राम तुम्हारा नाम सत्य है, सकल जगत आधार
पल पल जीते पल पल मरते लेकिन मिलता प्यार
जगत के तुम ही पालनहार।
छुटपन में अपने हिस्से की रोटी काग खिलाई
मां का कहना, मान पिता के वचन, चले रघुराई
वन वन भटके किंतु कभी न मर्यादा ठुकराई
केवट गुह निषाद,हनु संग की सुग्रीव मिताई
अपने सारे सुख तज दीन्हे, दिया भरत दरबार।
जगत के तुम ही पालनहार।
देख धर्म की दशा प्रतिज्ञा करी असुर संहारे
नर वानर की कीन्ह मिताई,शबरी कुटी पधारे
शील-सिया का हरण दिखा तो, अहंकार ललकारा
याद दिलाया हनुमान को भूला जो बल सारा
अभिमानी सोने की लंका कर दी बंटाधार।
जगत के तुम ही पालनहार।
भ्रातृप्रेम के रहे उदाहरण, दो को गादी सौंपी
समसरता के हामी, दाता, प्रेम पौध ही रोपी
नारि शक्ति को पूजित करके, उच्चादर्श सिखाया
हर रिश्ते का मान बढ़ाया, पीठ छुरी न घोंपी
मर्यादा पुरुषोत्तम हे प्रभु, रचो बसो संसार।
जगत के तुम ही पालनहार।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें