शिवपुरी। अक्सर लोग हमसे सवाल करते हैं कि हम रोज मंदिर जाते हैं, भगवान की भक्ति करते हैं, उनकी प्रशंसा में भजन गाते हैं, सेवा पूजा करते हैं, लेकिन इसके बाद भी हमें भगवान नहीं मिलते तो मेरा एक ही उत्तर है कि भगवान को बुलाने के लिए मीरा जैसी श्रद्धा, भक्ति और समर्पण आवश्यक है। उन्हें अपनी चतुर चालाक बुद्धि से नहीं, बल्कि शुद्ध हृदय से तुम पा सकते हो। उक्त उद्गार नलखेड़ा चातुर्मास संपन्न कर पधारीं प्रसिद्ध जैन साध्वी दिव्यांग प्रियाश्री जी ने आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में प्रसिद्ध साध्वी सौम्य प्रभाश्री जी महाराज की सुशिष्या साध्वी श्रद्धांग प्रियाश्री जी ने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है इसलिए जीवन में कभी दुख आए तो उसके लिए दूसरों को दोष मत दो, बल्कि अपने आपको जिम्मेदार ठहराओ। साध्वी सौम्य प्रभाश्री जी ठाणा 11 सतियां प्रसिद्ध जैन तीर्थं शिखरजी जाते समय शिवपुरी पधारीं हैं और कल उनका पाश्र्वनाथ जैन मंदिर से दोपहर 3 बजे झांसी के लिए विहार होगा।
साध्वी श्रद्धांग प्रियाश्री जी ने अपने उद्बोधन में श्रद्धालुओं से सवाल किया कि धर्म आखिर है क्या? जिसका सबने अपने-अपने विचार के अनुसार उत्तर दिया। किसी ने कहा कि वस्तु का स्वभाव धर्म है। साध्वी श्रद्धांग प्रियाश्री जी ने कहा कि निश्चित तौर पर वस्तु का स्वभाव धर्म होता है। जैसे नीम का स्वभाव कड़वा होता है और मानव का स्वभाव मानवीय गुणों से परिपूर्ण होना है, लेकिन मेरे विचार से धर्म वह है जो व्यक्ति को सद्गति के मार्ग की ओर ले जाए जिससे आत्मा का उत्थान हो और जीवन सुधार की प्रक्रिया शुरु हो। कर्म सिद्धांत की व्याख्या करते हुए साध्वी श्रद्धांग प्रियाश्री जी ने कहा कि कर्मों के फल से भव्य आत्मा भी नहीं बच पाती हैं। उन्हें भी अपने कर्मों का फल भोगना होता है। जब-जब भी हमारी जिंदगी में दुख और विपत्ति आती हैं तो उसके लिए भले ही हम दूसरों को दोषी ठहराएं, लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे दुख के लिए हम खुद दोषी हैं। हमने कभी ना कभी, किसी ना किसी जन्म में किसी को दुख पहुंचाया होगा और उसी कारण इस जीवन में हमें दुख भोगना पड़ रहा है इसलिए दुखों को शांति के साथ भोगें और अपने पापों के लिए प्रायश्चित करें। साध्वी जी ने स्वीकार किया कि मानव जन्म में हमें ना चाहते हुए भी कुछ ना कुछ पाप करने पड़ते हैं, लेकिन पाप करो, परंतु डर कर करो। उसमें अपना सुख मत खोजो और पाप कर खुशी महसूस मत करो। साध्वी दिव्यांग प्रियाश्री जी ने अपने उद्बोधन में एक नन्ही बालिका की कहानी सुनाते हुए बताया कि किस तरह उस बालिका भगवान की प्रतीक्षा बाल्यकाल से वृद्धावस्था तक करती रही। अंतत: भगवान को उसके दरबाजे पर आना ही पड़ा। यदि आपकी भक्ति में दम है तो भगवान को अवश्य आपके दर पर आना पड़ेगा, लेकिन भक्ति ऐसी हो कि तेरे नाम से शुरु और तेरे नाम पर खत्म।

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