ग्वालियर में बसे सभी चितेरे जाति के काछी हैं किन्तु वे चित्र बनाने का धन्धा करने के कारण चितेरे कहलाते हैं। वे कहते हैं आरंभ में ऐसा नहीं था, अन्य जाति के लोग भी चितेरों का काम करते थे। वे मानते हैं कि ग्वालियर के महलों, छत्रियों एवं मंदिरों में बने चित्र बनाने में उनके पूर्वजों ने योगदान किया। दतिया और ओरछा के भित्तिचित्रों को बनाने वाले उनके पूर्वज भी थे। उनके पूर्वजों ने ग्वालियर कलम के नाम से प्रसिद्ध एक स्थानीय चित्रण शैली का विकास किया था। (साभार गूगल)
एक समय ये था
एक समय ग्वालियर के किसी भी बाजार या मुहल्ले में, चौड़ी सड़क या संकरी गलियों के घरों की दीवारों पर बेलबूटे, देवी देवताओं के चित्र या कोई शुभ आकृतियाँ जरुर देखने को मिल जाया करती थीं।
ये है शिव परिवार का भित्ति चित्र
ग्वालियर मोती महल का भीत्ति चित्र "शिव परिवार" चितेरा ओली के कलाकारों की कला का 100 साल पुराना नमूना है। यहां शिव परिवार का चित्र देखते ही बनता था।
ग्वालियर के जानेमाने ज्योतिर्विद बृजेंद्र श्रीवास्तव याद करते हुए कहते हैं की इस भित्ति चित्र का कैमरा चित्र मैगजीन में प्रकाशित किया था। महाशिवरात्रि पर प्रभु का हम लोगों तक यूं आना एक तरह से उनका आशीर्वाद ही हैं।

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