अंग्रेजी शासनकाल में जगाई थी शिक्षा की अलख, महिलाओं के शिक्षा के लिए किए कई काम : बबिता कुर्मी सामाजिक कार्यकर्ता
शिवपुरी। भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की आज जयंती है। उन्होंने कई समाज में कई कुरीतियों को दूर करने में अपना योगदान दिया। ये कहना था शक्तीशाली महिला संगठन शिवपुरी द्वारा ग्राम नीम डांडा में भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाजसेवी सावित्रीबाई फुले की जयंती का प्रोग्राम किया जिसमे संस्थान की महिला अधिकारों की नोडल ऑफिसर बबिता कुर्मी ने कहा की सावित्री बाई समाज सुधारक और महिलाओं के लिए काम करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने 19वीं शताब्दी में पुणे (महाराष्ट्र) के समाज में व्याप्त दमनकारी सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनका योगदान तर्कसंगतता और मानवीय कारणों जैसे सत्य, समानता और मानवता के इर्द-गिर्द घूमता है। उनका जन्म 03 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र (नायगांव - सतारा) में हुआ था। वह अपने परिवार में सबसे छोटी थीं। उनके तीन भाई-बहन थे। वह माली समुदाय से थीं, जो आज अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के अंतर्गत आता है। सावित्रीबाई फुले जब महज नौ साल की थीं तभी उनका विवाह हो गया, वे पढ़-लिख नहीं सकती थीं। उनके पति ज्योतिराव फुले ने उन्हें घर पर शिक्षित करने की जिम्मेदारी ली। जिसके बाद में उन्होंने महाराष्ट्र, विशेष रूप से पुणे में व्याप्त असमानता, पितृसत्ता और सामाजिक उत्पीड़न से लड़ने के लिए काम किया। प्रोग्राम में फील्ड ऑफिसर साहब सिंह धाकड़ ने कहा की पुणे के भिडे वाडा में खोला पहला स्कूल 1848 में फुले और उनके पति ने ब्रिटिश शासन के दौरान पुणे के भिडे वाडा में लड़कियों के लिए पहला भारतीय स्कूल शुरू किया। स्कूल में शुरू में सिर्फ नौ लड़कियां थीं। धीरे-धीरे संख्या बढ़कर 25 हो गई। उनके स्कूल में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में वेद और शास्त्र जैसे ब्राह्मणवादी ग्रंथों के बजाय गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन शामिल थे। इसके बाद दंपति ने 1851 तक शहर में तीन और स्कूल शुरू किए। ज्योतिराव फुले के साथ उन्होंने लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले थे। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 1852 में महिला सेवा मंडल खोला। ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर उन्होंने गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए एक देखभाल केंद्र खोला। केंद्र को 'बालहत्या प्रतिभाबंधक गृह' कहा जाता था। प्रोग्राम में आगनवाड़ी कार्यकर्ता नगीना बानो, सुपोषण सखी अनूपी आदिवासी, जानकी आदिवासी, पूजा आदिवासी, कल्ली आदिवासी सुपोषण एवम आधा सेकड़ा किशोरी बालिकाओं ने भाग लिया।

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