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उठेंगे देव, करेंगे मंगल, बजेगी शहनाईं, देवोत्थनी एकादशी पर विशेष : विजय पाण्डेय

बुधवार, 22 नवंबर 2023

/ by Vipin Shukla Mama
ग्वालियर। जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु चार माह के शयन के बाद आज जागेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार के 23 नवंबर गुरुवार को देशभर में कार्तिक एकादशी मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं एवं भागवतपुराण के अनुसार भगवान विष्णु चार माह क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जागृत होते हैं। इसीलिए इस दिन को देवोत्थान, देव प्रबोधिनी या फिर देव उठनी एकादशी कहा जाता है। देवोत्थान मनाने का प्रचलन पौराणिक काल से ही चला आ रहा है। ब्रह्मवैवर्वपुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल की एकादशी को ही भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस का वध कर थकान मिटाने के लिए शयन किया था और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन जागे थे। पदम् पुराण में वर्णित एकादशी माहात्म्य के अनुसार देवोत्थान एकादशी व्रत का फल एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और राजसूय यज्ञ के बराबर प्राप्त होता है। माना जाता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा-अर्चना करने से जीवन के सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु निद्रा से जागने के बाद सर्व प्रथम तुलसी को ही पुकारते हैं। इसी कारण तुलसी विवाह और पूजन का भी महत्व है।
तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी के माध्यम से श्री हरि विष्णु को जागृत कर उनका आव्हान करना सुखद होता है। शास़्त्रों के मुताबिक तुलसी-शालिग्राम विवाह करने से सुख, संपत्ति के साथ दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। लोगों को चाहिए कि वे धर्म-कर्म के रूप में देवताओं का अभिवंदन और स्वागत करें। अपने मन में देवत्व का जागरण करें। देवउठनी एकादशी के बाद से सभी मांगलिक एवं विवाह के कार्य का श्रीगणेश होता है। कारण भगवान विष्णु के शयन काल के दौरान चार माह तक मांगलिक कार्य निषेध रहते हैं। 
 इस विधि से करें देवताओं को जागृत  
एकादशी के दिन शाम को शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल को स्वच्छ कर लाल मिटी या गेरू से लीप कर उस स्थान पर सफेद रंग से चोक पूरें या रंगोली बनाएं। एक डलिया या पटा से पूजा स्थल को ढक दें। शाम को घी के 11 दीपक जलाएं। भगवान के भोग के लिए ऋतु फल, लड्डू, घी, गुड़, गेहूं, बताशे, मूली, बेगन, बेर, सिंघांडे़, नवीन धान्य और गन्ना के साथ समस्त पूजन सामग्री तथा प्रसाद रखें। 
शुद्ध जल, सफेद वस्त्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, अक्षत, रोली, लौंग, पान, सुपाड़ी, नारियल, हल्दी, कपूर, पंचामृत से देवताओं का पूजन करें। जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु को योग निद्रा ने जागृत करने के लिए घंटी, शंख और अन्य मधुर संगीत की ध्वनि से नीचे दिए गए श्लोक का उच्चारण करते हुए उठाएं या जगाएं। इस दौरान भजन, कीर्तन के साथ मांगलिक गीत भी गा सकते हैं। 
श्लोकः - 
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यजनिद्रांजगत्पते। 
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत्सुप्तमिदंभवेत।। 
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धत वसुंधरे। 
हिरण्याक्ष प्राणिघातिन्त्रैलोक्ये मंगलकुरु।। 
-- जागृत करने के बाद करें मंत्र जाप 
देव जागृत करने के बाद परिवार के सभी सदस्य या फिर अकेले पुरुष “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः“ या राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।। या फिर अपने गुरु द्वारा प्रदत्त किसी अन्य मंत्र का यथा शक्ति जप करें। 
यदि मंत्र जाप नहीं कर सकते तों, श्री विष्णुसहस्त्रनाम, गोपालसहस्त्रनाम और श्रीरामरक्षास्त्रोत का पाठ करें। इसके बाद आरती, पुष्पांजलि करें। देवी-देवताओं से घर-परिवार के लिए वर्ष पर्यंत सुख-समृद्धि की कामना करें। विवाह योग्य संतानों का विवाह शीघ्र हो तथा विवाहितों को उत्तम संतान हों, ऐसी कामना के साथ देवताओं की स्तुति तथा गुण-गान करें, ऐसा करने से श्रीहरि की कृपा बनी रहती है।
पुण्य का प्रतीक एकादशी उपवास 
पंडितों एवं अग्नि पुराण के अनुसार एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक है। विष्णुपुराण के मुताबिक जो लोग किसी भी कारण से चाहे लोभ के वशीभूत होकर या मोह के वशीभूत होकर एकादशी को भगवान विष्णु का अभिवंदन करते हैं वे समस्त दुःखों से मुक्त होकर जन्म मरण के चक्र से भी छुटकारा पा जाते हैं। सनत्कुमार ने लिखा है कि जो व्यक्ति एकादशी व्रत या स्तुति नहीं करता है वह नरक का भागी होता है। महर्षि कात्यान के अनुसार जो व्यक्ति संतति, सुख, सम्पदा, धन-धान्य व मुक्ति चाहता है, तो उसे देवोत्थनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालिग्राम व तुलसी महिमा का पाठ व व्रत करना चाहिए। 
-- एकादशी पर तुलसी का महत्व 
श्रीहरि भगवान विष्णु का कार्तिक मास की एकादशी माहात्म्य तथा शालिग्राम व तुलसी विवाह शास्त्रों में स्वयं सिद्ध है। मान्यता है कि कार्तिक मास में जो मनुष्य तुलसी विवाह करते हैं उनके पूर्व जन्म के समस्त प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। कार्तिक में स्नान करने वाली स्त्रियां एकादशी को तुलसी एवं शालिग्राम का विवाह कराती हैं। तुलसी व शालिग्राम के फेरे कराकर विवाह गीत व भजन गाकर, तुलसी नामाष्टक  सहित विष्णु पुराण के पाठ किए जाने का विधान है। जिन दंपत्तियों को संतान सुख नहीं होता है, वे जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके महादान में अपनी आहुति अवश्य दें। तुलसी रूपी दान से बढ़कर कार्तिक मास में कोई महादान नहीं है। पृथ्वी लोक में देवी तुलसी आठ नामों- वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से विख्यात हुईं हैं। भगवान के भोग, माला और चरणों में तुलसी अर्पित की जाती है। तुलसीदल को सदैव- तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशव प्रिया। चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।। मंत्र के साथ उतारना और तोड़ना चाहिए।
देवउठनी पर क्या करें क्या नहीं? 
-देवउठनी एकादशी के दिन सर्व प्रथम जागते ही भगवान विष्णु का स्मरण करें या फिर नारायण के मंत्रों का जाप करें।
-- इस दिन भगवान विष्णु को केले का भोग अवश्य लगाएं। 
-- एकादशी के दिन चावल का सेवन न करें।
--  भूलकर भी तुलसी के पत्ते नहीं तोडें़, जरूरत के मुताबिक एक दिन पहले हीं तोड़ कर रख लें।
-- घर में सुख, शांति और समृद्धि के लिए इस दिन केला और हल्दी का दान जरूर करें। 
-- शांतिप्रिय भाव से पूजा अर्चना करें और भूलकर भी  किसी को अपशब्द न बोले और न ही किसी से वाद-विववाद करें। 
-- सुखद जीवन के लिए करें ये मंत्र जाप 
घर में सुख-शांति, प्रेमपूर्ण दाम्पत्य और संतति सुख के लिए इस श्लोक का 51बार पाठ करें।
मूकं करोति वाचालं पगुलंघयतेगिरिम्। 
यत्कृपा तंहम् वन्दे परमानन्दं् माधवम्।। 
--- सर्वकामना सिद्धि के लिए भगवान विष्णु की स्तुतिपरक इस श्लोक का 21 बार जाप करें।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारंम गगनसदृशं मेधवर्ण शुभांगम्। 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वंदेविष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
-- स्वस्थ्य जीवन, अकाल मृत्यु निवारण और वास्तु दोष निवारण के लिए इस श्लोक का 21 बार जाप करें। 
शशंक चक्रं किरीटकुंडलं सपीतवस़्त्रं सरसिरूहेक्षणं। 
सहस्त्राक्षवक्षस्थलकौस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्।।

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