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शाश्वत मूल्यों के लिए शिक्षा की विद्या की व्याख्या निरंतर होनी चाहिए: श्रीधर पराड़कर

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

/ by Vipin Shukla Mama
लेखक शिरोमणि दुबे की पुस्तक का हुआ विमोचन
शिवपुरी। अखिल भारतीय साहित्य परिषद जिला शिवपुरी के तत्वावधान में लेखक व विचारक शिरोमणि दुबे की पुस्तक भारतीय शिक्षा की सनातन दृष्टि का विमोचन कार्यक्रम स्थानीय सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय में सम्पन्न हुआ,जिसमे मुख्य अतिथि म.प्र.उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए के श्रीवास्तव,मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर मौजूद रहे।कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलसचिव तात्या टोपे विश्वविद्यालय गुना आर के वर्मा व विशिष्ठ अतिथि के रूप में पूर्व प्राध्यापक सतीश चतुर्वेदी शाकुन्तल रहे,कार्यक्रम का संचालन साहित्य परिषद के प्रांत महामंत्री आशुतोष शर्मा ने किया।सर्वप्रथम माँ शारदे के चित्र के आगे दीप प्रज्जवलन व अतिथियों का स्वागत पवन शर्मा विद्यापीठ व्यवस्थापक,प्रदीप अवस्थी जिलाध्यक्ष साहित्य परिषद,शुभाष पाठक करेरा,दीपक शर्मा पोहरी,डॉ योगेंद्र शुक्ल व विवेक गौतम ने किया।पुस्तक परिचय रखते हुए लेखक शिरोमणि दुबे ने कहा कि वर्तमान समय मे शिक्षा के महत्व व भारतीय शिक्षा की मूल नीति सनातन दृष्टि को युवाओं के बीच प्रस्तुत करने की अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए पुस्तक आप सभी के बीच आई है,इसको लिखने के पीछे का मूल कारण सनातन के मूल्यों से नई पीढ़ी को अवगत कराना ही है।मुख्य वक्ता साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि भारतीय जीवन पद्धति में जो शाश्वत मूल्य है उनकी व्याख्या निरंतर होते रहने चाहिए, शिक्षा की विद्या की व्याख्या होनी चाहिए,सनातन के मूल्य कैसे लागू किये जा सकते है,इसके लिए उक्त पुस्तक पढ़नी चाहिए।साथ ही में कहता हूं कि जीवन मे जिज्ञासा अवश्य होनी चाहिए,अगर जिज्ञासा नही होगी तो सीख नही पायेंगे।जिज्ञासा से ही श्रद्धा बढ़ती है,पढ़ेंगे नही तो समाधान को प्राप्त नही कर सकते।दूसरी बात में कहता हूं कि वेद,उपनिषद कुरान आदि की नियमित व्याख्या से ही इनके महत्व को समझा जा सकता है,क्योंकि समयानुसार सोच बदलती है,अतः समय के अनुसार व्याख्या भी आवश्यक है।सनातन दृष्टि को बेहतर तरीके से पुस्तक के माध्यम से लेखक शिरोमणि दुबे ने प्रस्तुत किया है।
मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति ए के श्रीवास्तव ने कहा कि सनातन एक विराट शब्द है,जिसमे जीवन की वास्तविकता समाई है,जीवन जीने का आधार,स्वयम के जीवन की श्रेष्ठता का आधार यही है,सभी सुखी निरोगी रहे इस से बढ़कर मंत्र पद्धति भला और क्या हो सकती है।सनातन दृष्टि को समझने की नितांत आवश्यकता वर्तमान परिवेश में है।
अध्यक्षता कर रहे कुलसचिव आर के वर्मा ने कहा कि पुस्तक के माध्यम से सनातन के मूल्यों की सुंदर प्रस्तुति शिरोमणि  दुबे ने की है,इसे पढ़कर ज्ञान को आत्मसात करने की जरूरत है।
विशिष्ठ अतिथि सतीश चतुर्वेदी शाकुन्तल ने कहा कि शिरोमणि दुबे जैसा जीवन जीते है वैसे ही विचारों को पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
संचालन कर रहे आशुतोष शर्मा ने साहित्य परिषद की नियमित गतिविधियों व बौद्धिक वातावरण को परिवर्तित करने की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला।
संभाग भर से आये हुए अन्य गणमान्य जनों में अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश शुक्ला ग्वालियर,डॉ लोकेश तिवारी ग्वालियर,महेंद्र रघुवंशी,रश्मि रघुवंशी गुना,भागचंद जैन अशोकनगर,रामवीर सिंह कौरव,दिनेश शर्मा मुरैना ,पुरुषोत्तम गौतम,प्रमोद भार्गव के साथ दो सैकड़ा से अधिक लोग आयोजन में मौजूद रहे,कार्यक्रम के अंत मे आभार प्राचार्य विद्यापीठ दिनेश कुमार अग्रवाल ने माना।










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