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धमाका खास खबर: दहेज प्रथा रुपी कलंक को समूल नष्ट करना होगा: अरविन्द जैमिनी

शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

/ by Vipin Shukla Mama
भारत एवं दुनियां के अन्य देशों में दहेज प्रथा का लम्बा इतिहास बताया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। दहेज मूल रूप से विवाह के दौरान वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिए जाने वाले नकदी, आभूषण, फर्नीचर, संपत्ति तथा अन्य कीमती वस्तुओं आदि का आदान-प्रदान करना है। यह सदियों से भारत में धनाढ्य व्यक्तियों व्दारा समाज में अपना रुतवा दिखाये जाने की प्रचलित प्रथा भी है। जिसमें दहेज देना -लेना या दहेज के लिये उकसाना तथा वधु के माता-पिता या अभिभावकों से प्रत्यक्ष –अप्रत्यश्र रुप से दहेज़ की मांग करना। आज के समय में यह प्रथा समाज में मुख्य बुराइयों में से एक  है, जो कि हमारे समाज में एक बहुत बड़ा अभिशाप बन चुकी है। दहेज प्रथा के कारण ही महिलाओं को एक दायित्व के रूप में देखा जाता है और उन्हें अक्सर अधीनता हेतु विवश किया जाता है। संकीर्ण एवं छोटी मानसिकता के व्यक्ति विवाह को धन प्राप्त करने का एक अच्छा अवसर मानते हैं और कन्या पक्ष से अधिक से अधिक धन की मांग करके क्षणिक समय के लिये अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना, भीख लेने का एक सामाजिक तरीका अपनाते हैं। झूठी प्रतिष्ठा व शान का प्रदर्शन करना भी दहेज प्रथा का एक मुख्य कारण है, जिस कारण यह एक घृणित सामाजिक समस्या है। संपन्न तथा शिक्षित परिवार में बेटी खुश रहेगी यह सोचकर मजबूरी में अपनी क्षमता से बाहर जाकर लड़की के माता पिता किसी तरह शादी के लिए दहेज में चाहे गए सामान जुटाते हैं। समाज का गरीब तबका प्रायः दहेज में मदद के लिये अपनी बेटियों को शिक्षा की जगह मजदूरी कराते हैं, ताकि वे कुछ पैसे इकठ्ठा कर सकें। मध्यम और उच्च वर्ग के परिवार अपनी बेटियों को स्कूली शिक्षा तो देते हैं, लेकिन उनके कॅरियर विकल्पों पर जोर नहीं देते। इसके चलते परिवार लड़कियों को बोझ के रूप में देखने लग जाते हैं। देश में लड़कियों की एक बडी संख्या शिक्षित और पेशेवर रूप से सक्षम होने के बावजूद अविवाहित रह जाती है। क्योंकि उनके माता-पिता विवाह पूर्व दहेज की मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। समाचार पत्र, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि के माध्यम से आये दिन ज्ञात होता है कि दहेज के कारण महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध होना, भावनात्मक शोषण होना और चोट से लेकर मौत तक शामिल की खबरें शामिल होती हैं। अधिकांशतः घर परिवार में बच्ची के जन्म लेने वाले दिन से ही माता-पिता चिंतित हो जाते हैं कि उसकी शादी में फलां सामान देंगे, फलां सम्पत्ति देंगे आदि-आदि। जिसके परिणाम स्वरुप बड़ी मात्रा में दहेज देने के दबाव के कारण अक्सर परिवार कर्ज में डूब जाते हैं।सरकार व्दारा दहेज प्रथा की समाप्ति हेतु कानून बनाये हैं, लागू किये गये हैं। लेकिन इस समस्या की सामाजिक प्रकृति के कारण यह कानून समाज में वांछित परिणाम देने में विफल रहे हैं। दहेज प्रथा को रोकना वर्तमान में बहुत जरुरी है। यदि यह प्रथा ऐसे ही चलती रही तो लाखों जिंदगियां व परिवार तबाह होते रहेंगे।
दहेज प्रथा के निवारण के लिए सामाजिक जागरूकता लाना बहुत आवश्यक है, जिसके लिये सर्वप्रथम समाज को जागरुक करना होगा तथा नैतिक चेतना लानी होगी। विवाह का पंजीकरण एवं विवाह के अवसर पर दिए जाने वाले उपहारों को सूचीबध्द कर उसकी वीडियोग्राफी कराना तथा शासकीय सेवकों व्दारा दिये गये अचल संपत्ति के ब्यौरे की तर्ज पर वर-वधू पक्ष से दहेज के लेनदेन का ब्यौरा लिया जा सकता है। देश में बच्चों एवं युवाओं को दी जाने वाली प्रथमिक एवं उच्चतर शिक्षा में दहेज प्रथा की समाप्ति हेतु सरकार को विद्वानों व लेखकों की दहेज विरोधी रचनाओं, लेखों को ज्यादा से ज्यादा शामिल किया जा सकता है। कला के क्षेत्र में कार्य कर रहे कला प्रेमियों व्दारा अधिक से अधिक नुक्कड नाटक करना, शोर्ट फिल्में तैयार कर उनका प्रदर्शन करना होगा। वर्तमान में चंबल संभाग के संत श्री हरिगिरि जी महाराज व्दारा दहेज प्रथा के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान के गुर्जर समाज में सकारात्मक परिणाम देखे जा रहे हैं। अत: संत श्री हरिगिरि जी महाराज का अनुसरण करते हुये समस्त समाज सेवियों, धर्म गुरुओं, साधू संतों, पुजारियों तथा पंडित – पुरोहितों व्दारा दहेज प्रथा के विरुध्द देश भर में सघन अभियान चलाये जाने की आवश्यक्ता है। दहेज प्रथा की बुराइयों के प्रति समाज की अंतरात्मा को पूरी तरह से जगाने की सख्त आवश्यक्ता है, ताकि समाज में दहेज की मांग करने वालों की प्रतिष्ठा को धक्का लग सके तथा दहेज प्रथा रुपी कलंक को समूल नष्ट किया जा सके।
(लेखक अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण सभा जिला ग्वालियर के अध्यक्ष हैं)

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