हैं। इसके दो उदाहरण देखिए pm मोदी ने ग्वालियर में साफ कहा कौन सीएम, नाम घोषित नहीं होगा। लेकिन कल ही कैलाश विजयवर्गीय ने एक सभा में कहा मुझे बड़ी जिमेदारी मिलेगी इसलिए सिर्फ विधायक लड़ने नहीं आया हूं। मसलन हार के डर से हर गेंद पिच पर डालकर नेताजी चुनाव फतेह करना चाहते हैं। उधर प्रहलाद पटेल ने भी पीएम की बात दोहराई की कौन सीएम अभी तय नहीं। खैर विषय पर आते हैं की जब बीजेपी किसी भी हाल में सरकार बनाने में जुटी हैं तो जाहिर हैं एक भी सीट हारना नहीं चाहेगी। ऐसे में खेल मंत्री सिंधिया के चुनाव से इंकार के मायने पार्टी को आघात दे सकते हैं, ऐसा राजनीति के जानकारों का आंकलन हैं। क्योंकि प्रदेश की किसी भी सीट से प्रथक बात शिवपुरी विधान सभा की हैं जहां खेल मंत्री ने बीते दस सालों से चतुशकोणीय पारी खेलकर आसमान और जमीन का अंतर ला दिया हैं। यही कारण हैं की उनके इनकार के बाद शिवपुरी सीट बीजेपी के लिए खतरे में पड़ गई हैं। रही बात एंटी कांवेंसी की तो खेल मंत्री के साथ ये इतेफाक हर चुनाव में रहता आया हैं लेकिन उनका चुनाव मैनेजमेंट उनकी विजय तय करता आया हैं। और आखिर ऐसा इसलिए होना भी चाहिए की शिवपुरी में उनके विरोधी जो सीवर परियोजना और पेयजल परियोजना पर सवाल उठाते हैं उसके लिए भी खेल मंत्री सिंधिया या द ग्रेट सिंधिया सीधे जिमेदार नहीं जान पड़ते क्योंकि दोनों ही योजनाओं में कंपनी के टेंडर, अनुबंध स्थानीय निकाय ने किए थे या पीएचई ने किए थे। जिससे योजनाओं की दुर्गति हुई। हालाकि इससे इन दोनों बड़े नेताओं ने सबक लिया और फिर जो योजना आईं जेसे मेडिकल कॉलेज, सतनवाडा urgv कॉलेज, एनटीपीसी कॉलेज, चांद पाठा का रिसाव रोकने और अब पाम आयलैंड पार्क जेसी बड़ी योजनाओं को इन्होंने बाहर की विश्वसनीय कंपनियों से समय रहते पूरा करवाया जिसके परिणाम सामने हैं। साथ ही पेयजल की बात करें तो नगर की जिन सड़कों पर रात दिन टैंकर दौड़ते दिखाई देते थे। प्राइवेट टैंकर लोगों की बैंड बजाते थे उस हालत से खेल मंत्री ने ही लोगों को बाहर निकाला। आज भरी गर्मी में नपा में कोई टैंकर अंबाधित नहीं किए गए। लोगों को घर बैठे पानी मिला। साल 2018 में खेल मंत्री ने ही भरी गर्मी में टारगेट वेस इस मड़ीखेड़ा योजना को पूरा करवाया। रही बात खराब पाइप की तो नपा की इस भूल को भी सुधरा जाकर नई पाइप लाइन बिछाई जाने लगी हैं वो भी पुरानी लाइन को चालू रखते हुए। हमको ये भी याद रखना चाहिए की सीवर लाइन ने किस तरह सड़कों को निपटाया था और फिर उन्हें खेल मंत्री ने ही फंड लाकर पीडब्ल्यूडी और नपा से बनवाया। जिसके बाद बदली शिवपुरी में आज उच्च शिक्षा की ज्योति जल उठी हैं। नगर का गृह बढाने का वाहक बनी थीम रोड उनकी ही देन हैं। जिस पर आधुनिक पाम आयलैंड पार्क बनकर तैयार हैं जिसका आज शाम उद्घाटन भी होने जा रहा हैं। कुल मिलाकर करोड़ों की सौगात लाने में सिंधिया परिवार के सद्स्य ही सक्षम हैं और कोई नहीं। याद आता हैं एक पुराना चुनाव जिसमे लोगों ने नया प्रयोग तो किया लेकिन बीते पांच साल में एक ट्रेन किसी स्टेशन पर नहीं रुकी! कहना ये हैं की सिंधिया परिवार के रहते हफ्ता वसूली, रेत माफिया, कानून की बेजा हरकत करने की जुर्रत कोई नहीं करता। फिर मर्जी बीजेपी की शिवपुरी की सीट जीतना हैं या.....! हालाकि खेल मंत्री ने जो पत्र अगस्त में लिखा था उसमें खराब स्वास्थ्य के चलते चार पांच महीने आराम की बात कही थी और शायद तीन महीने गुजर चुके हैं, उनके लगातार दौरे भी अब उनके उत्तम स्वास्थ्य की तरफ इशारा कर रहे हैं। सो बीजेपी के अच्छे की कामना का साथ। 














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