* एक पखवाड़े में नाप दी थीं प्रदेश की चारों दिशा, अथक मेहनत से बदल कर रख दी थी सियासी फिजा
ग्वालियर। भाजपा को प्रदेश में प्रचंड बहुमत मिला है। हर तरफ जीत की चर्चा हो रही है। आने वाले कुछ दिनों में सरकार भी अस्तित्व में आ जाएगी। भाजपा की इस जीत में एक चेहरा उभरा, जिसने बिना रुके, बिना थके और आलोचनाओं की परवाह किए बिना दिन-रात एक कर दिया। अल सुबह से लेकर देर-रात अपने अभियान में जुटा रहा है। न जाति, न धर्म और न ही कोई ऊॅच-नीच, बिना किसी भेदभाव पहुंचकर सबके बीच, पार्टी की नीति और रीति के साथ ही तरक्की के पथ पर बढ़ते प्रदेश के भविष्य के लिए लोगों को साथ जोड़ने का काम किया। परिणाम मध्य प्रदेश में गॉव-गॉव और शहर-शहर में कमल खिल गया।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया विधानसभा चुनाव में जिस शिद्दत के साथ जुटे, फिर वे पीछे नहीं हटे। उन्होंने पार्टी लाइन पर चलते हुए पुनः सत्ता हासिल करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। 13 दिन में प्रदेश भर में 85 जनसभाएं और अनेक रोड शो किए। 22 बूथ लेवल कार्यकर्ता सम्मेलनों में भाग लिया जमीनी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का नव संचार किया। प्रदेश में पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक चारों दिशाओं अपना प्रभाव छोड़ा।
ग्वालियर-चंबल अंचल के साथ ही मालवा, निमाड़ और बुंदेलखंड के इलाकों में जन-जन से सरोकार रखते हुए भाजपा के हित में सशक्त माहौल निर्मित किया। अगड़े-पिछड़े और समाज के हर वर्ग को साथ लेकर राजनीति के धर्म को निभाया। कहावत भी है, कि अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात भी तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है।
विपक्षी दल के प्रमुखों ने उनके कद से काबिलियत मापने की जो हिमाकत की थी, उन्होंने अपने करिश्माई नेतृत्व से सच कर दिया।
उन्होंने कवि बिहारी सतसई के दोहे- “सतसइया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर। देखन में छोटे लगैं, घाव करें गंभीर ।।“ को चरितार्थ कर दियाखा।
लिहाजा, कह सकते हैं कि िंसंधिया की अथक मेहनत का ही परिणाम है, कि ग्वालियर-चंबल में भाजपा की सीटों में इजाफा हुआ। इस बार भाजपा को अंचल की 34 में 18 सीटें मिली हैं। जबकि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 26 और भाजपा को महज 7 सीट हासिल हुईं थी। उस वक्त कांग्रेस को मिली कामयाबी का श्रेय सिंधिया को ही दिया गया था। क्योंकि सिंधिया को अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी का चेहरा माना जा रहा था। जबकि 2013 में भाजपा को 20 और 2008 में 16 सीटें मिली थीं। भाजपा को यह सीटें तब मिली थीं जब संभाग में अहम चेहरा माने जाने वाले सिंधिया कांग्रेस में थे। अब भाजपा में इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि अंचल में मिली सीट सिंधिया के करिश्माई जादू का ही खेल है।
सबसे महत्वूर्प बात यह है कि इस बार प्रदेश में भाजपा को 48.55, कांग्रेस को 40.40 और बसपा को 3.40फीसदी वोट मिला है। जाहिर है पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार भाजपा को 8फीसदी वोटों का इजाफा हुआ है। इसमें यदि लाड़ली बहना का योगदान भी माने तब भी कम से कम 4 फीसदी सिंधिया की बदौलत भी हुआ है।
क्योंकि ग्वालियर-चंबल में सिंधिया परिवार का प्रभाव सदैव रहा है। आजाद भारत में जीवाजी राव सिंधिया जो कि मध्य भारत के पहले राजप्रमुख बने थे। उसके बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया का खासा प्रभाव रहा। साथ ही उनके पुत्र माधवराव सिंधिया और अब तीसरी पीढ़ी के ज्योतिरादित्य सिंधिया अपना प्रभाव जमाए हुए हैं।
यही कारण है कि इस बार भाजपा में उनके आने से ग्वालियर-चंबल अंचल के साथ ही इंदौर (मालवा), निमाड़ व बुंदेलखंड क्षेत्र के साथ ही अन्य सीटों पर उनके प्रभाव के वोट का इजाफा हुआ। क्योंकि 2018 में कांग्रेस को मिला जनादेश कहीं न कहीं सिंधिया की लोकप्रियता का ही परिणाम था। लेकिन इस बार बाजी पलट गई। उन्होंने अपने करिश्माई व्यक्तित्व से इन इलाकों की 66 में से 48 सीट हासिल कर नया कीर्तिमान रच दिया।
कारण स्पष्ट है कि सिंधिया परिवार का इंदौर से सदियों पुराना आत्मीय संबंध रहा है। इंदौर में मिली नौ सीटों पर अप्रत्याशित जीत की वजह भी सिंधिया का अपना प्रभाव रहा। इंदौर के साथ ही प्रदेश भर में करीब 150 सीटों पर सिंधिया का जादू चला। जिसके कारण भाजपा को प्रचंड जीत हासिल हुई। यह सिंधिया की करिश्माई छवि का ही असर है। और भाजपा को 8 फीसदी से अधिक वोट मिलना भी इसी का परिणाम है। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भाजपा को मिली इस प्रचंड जीत के असली नायक हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया।

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