रहे।
बात डॉ विरही जी की करें तो 25 मार्च 1929 को तालबेहट के जिला ललितपुर में जन्मे डॉक्टर परशुराम शुक्ल विरही सन 1962 में शिवपुरी आए और श्रीमंत माधवराव सिंधिया शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रोफेसर रहे। सन 1991 में यहीं से सेवानिवृत हुए। कवि चंचल जी भी इसी महाविद्यालय में सेवारत थे। अपने लेखन के साथ वे एक अच्छे वक्ता और मंच संचालक भी थे। लायंस क्लब, भारतीय जन - नाट्य संघ इप्टा में अध्यक्ष पद पर रहे। एक शिक्षक के रूप में आपका सम्मान और प्रतिष्ठा का कोई दूसरा उदाहरण नहीं है।
बोलती कविताएं आज भी सिरमौर
जिले के साहित्यकार और कवि साहित्यकार अरुण अपेक्षित उनके करीब रहे। अरुण जी ने डॉ विरही की पंक्तियां बयान करते हुए कहा कि, समझते हम नहीं, मौन की भाषा सरल होती नहीं। एक और व्यवस्था पर प्रहार करती कविता देखिए, मंच पर आया विदूषक और नायक बन गया। यह नई नाटक प्रणाली, देखिए कब तक रहे। अक्सर इन पंक्तियों को जब लोग सुनते थे तो दर्शकों में जोश जाग भर जाता था। कवि राम पंडित ने कहा कि उम्र की तो मौत होती है मगर, मौत, की कोई उम्र होती नहीं। डॉ. परशुराम शुक्ल विरही की ये पंक्तियां उनकी आयु के शताब्दी वर्ष के 5 वर्ष पूर्व ही, उनके लिए सत्य हो गई। हम उन्हे कभी भुला नहीं पाएंगे। डॉ जैन ने यह भी कहा कि उनकी उंगली पकड़कर न केवल मैंने वरन शहर के सैकड़ों साहित्यकारों ने साहित्य का ककहरा सीखा है। उनके योगदान को कभी भुला नहीं जा सकता। जिले के अनेक साहित्यकारों ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया हैं। मामा का धमाका न्यूज पोर्टल के प्रधान संपादक विपिन शुक्ला ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया। शुक्ला ने कहा की आज भले ही गूगल ज्ञान से दुनिया दौड़ रही हैं लेकिन एक समय डॉ विरही और डॉ चंचल ही जिले की गूगल हुआ करते थे।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें